क्या प्रदेश आपदा से सीख लेगा?

प्रशासन, एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, पुलिस में तालमेल हो। कुछ वर्षों से हिमाचल भी विकास की अंधी दौड़ में शामिल हो चुका है। विकास होना चाहिए, लेकिन प्रकृति की कीमत पर नहीं…

बरसात तो पहले भी होती थी, लेकिन वर्ष 2023 की बेदर्दी मानसून हिमाचलवासियों को कभी न भूलने वाले गहरे जख्म दे गई। मात्र दो महीने की विनाशलीला ने इस सुंदर प्रदेश को तबाह तथा छलनी-छलनी कर दिया। इस बार जलप्रपात तथा भूस्खलन के भयानक मंजर ने यह भी समझाया कि हिमाचल वालो, अभी भी सुधर जाओ, कोई तुम्हारे आंसू पोंछने नहीं आएगा। इस बार यह भी पता चला कि मात्र दो महीने में लगभग 395 लोगों का असमय और अकारण मौत के मुंह में चले जाना, 349 लोगों का घायल होना तथा 40 का लापता होना कोई बड़ी घटना नहीं है। इस विनाशलीला में चारों ओर लाशें, बिखरते और गिरते आशियाने, बहते पुल, हर तरफ चीख-ओ-पुकार, सिसकियां, बिलखते लोग, अपनों के बिछड़ जाने का गम, मदद के लिए उठते हाथ, ईश्वर के लिए प्रार्थनाएं- सब कुछ था, लेकिन मानकों के अनुसार यह कोई बड़ी राष्ट्रीय आपदा या त्रासदी नहीं थी। बीघों जमीन का बहना, बागीचों का जलमग्न हो जाना, लगभग 1200 सडक़ों का बाधित होना, पथ परिवहन के लगभग 5000 रूट बंद होना, बिजली के लगभग 5000 ट्रांसफार्मर खराब होना, दस हजार पेयजल योजनाएं ठप्प हो जाना, 2457 घरों का गिरना, बहना तथा टूटना, 10569 घरों का आंशिक नुकसान, 1000 से अधिक गाडिय़ों का जलप्रपात में बह जाना तथा परिणामस्वरूप 8604 करोड़ 88 लाख रुपए की बरबादी का आकलन कोई राष्ट्रीय आपदा नहीं होती? मात्र दो महीने के अन्तराल में हिमाचल के लोग भूस्खलन, बाढ़, बादल फटना, बिजली गिरना, ऑरेंज अलर्ट, रैड अलर्ट की चेतावनियां भयंकर तथा डरावनी बर्बादी देख तथा सुन कर भयभीत रहे।

इतनी तबाही के बाबजूद राष्ट्रीय आपदा घोषित न होना भी बड़ा प्रश्नचिन्ह है। बिहार, केरल तथा उत्तराखंड की त्रासदी में पूरे देश के लोगों ने वहां के लोगों का दर्द समझ कर प्रधानमंत्री राहत कोष तथा मुख्यमंत्री राहत कोष के लिए अंशदान दिया है। हैरानी की बात है कि इस सुंदर, आकर्षक तथा छोटे से राज्य हिमाचल प्रदेश में घटित इस भयंकर त्रासदी के लिए कहीं से भी मदद के हाथ नहीं उठ सके। हिमाचल प्रदेश की जानी मानी फिल्मी हस्तियों का इस विपत्ति में कोई भी सहयोग न मिलना भी कल्पना से परे है। केवल हरियाणा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा राजस्थान की सरकारों ने 56 करोड़ रुपए भेज कर संकट के समय हिमाचल प्रदेश के आंसू पोंछने की कोशिश की है। स्वतन्त्र पत्रकार रवीश कुमार का यह कहना कि चंद्रयान की सफलता के शोर में दिल्ली से अंतरिक्ष में चांद बहुत पास दिखा, लेकिन राजधानी के बहुत पास जलप्रलय से बर्बाद हिमाचल प्रदेश के लोगों की चीख-ओ-पुकार नहीं सुना जाना बहुत कुछ सोचने पर विवश करता है। केन्द्र सरकार ने इस आपदा में कुल मिलाकर लगभग साढ़े आठ सौ करोड़ जारी किए हैं जो कि 8604 करोड़ 88 लाख की भरपाई के लिए बहुत ही कम हैं। प्रदेश में इन हालात के मद्देनजर नजर केन्द्र सरकार से राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की दरकार थी, ताकि प्रदेश के पुनर्निर्माण तथा फिर से पटरी पर लाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होती। इस समय पर्यटकों के न आने से हिमाचल का पर्यटन उद्योग ठप्प हो चुका है। वर्तमान हालात में सेब से लगभग 5500 करोड़ रुपए की आर्थिकी को संभालना प्रदेश सरकार के लिए चुनौती बन गया है। सब्जियों तथा फलों की ढुलाई तथा उन्हें मण्डियों तक पहुंचाना मुश्किल हो गया है। वित्तीय संकट के कारण प्रदेश सरकार कोई आर्थिक मदद देने की स्थिति में नहीं है। यह ठीक है कि राजनीति हमारे जीवन का एक अटूट अंग है, लेकिन इस संकट के समय में प्रदेश की सरकार, प्रदेशवासियों, नीति निर्माताओं, प्रशासकों तथा जनता को व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठ कर प्रदेश के सतत विकास के बारे में सोचना होगा। विभिन्न राजनीतिक दलों को अपनी आत्मा की आवाज को सुन कर प्रदेश के भविष्य के बारे में चिंतन तथा विश्लेषण करना चाहिए। भविष्य की चुनौतियों को मद्देनजर रखते हुए सरकार को निम्नलिखित कड़े फैसले लेने की आवश्यकता है :

