गुरु का सान्निध्य

By: Sep 30th, 2023 12:20 am

श्रीश्री रवि शंकर

स्वाभाविक रहने का अर्थ है कि स्वयं को, दूसरों को और आपके आसपास की सभी वस्तुओं को वे जैसे हैं वैसा ही स्वीकार किया जाना। आपने उसे बोझ के जैसे नहीं परंतु समझ के साथ स्वीकार किया है कि वह ऐसा है। जब आप यह सोचते हैं या महसूस करते हैं कि यह ऐसा होना चाहिए या वैसा होना चाहिए, तो फिर आप अपने सही स्वभाव में नहीं रहते, फिर आप अपनी सीमाओं के संपर्क में आ जाते हैं। वह सीमा है, स्वाभाविक और सुखी नहीं रहने की सीमा। गलतियों का ज्ञान आपको तब मिलता है जब आप मासूम होते हैं। जो भी गलती हो जाए उसके लिए आप अपने आप को पापी न समझें क्योंकि उस वर्तमान क्षण में आप फिर से नवीन, शुद्ध और स्पष्ट हो जाते हैं। भूतकाल की गलतियां भूतकाल हैं। जब यह ज्ञान मिल जाता है तो आप फिर से परिपूर्ण हो जाते हैं। कई बार मां अपने बच्चों पर नाज करती हैं और उसके उपरांत अपने आप को दोषी समझती है। क्रोध सजगता की कमी के कारण आता है। स्वयं, सत्य और कौशल का ज्ञान आप में उत्तमता को उभार देता है। इसलिए गलती करने से न डरें परंतु वही गलती दोबारा न करें। आपको अपनी गलतियों में नवीनता रखनी चाहिए। कई बार आप अपनी गलतियों को सुधारना चाहते हैं। आप उसे कितना सुधार पाते हैं? जब आप दूसरों की गलतियां सुधारते हैं तो दो स्थिति होती है।

पहली जब आप किसी की गलती सुधारते हो क्योंकि वह आपकी परेशानी का कारण होती है। दूसरी जब आप किसी की गलती सुधारते हो, तो वह सिर्फ उनके लिए होता है इसलिए नहीं कि वह आपको परेशान करती है, परंतु इसलिए ताकि उनका विकास हो सके। गलतियों को सुधारने के लिए आपको अधिकार और प्रेम की आवश्यकता होती है। अधिकार और प्रेम एक दूसरे के विरोधाभासी हैं, परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। अधिकार के बिना प्रेम घुटन जैसा है। प्रेम के बिना अधिकार उथला है। एक मित्र के पास अधिकार और प्रेम दोनों होना चाहिए, परंतु वह सही मेल में होना चाहिए। यह सिर्फ तब हो सकता है जब आप पूर्णत: आवेगहीन और कंेद्रित होंगे। जब आप गलतियों के लिए जगह देंगे तो आप दोनों अधिकारपूर्ण और एक दूजे के प्यारे हो जाएंगे। दैवीय गुण इसी तरह के होते हैं। दोनों का सही संतुलन कृष्ण और ईसा मसीह में दोनों थे। दूसरों की तरफ अंगुली उठाकर गलतियां मत करो। किसी व्यक्ति को उस गलती के बारे में मत बताओ जो उसे पता है, उसने की है। ऐसा करके आप उसे और अधिक अपराधी बना देंगे।

एक महान व्यक्ति दूसरों की गलतियों को नहीं पकड़ता है और उन्हें अपराधी महसूस नहीं होने देता है, वह उन्हें आवेग और देखरेख के साथ ठीक करता है। जब आप दया दिखाते हैं, तब आपका वास्तविक स्वभाव सामने आता है। क्या आपने कभी किसी की सहायता की है? किसी से बिना कुछ अपेक्षा किए हुए? हमारी सेवा बुद्धिहीन नहीं होनी चाहिए। आपको सहायता करने के लिए योजना नहीं बनानी चाहिए। जब आप बिना किसी सोच विचार के स्वत: ही सहायता करते हैं तब आप अपने वास्तविक स्वभाव में आ जाते हैं। अनायास में कुछ करें और स्वाभाविक रहें। जो दूसरों की सहायता करते हैं, ईश्वर उनकी सहायता करता है। मावनता की सेवा ही सच्ची सेवा है। दूसरों के दोष देखने से पहले अपने अंतर्मन की गहराइयों में झांक कर देखें। गुरु के सान्निध्य में रहकर ही सच्चा सुख मिल सकता है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App