कृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर बहती जलधारा बताएगी आप का भाग्य

By: Sep 3rd, 2023 12:55 am

किन्नौर के यूला कंडा में सात सितंबर को धूमधाम से मनाई जाएगी श्री कृष्ण जन्माष्टमी
दिव्य हिमाचल ब्यूरो—रिकांगपिओ
भगवान श्री कृष्ण का जन्मदिन भाद्र पद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। जन्माष्टमी का पर्व भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस यह धार्मिक पर्व सात सितंबर को मनाया जाएगा। उतर भारत में कृष्ण जन्माष्टमी पर्व बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। किन्नौर स्थित यूला कंडा जो समुद्र तल से लगभग 12778 फीट की ऊंचाई पर है, यहां हर वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। प्रदेश सरकार द्वारा इसे जिला स्तरीय पर्व का भी दर्जा दिया गया है। किन्नौर जिला के युला गांव से लगभग 12 किलोमीटर की पैदल यात्रा करने के बाद एक सुंदर प्राकृतिक झील के मध्य भगवान श्री कृष्ण जी का मंदिर विराजमान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर का निर्माण किया था। मास्वा कमेटी के सचिव रंजीत सिंह ने बताया कि कृष्ण मंदिर से लगभग एक किलोमीटर नीचे की ओर कासौरंग नामक स्थान पर भीमकुंड है, जिसे स्थानीय निवासी लामठु सौरंग के नाम से जानते है। कृष्ण मंदिर के ठीक पास से एक लिखा हुआ कि समान जलधारा बहती है जिसे स्थानीय निवासी चेशित ती के नाम से जानते है।

यह लिखे हुए के समान जलधारा बहती हुई मंदिर की ओर जाती है। जनश्रुति यह है कि जब श्री कृष्ण ने बांसुरी बजाई तो इस जलधारा ने नृत्य करते हुए मंदिर की ओर गई जहां सुंदर पवित्र तालाब का निर्माण हुआ। मान्यता यह भी है कि इस जलधारा में श्रद्धालु किन्नौरी टोपी बहाकर अपना भविष्य जानते हैं। अगर टोपी उलट-पलट गई तो उस श्रद्धालु का आने वाला साल अशुभ माना जाता है तथा अगर टोपी सीधा बिना उलट-पुलट के अंतिम छोर तक गया, तो उसका आने वाला साल बहुत ही शुभ माना जाता है अशुभ की स्थिति में श्रद्धालु पुन: श्री कृष्ण मंदिर जाकर प्रार्थना एवं क्षमा याचना करते हैं, जिससे अशुभ संकेत भी शुभ स्थिति में परिवर्तित हो जाती है। बता दें कि यूला कंडे में मनाए जाने वाले कृष्ण जन्माष्टमी पर्व की यात्रा जन्माष्टमी से एक दिन पहले शुरू की जाती हैं। लगभग 12 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद श्रद्धालु सांय सरायां भवन पहुंचते हैं। सभी श्रद्धालु सरायां भवन तथा आस-पास लगे टेटों सहित गुफाओं में रात्रि विश्राम करते हैं। इस दौरान यूला भागवेन कमेटी द्वारा रात्रि भण्डारे की व्यवस्था की जाती है। रात्रि भोजन के पश्चात् सारी रात भजन-कीर्तन चलता है। अगले सुबह सभी श्रद्धालु परंपरागत एवं लोक भक्ति गीत गाते हुए मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं।


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