1. आपदा के समय हिमाचल प्रदेश को किसी पर निर्भर न होना पड़े, इसलिए विशेष आपदा कोष स्थापित किया जाना चाहिए। इस समय लगभग 10 हजार करोड़ से अधिक के नुकसान की भरपाई के लिए प्रदेश सरकार के पास कम से कम तीन गुना जमा पूंजी अपेक्षित थी। 2. भवन निर्माण के लिए कड़े नियमों तथा उनकी अनुपालना अति आवश्यक है। होटल निर्माण, उद्योग निर्माण, बिजली-पानी परियोजनाओं तथा धर्मस्थल निर्माण की स्थापना के लिए विशेष निरीक्षण सहित अनुमति ली जानी चाहिए। 3. मन्दिरों, मस्जिदों, गुरद्वारों तथा गिरजाघरों के आस्था के सैलाब से बनने वाले बेतरतीब निर्माण कार्यों पर रोक लगनी चाहिए। धार्मिक स्थलों का निर्माण भी नियमपूर्वक होना चाहिए। 4. प्रदेश में आने वाले पर्यटकों के लिए स्पष्ट तथा कड़ी पर्यटक नीति बनाई जानी चाहिए। प्रदेश के चार मुख्य द्वारों पर उनका विधिवत पंजीकरण होना चाहिए। पर्यटकों से उपयोग तथा उपभोग पर्यावरण टैक्स लिया जाना चाहिए। 5. अन्धाधुंध जंगलों के कटान, सडक़ निर्माण, नदी-नालों के अतिक्रमण तथा खड्डों के भूमि कटान पर तुरंत रोक लगनी चाहिए। भू-माफियाओं, खनन माफियाओं, माइनिंग, बजरी, रेत तथा स्टोन क्रशर मालिकों, बिल्डरों तथा ठेकेदारों पर सरकार की लगाम होनी चाहिए। प्रशासन, पुलिस तथा कानून व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त होनी चाहिए। इस संदर्भ में राजनीतिक दखल तथा भाई-भतीजावाद न होकर ‘जीरो टॉलरेंस’ होनी चाहिए। 6. पर्यटन के कारण मनाली, कुल्लू, मंडी, धर्मशाला, शिमला तथा सोलन आदि शहर वर्तमान में कंक्रीट के जंगल बन चुके हैं। इन शहरों में अब बेतरतीब निर्माण पर रोक लगनी चाहिए। भूकम्प, बाढ़, हिमपात, आगजनी तथा किसी भी आपदा की दृष्टि से यह बहुत ही आवश्यक है। 7. प्रदेश स्तर तथा प्रत्येक जिला में आपदा प्रबंधन तथा नियंत्रण के लिए एक विशेष सशक्त तथा सुदृढ़ विभाग की स्थापना की जानी चाहिए जिसमें आपदा प्रबंधन के लिए शिक्षित एवं प्रशिक्षित लोगों की व्यवस्था हो। प्रशासन, एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, पुलिस, होमगार्ड में तालमेल हो। कुछ वर्षों से हिमाचल प्रदेश भी भौतिकवाद तथा विकास की अंधी दौड़ में शामिल हो चुका है। विकास होना चाहिए, लेकिन मानवीय जीवन तथा प्रकृति की कीमत पर नहीं।

प्रो. सुरेश शर्मा

शिक्षाविद


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