विधानसभाओं के चुनाव व जाति का प्रश्न

मोदी सरकार को अपदस्थ करने में लगी शक्तियों को जानते-बूझते हुए भी, प्रधानमंत्री बनने की लालसा के चलते, राहुल गांधी हाथ में जाति का झुनझुना बजाते हुए मैदान में घूम रहे हैं…

पांच राज्यों की विधानसभाओं के लिए, जिनकी पांच साल की अवधि समाप्त हो रही है, चुनावों की घोषणा कर दी गई है। नवम्बर में चुनाव होंगे। इनमें से मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति पार्टी की सरकार है और मिजोरम में मिजो नैशनल फ्रंट की सरकार है। मध्य प्रदेश को छोडक़र बाकी सभी राज्यों में एक चरण में ही मतदान होगा। मध्य प्रदेश में दो चरणों में मतदान होगा। परिणाम तीन दिसम्बर को घोषित किए जाएंगे। लेकिन इन भावी चुनावों से ठीक पहले लद्दाख क्षेत्र में कारगिल पर्वतीय विकास परिषद की छब्बीस सीटों के लिए चुनाव हुआ था और उसके परिणाम आठ अक्तूबर को आए हैं। छब्बीस सीटों में से बारह सीटों पर नैशनल कान्फ्रेंस और दस सीटों पर सोनिया कांग्रेस को जीत हासिल हुई। दो सीटें भाजपा के खाते में गईं और दो ही निर्दलीय प्रत्याशियों को मिलीं। पिछली बार भाजपा को एक सीट मिली थी। इस बार उसने दो सीटों जीती हैं और तीसरी सीट पर चालीस मतों से पराजित हुई। इन परिणामों से कांग्रेस और नैशनल कान्फ्रेंस अति उत्साह में हैं। नैशनल कान्फें्रस के अब्दुल्ला परिवार का कहना है कि इससे लोगों ने निर्णय दे दिया है कि सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 का उन्मूलन गलत था। उन्होंने कहा कि इन चुनाव परिणामों से यह भी पता चल गया है देश में भाजपा के विपरीत हवा बहना शुरू हो गई है। वैसे सोनिया गान्धी परिवार और अब्दुल्ला परिवार के पास ऐसी कौन सी साईंस है जिसके आधार पर कुल 56000 पड़े वोटों के परिणाम से 140 करोड़ की जनसंख्या के रुझान का पता लगाया जा सकता है। कारगिल बलतीस्तान का हिस्सा है जिसके बौद्धों ने सदियों पहले बुद्ध का रास्ता छोड़ कर मोहम्मद अली के शिया पंथ को अपना लिया था। शिया पंथ वालों का मुसलमानों से आम तौर पर झगड़ा रहता है।

कश्मीर में भी यह देखा जा सकता है। लेकिन इन चुनावों में राहुल गान्धी ने एक नारा दिया था, जिसकी जितनी संख्या, उसका उतना हक। शिया पंथ वालों का अभी तक यही गिला रहा है कि उनके हिस्से का हक भी देश भर के मुसलमान खा जाते हैं। अब शायद कांग्रेस और नैशनल कान्फ्रेंस उनको उनका हक दिला देगी। लद्दाख में सभी जानते थे कि कारगिल में भाजपा जीत नहीं पाएगी। सोनिया परिवार और अब्दुल्ला परिवार को लगता था कि वे चुनाव आपस में मिल कर लड़ रहे हैं, इसलिए भाजपा कारगिल के नक्शे से गायब हो जाएगी। लेकिन भाजपा ने दो सीटें ही नहीं जीतीं बल्कि पादुकोण की सीट पर भी वह बमुश्किल चालीस वोटों से ही हारी। स्थानीय विश्लेषक इसे भाजपा की जीत बता रहे हैं। अलबत्ता दिल्ली के गणितज्ञों की बात अलग है। अलबत्ता इन चुनावों ने नवम्बर में पांच राज्यों में होने वाले चुनावों में एक नई बहस को हवा दे दी है। बिहार में नीतीश कुमार ने जाति के आधार पर जनगणना करवा दी है और राहुल गान्धी को, जिसकी जितनी संख्या उसका उतना हक, का नारा रटा दिया है। वे बिना सोचे समझे देश भर में घूम घूम कर यह नारा लगा रहे हैं। उन्हें लगता है कारगिल में उन्होंने इस नारे को टैस्ट कर लिया है और अच्छे नम्बरों से पास भी हो गए हैं। इसके आधार पर वे अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं। लेकिन हक तो जाति संख्या के आधार पर ही मिलेगा। इसलिए अब यह खोजबीन होने लगी है कि राहुल गान्धी की जाति क्या है, जिसके आधार पर वे इस देश के प्रधानमंत्री होने का हक मांग रहे हैं।

