एक मुट्ठी भर कोशिश

By: Oct 19th, 2023 12:05 am

मुट्ठी भर कोशिश भी बदल देती है कदमों की रफ्तार, यहां रास्ते हमेशा आपके सफर के मोहता•ा रहे हैं। हिमाचल में अतीत से अब तक कमोबेश समाज, सरकार और प्रशासनिक ढांचे ने कोशिश ही तो की और नतीजे में बदलाव की घंटियां और विकास का सफर तय हुआ। कई मानक हैं इस छोटे से पर्वतीय राज्य के और इसी प्रक्रिया में सुक्खू सरकार भी इतिहास के पन्नों पर समय को चिन्हित करने की कोशिश में दिखाई देती है। परिवहन निगम की बीओडी बैठक, जंगल में पर्यटन की खोज और राजीव गांधी डे बोर्डिंग स्कूल का खाका अपनी कोशिश को सुनहरा बनाने की हिम्मत दिखा रहा है। वनों में पर्यटन का प्रवेश यूं तो सदियों से जीवन की जरूरतें तय करने के साथ-साथ प्रकृति से मुखातिब रहा और इसे प्रमाणित करतीं कई धार्मिक यात्राएं और भेड़-बकरियों को चरागाहों के सान्निध्य में पालते गडरिए मिल जाएंगे, लेकिन इस आर्थिक पहलू के बीच कब वन संरक्षण कानून आ कर खड़ा हो गया, हमें मालूम ही नहीं हुआ। ऐसे में 11 नई ईको टूरिज्म साइट्स का चिन्हित होना, पर्यटकों की बढ़ती कतार की दिशा तय करेगा। यह दीगर है कि इनमें केवल कांगड़ा, मंडी, शिमला और कुल्लू तक ही खाका बन रहा है, जबकि इस तरह की परिकल्पना को हर मंदिर के समीप, झीलों के नजदीक, हाईवे के सान्निध्य और पूरे प्रदेश के नक्शे पर आना होगा। मसलन ऊना-हमीरपुर के जंगल में ईको टूरिज्म का प्रसार शिमला-कुल्लू से भले ही भिन्न हो, मगर जंगल की पलकें वहां भी खुलनी चाहिएं। इसी के साथ ईको टूरिज्म से जुड़ी निगरानी, प्रबंधन, परिवहन तथा मौसम संबंधी जानकारियों का राज्य स्तरीय मैकेनिज्म स्थापित करना पड़ेगा। ऐसी साइट्स के नजदीक कैंपिंग और मनोरंजन की विकरालता का अर्थ अक्सर दिशा भटकने के साथ-साथ मौत के फरमान सरीखा इसलिए भी हो जाता है, क्योंकि हर साल हादसों की वजह में पहाड़, जंगल और मौसम दोषी माने जाते हैं। बिलिंग के पास सोमवार को कार सवार तीन लोगों की मौत ऐसी ही साइट्स के खतरों में शुमार हो रही है।

बहरहाल पर्यटन की कोशिश में परिवहन निगम की बीओडी का उद्देश्य भी आशाजनक है। भले ही यह सरकारी क्षेत्र के कर्मचारियों को वेतन-भत्तों का आश्वासन दिला रही है, लेकिन सुर्खी यह भी है कि चलने के लिए रास्तों का इतंखाब जरूरी है। धार्मिक पर्यटन के रास्ते पर परिवहन की जरूरतों का एक हल सार्वजनिक क्षेत्र में एचआरटीसी के टायरों पर घूम सकता है, लेकिन इसकी व्यापकता में निजी क्षेत्र की भागीदारी भी सुनिश्चित करनी होगी। कहना न होगा कि जहां बीओडी की बैठक के मार्फत हम एचआरटीसी को पूज रहे हैं, वहां सैलानियों को पुष्प गुच्छ सौंप रहे निजी बसों के आपरेटरों से भी मुलाकात होनी चाहिए। परिवहन के तारतम्य में निजी व सरकारी बसों के बीच उत्कृष्ट सेवाओं का बंटवारा रूट परमिट पर नहीं, सेवाओं के आधार पर होना चाहिए। धर्मशाला, मनाली या शिमला की ओर आ रहे सैलानी क्यों हर बार निजी वोल्वो या डीलक्स बसों को प्राथमिकता दे रहे हैं। यह जरूरी है कि सरकार इन्हें भी अपना पार्टनर बनाए। दूसरी ओर दिल्ली व चंडीगढ़ में हिमाचल परिवहन निगम को अपने स्वतंत्र डिपो व बस स्टैंड बनाने चाहिएं। इतना ही नहीं, अंतरराज्यीय मार्गों पर पड़ोसी प्रदेशों के साथ पार्टनरशिप में एचआरटीसी को यात्रियों की सुविधा के लिए अपने ही विश्राम स्थल एवं रेस्तरां विकसित करने चाहिएं, जबकि बदले में प्रदेश के भीतर पड़ोसी राज्यों को यही सुविधा प्रदान करने में मदद करनी होगी। बहरहाल धार्मिक पर्यटन के तहत हरिद्वार, वृंदावन, जयपुर, आगरा, अयोध्या, खाटू श्याम व ऋषिकेश को सीधी व आरामदायक बस सेवाएं प्रदान करके अपनी विश्वसनीयता का प्रसार कर पाएगा। कोशिश के रास्तों पर हिमाचल सरकार अपने ही फैसलों की मिट्टी दुरुस्त कर रही है, तो इसकी प्रशंसा होनी चाहिए। कम संख्या वाले अटल आदर्श विद्यालय मढ़ी (धर्मपुर) में छात्र संख्या की कमी से अब राजीव गांधी डे बोर्डिंग का बोर्ड अपनी प्रासंगिकता चुन रहा है, तो यह संसाधनों के सही इस्तेमाल का नजराना होगा।


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