शिक्षक दिवस विशेष : अच्छे शिक्षक ही देश के निर्माता हैं

By: Sep 2nd, 2023 12:05 am

अध्यापक हर स्तर पर अपने सम्मान को उच्चतर बनाने का प्रयास करें, ताकि कोई विद्यार्थी या अभिभावक विद्यालय को आलोचना का अखाड़ा न बनाए…

अध्यापकों का हमारी जिंदगी में बहुत महत्व होता है। अध्यापक ही देश का निर्माता कहा जाता है। समाज में बदलाव, विकास में प्रगति, चंद्रयान-3 को चांद की कक्षा में पहुंचाने और वहां उतारने की इच्छा शक्ति, अच्छा जीवन जीने की कला, शांति, मैत्री, बंधुत्व विश्व में अच्छे शिक्षकों द्वारा ही संभव हो सका है। शिक्षक के मायने जो बच्चों को सिखा सके, समाज को नेतृत्व दे सके। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डॉक्टर कलाम ऐसे शिक्षक राष्ट्रपति हुए हैं जिन्होंने देश को सीखने व जल्द विकसित होने की भूख पैदा की है। जवान भारत में लाखों विद्यार्थी ऐसे अच्छे अध्यपकों का इंतजार बेसब्री से कर रहे हैं। शिक्षक के दायरे में केवल बच्चों को किताबी ज्ञान बांटना या फिर सीखने के प्रतिफल को कक्षा कक्ष में उतारना ही नहीं, बल्कि विद्यार्थियों में जीवन कौशलों का विकास करते हुए उन्हें आधुनिक जीवन के संघर्ष से अवगत कराना, नशे से बचाना भी शामिल है। अध्यापक दिवस पर अध्यापकों से नई उभरती हुई अपेक्षाएं व चिंताएं भी हैं। नई शिक्षा नीति, नई पाठ्यचर्या एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विकास तुरंत व महत्वपूर्ण ध्यान चाहते हैं। यह उदारीकरण, निजीकरण, भूमंडलीकरण, विश्व व्यापार संगठन, सूचना एवं संचार तकनीकी, नव शैक्षिक प्रयोग, खुली अधिगम प्रणाली, जीवन कौशलों का विकास आदि विशेषताएं शिक्षकों में विशेष तौर पर अपेक्षित रहेंगी। इसके अतिरिक्त धर्म की शिक्षा, भाषाओं का ज्ञान, मूल्य शिक्षा व इनकी समझ भी अध्यापकों में होना लाजिमी है। अध्यापकों एवं उनके उन्मुखीकरण पर मूल्यवान अनुसंधान किए गए हैं।

यह अध्यापकों के विकास के लिए प्रदेश एवं देश के संदर्भ में सहायक सिद्ध हो सकते हैं, बशर्ते यह प्रभावी ढंग से क्रियान्वित हों। किसी भी देश के अध्यापक तथा वहां की शिक्षा नीति पर यह निर्भर करता है कि उस देश का विकास मानव विकास में परिवर्तित हो और विद्यालय ही एक ऐसी जगह है जहां से यह संभव है। भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 अध्यापकों के मानकों को बढ़ाने एवं वर्तमान स्थिति में परिवर्तन की कल्पना करती है। शिक्षकों से यह अपेक्षा है कि वे पढऩे व लेक्चर देने के बजाय फैसिलिटेटर और मैंटर के रूप में कार्य करें। अध्यापक कक्षा कक्ष में इस तरह से सिखाएं कि बच्चों के बीच रचनात्मकता, जिज्ञासा, ज्ञान व सूचना की भूख बढ़े। शिक्षा में सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रचार व प्रसार एवं बच्चों में इसकी लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए शिक्षकों से यह अपेक्षा है कि वे डिजिटल रूप से भी साक्षर हों। विद्यालय में अध्यापकों की दिनचर्या बच्चों के साथ इस तरह से हो जिसमें उनके संज्ञानात्मक, भावनात्मक, शारीरिक एवं सामाजिक विकास एवं कल्याण विकसित हो सके और अध्यापक बच्चों के अंदर एक समग्र विकास की लौ जगा सकें। यह तभी संभव है जब अध्यापकों की पढऩे व सिखाने में रुचि निरंतर बने।

