गीता रहस्य
स्वामी रामस्वरूप
यजुर्वेेद मंत्र 13/46 में कहा है कि वह परमेश्वर अद्भुत स्वरूप है और योगियों के हृदय में सदा प्रकाशित रहता है। जिस प्रकार परमेश्वर अद्भुत है, उसी प्रकार उसको जानने वाले योगी भी अद्भुत हैं…
गतांक से आगे…
अर्जुन आश्चर्यचकित हुआ परमात्मा रूप श्रीकृष्ण महाराज को सिर से प्रणाम करके, हाथ जोडक़र बोला। भाव- (विस्मयाविष्ट) पद का भाव यह है कि उस परमात्मा रूप श्रीकृष्ण महाराज के शरीर में, एक ही देश में, दिव्य, ज्योतिर्मय सहस्र सूर्यों की प्रभा, दिव्य गंध आदि अनेक दृश्यों को देखकर अर्जुन आश्चर्य से भर गया और (हृष्टरोमा) हर्षित होकर रोमांचित हो गया।
यजुर्वेेद मंत्र 13/46 में कहा है कि वह परमेश्वर अद्भुत स्वरूप है और योगियों के हृदय में सदा प्रकाशित रहता है। जिस प्रकार परमेश्वर अद्भुत है, उसी प्रकार उसको जानने वाले योगी भी अद्भुत हंै। इसीलिए ऋग्वेद मंत्र 10/111/7 में कहा कि परमात्मा में प्राप्त हुए योगी को (नु: अद्धावेद) तत्त्व से कोई नहीं जानता।
ऋग्वेद मंत्र 1/170/1 का भाव है कि नित्य आश्चर्ययुक्त गुण, कर्म एवं स्वभाव वाले अनादि, चेतन, निराकार परमेश्वर को जानने वाला योगी भी अद्भुत होता है। यजुर्वेद मंत्र 17/91 में भी उस निराकार, सृष्टि को रचने वाले परमेश्वर को महान प्रकाशक देवों का देव महादेव कहा है।
यजुर्वेद मंत्र 27/36 का भी भाव यही है ‘न जात: न जनिष्यते’ अर्थात ईश्वर के समान न कोई पैदा हुआ है और न भविष्य में कभी पैदा होगा। वही निराकार परमेश्वर उस समय वैदिक नियम के अनुसार महायोगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज के शरीर में प्रकट थे और श्रीकृष्ण महाराज अपने शरीर में अर्जुन को योग सामथ्र्य से सब कुछ दिखा रहे हैं।
जिस जगत को अर्जुन ने परमात्मा रूप श्रीकृष्ण महाराज के शरीर में एक देश में देखा, वह (अनेकधा, प्रविभक्तम) अनेक प्रकार से अलग-अलग अर्थात बंटा हुआ देखा। भाव यह है कि सूर्य, चंद्रमा, तारे, आकाश, पृथ्वी, अंतरिक्ष अर्थात सभी पदार्थ एक दूसरे से भिन्न-भिन्न प्रकार से देखे। – क्रमश:
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