क्या वे हिन्दू होने के आधार पर यह हक मांग रहे हैं? क्योंकि वे मौके बेमौके जनेऊ पहन कर अपने हिन्दू होने का सबूत देने की कोशिश करते देखे गए हैं। लेकिन नीतीश कुमार ने तो स्पष्ट कर दिया है कि हिन्दू होने मात्र से काम नहीं चलेगा, जाति बतानी होगी। जाति की गणना की जाएगी, उसके आधार पर हिस्सेदारी या हक तय किया जाएगा। बहुत से लोगों ने नीतीश बाबू के इस सिद्धान्त को स्वीकार नहीं किया है। उनका कहना है कि यह चाल अंग्रेजों के रास्ते पर चलते हुए देश को तोडऩे या अराजकता फैलाने के षड्यन्त्र से ज्यादा नहीं है। लेकिन सोनिया परिवार ने तो नीतीश बाबू के इस सिद्धान्त को मान लिया है और उसका प्रचार करता हुआ देश भर में घूम भी रहा है। राहुल गान्धी की बहन प्रियंका गान्धी तो कह रही हैं कि हिमाचल प्रदेश में भी जाति के आधार पर गणना की जाएगी और उसी के आधार पर हिसाब किताब किया जाएगा। इसीलिए यह प्रश्न तेजी से उठ रहा है कि राहुल गान्धी की जाति क्या है? क्योंकि वे जाति के आधार पर हक मांग रहे हैं। इटली में जाति का आधार क्या है, इसके बारे में कहना मुश्किल है, लेकिन भारत में, चाहे सही चाहे ग़लत, जाति पिता की जाति से निश्चित होती है। पंडित जवाहर लाल नेहरु ब्राह्मण थे। उनकी बेटी इंदिरा गान्धी भी ब्राह्मण हुईं। इंदिरा गान्धी का विवाह एक पारसी फिरोज गान्धी से हुआ। राजीव गान्धी उनका बेटा था। इस लिहाज से राजीव गान्धी पारसी हुए। राजीव गान्धी की शादी ईसाई मत की सानिया माईनो से हुई। राजीव गान्धी ने शादी के बाद अपना मजहब नहीं बदला वे पारसी ही रहे। राहुल गान्धी उनके सुपुत्र हैं। कायदे से वह पारसी ही हुए। लेकिन यहां एक प्रश्न और पैदा होता है। पारसी को जाति माना जाए या मजहब।

पारसी लोग जरदोशनी मजहब को मानने वाले हैं। ईरान में भारत की तरह जाति व्यवस्था नहीं है। इस लिहाज से राहुल गान्धी पारसी ही रहे। लेकिन यदि कोई पारसी या कोई विदेशी, उदाहरण के लिए कोई जर्मन या कोई फ्रांसीसी हिन्दू बन जाता है तो उसकी जाति क्या होगी? उसको जाति नहीं मिल सकती। क्योंकि हिन्दुस्तान की जाति व्यवस्था के अनुसार किसी भी व्यक्ति की जाति उसका जन्म ही तय करता है। यदि कोई व्यक्ति यादव पिता के घर जन्म ले लेता है तो वह यादव जाति का हो जाता है, कुर्मी जाति के पिता के घर जन्म ले लेता है तो कुर्मी जाति का हो जाता है। मजहब बदला जा सकता है जाति नहीं। इस लिहाज से राहुल गान्धी की जाति पिता के पक्ष से पारसी ही है। यह भारत की जाति व्यवस्था का घालमेल है जिसके बारे में सदियों से चर्चा हो रही है। इसीलिए कहा जाता है जाति को राजनीति से दूर रखना चाहिए। राज्य को सभी जातियों के समाज को समान भाव से देखना चाहिए और समान भाव से ही उनके उत्थान के लिए काम करना चाहिए। इसीलिए नरेन्द्र मोदी का कहना है कि हमारी सरकार जो योजनाएं चला रही हैं, उसमें जाति के आधार पर लाभ देने की व्यवस्था नहीं है बल्कि जरूरत के आधार पर लाभ देने की व्यवस्था है।

लेकिन विपक्ष मान नहीं रहा। उसको लगता है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी तक विचारधारा या काम के रास्ते से होते हुए पहुंचना बहुत मुश्किल है। जाति का रास्ता शार्टकट है व उसी रास्ते पर काफिला डाल देना चाहिए। जाति का यह रास्ता लालू यादव, अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, मल्लिकार्जुन खडग़े, स्टालिन आदि का देखा भाला रास्ता है। वे इस पर अपने राजनीतिक खेल भी खेलते रहे हैं। लेकिन सोनिया गान्धी के परिवार का रास्ता अब यह रास्ता नहीं है। पंडित जवाहर लाल नेहरु तक यह रास्ता इस परिवार का रास्ता भी था। लेकिन नेहरु को इस बात का श्रेय देना होगा कि उन्होंने राजनीति के लिए जाति के रास्ते का इस्तेमाल नहीं किया। लेकिन इंदिरा गान्धी से जाति की यह गाड़ी पारसी रेल पर सवार होकर पारसी हो गई। लेकिन इसमें राहुल गान्धी का कोई दोष नहीं है। पारसी होना नकारात्मक नहीं है। इस देश के विकास में पारसियों का बहुत योगदान रहा है। जमशेद जी टाटा जैसे अनेक नाम गिनाए जा सकते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से परदे के पीछे नरेन्द्र मोदी की सरकार को अपदस्थ करने में लगी देशी-विदेशी शक्तियों को जानते बूझते हुए भी, प्रधानमंत्री बनने की लालसा के चलते, राहुल गान्धी भी हाथ में जाति का झुनझुना बजाते हुए मैदान में घूम रहे हैं। जिसकी जितनी संख्या उसका उतना हक, इस फार्मूले से राहुल गान्धी की जाति का कितना हक बनता है। लोकसभा की एक या दो सीट या उससे भी कम? लेकिन वे नीतीश के दिए फार्मूले से देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल: kuldeepagnihotri@gmail.com


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