इसी प्रकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 शिक्षकों को उनके ज्ञान और कौशलों को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों, कार्यशालाओं, ऑनलाइन कोर्सेज, अन्य सीखने के अवसरों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करती है, लेकिन अध्यापक प्रशिक्षण में अच्छे प्रशिक्षकों की कमी तथा प्रशिक्षण को कक्षा कक्षा तक ले जाने से लेकर कक्षा कक्ष में उतरने तक कार्यक्रम की कमी तथा निगरानी में लचर व्यवस्था हमें नार्वे एवं फिनलैंड जैसे विकसित देशों से पीछे धकेलती है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन की रिपोर्ट के अनुसार लक्जमबर्ग में दुनिया में सबसे अधिक वेतन पानी वाले शिक्षक हैं। इसके अतिरिक्त स्विट्जरलैंड, जर्मनी, नॉर्वे, डेनमार्क, संयुक्त राज्य अमेरिका, मैक्सिको, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड हैं जहां शिक्षकों को सबसे ज्यादा सैलरी मिलती है और वो अपने आप को सम्मानित महसूस करते हैं। इन देशों के अध्यापकों के पढ़ाने और सिखाने के तरीके भी भिन्न हैं। यहां अध्यापक विद्यालय व कक्षा कक्ष में जाने से पहले पूरी तैयारी करते हैं, या तो स्कूल बोर्डिंग होते हैं या फिर अध्यापक को बच्चों से पहले आकर पढ़ाने की कक्षा कक्ष में तैयारी करनी होती है। इसीलिए उनका आदर सम्मान बरकरार है। रविंद्र नाथ टैगोर ने बरसों पहले कहा था कि एक दीपक दूसरे दीपक को जला ही नहीं सकता, जब तक कि वह खुद न जल रहा हो। अनुसंधान व ज्ञान रहित अध्यापक का पाठ बच्चों के दिमाग के ऊपर ज्ञान लादने का ही कार्य कर सकता है। उन्हें कुशाग्र बुद्धि वाला नहीं बना सकता। पिछले दो दशकों में पढऩे पढ़ाने की विभिन्न विधाओं में परिवर्तन आए हैं और अभी भी प्रयास जारी हैं। देश भर में लाखों शिक्षक विभिन्न कक्षाओं में पढ़ा रहे हैं। क्या वे सभी शिक्षक शिक्षा को बच्चों के व्यावहारिक जीवन में उतारने में कामयाब हो रहे हैं या नहीं। जैसे-जैसे विकास, विज्ञान और तकनीक आगे बढ़ा है तथा प्रभावित हुआ है, घर से लेकर विद्यालय तक परिवर्तन आए हैं। इंटरनेट, गाड़ी, मोबाइल, कंप्यूटर, इंटरएक्टिव बोर्ड सरीखी आधुनिक सहूलियतों से कक्षा कक्ष एवं पढऩे के तरीकों में बदलाव आवश्यक है। बाहरी परिवर्तन के समकक्ष अपने विद्यालय एवं कक्षा कक्ष, अध्यापकों की सोच, उनके ज्ञान, सूचना, विवेक, सशक्तिकरण व पढ़ाने के मानक स्तरों में भी सकारात्मक बदलाव की अपेक्षा बढ़ी है। ढांचागत विकास के साथ मानव विकास को प्रभावी बनाना आवश्यक है। इसलिए भूमंडलीकरण के इस दौर में शिक्षक को अपना सशक्तिकरण करना आवश्यक है, नहीं तो वह अपनी कक्षाओं में ज्यादा देर तक टिक नहीं सकेगा। भारत विश्व गुरु बनने की राह पर अग्रसर है। पिछले कुछ वर्षों में भारत की साख विश्व पटल पर उभर कर सामने आई है। प्राचीन काल से ही भारत में गुरु-शिष्य की परंपरा का बहुत अधिक महत्व रहा है। हमारी संस्कृति के निर्माण में गुरु-शिष्य एवं समाज का योगदान अधिक है। यह शिक्षक ही है जो मनुष्य को इंसान बनाता है। हाल ही में ऊना जिले में विद्यार्थी का प्रधानाचार्य से अभद्र व्यवहार अच्छे अध्यापकों को टीस पहुंचाने वाला है। विद्यालय और अध्यापकों को अपनी गरिमा उच्च स्थान पर रखने की आवश्यकता है। अध्यापक हर स्तर पर अपने सम्मान को उच्चतर बनाने का प्रयास करें, ताकि कोई विद्यार्थी या अभिभावक विद्यालय को आलोचना का अखाड़ा न बनाए और विद्यालय की आस्था और सम्मान कम न हो। शिक्षक दिवस का मुख्य उद्देश्य शिक्षकों के प्रति सहयोग को बढ़ावा देना व शिक्षकों के महत्व के प्रति जागरूकता पैदा करना है।

निखिल शर्मा

शिक्षाविद


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