शव संवाद-14

By: Oct 16th, 2023 12:05 am

वहां विभागीय जांच पूरी तरह हांफ चुकी थी। दरअसल सरकार ने बाकायदा घोषणा से तमाम जांचों के बंद लिफाफे खोल कर इनकी दौड़ प्रतियोगिता करवा दी थी, ताकि पता चले कि मौका पडऩे पर किसे फिर से दौड़ाया जा सकता है। वहां अतीत की सोई हुई या मुर्दा हो चुकी जांचें थीं, तो वर्तमान समय को बरगला रहीं जांच भी दौड़ रही थी। हर जांच के ऊपर कई तरह के कवच थे। कोई फाइल कवर पहन कर दौड़ रही थी, तो कोई टूटे डस्टबिन की राख से मुंह ढांप कर दौड़ रही थी। दौड़ रही जांचों के पीछे देश एकदम फिसड्डी, मजबूर सा, देख रहा था कि शायद इस प्रतियोगिता में कोई एक अदद जांच विक्ट्री स्टैंड पर खड़ी हो जाए। उसके मन में फिर शाश्वत प्रश्न पैदा हो रहा था कि जांच अक्सर दौड़ती क्यों है और उसके भीतर दौडऩे का जज्बा भरा कैसे जाता है। दरअसल वहां दर्शकों में वे तमाम लोग बुलाए गए थे, जिनके कारण ये जांच शुरू हुई थीं। वहां बैठे नेता अपनी-अपनी जांच को सपोर्ट कर रहे थे, तो नौकरशाह हर जांच को हवा दे रहे थे। कई विभागों के उच्च अधिकारी भी मौके का फायदा उठाते हुए वहां इस दौड़ की हौसला अफजाई कर रहे थे। विपक्षी दलों के कारण ही इस प्रतियोगिता में जांच प्रतिभागियों की संख्या बढ़ी थी। उद्घाटन स्वयं प्रधानमंत्री ने किया था, इसलिए जनता को तो यह इवेंट भी मोहित कर रहा था। वहां सटोरिए भी थे। हर जांच पर सट्टे का बाजार गर्म था। सीधे किसी भी जांच पर सट्टा नहीं लगा था, मगर बाजार इस विश्वास से गर्म था कि पहले की तरह इस प्रतियोगिता का भी कोई परिणाम नहीं निकलेगा। जिन दर्शकों ने चुनावी प्रतियोगिताओं में सिर्फ सीटियां बजाई थीं, वे आज बिना यह परवाह किए कि कौनसी जांच किसके पीछे पड़ी है, जोरदार ढंग से सीटी बजा रहे थे।

हद यह थी कि प्रतियोगिता की तमाम शर्तों के बावजूद मौके पर दौड़ रही जांचें, अब निष्कर्ष के बिना सिर्फ दौड़ रही थीं, ताकि पता चले कि हर जांच की भी कोई न कोई सांस होती है। दर्शक अब जांच से सांस मिला रहे थे। उद्घोषणाओं के मुताबिक उन्हें निर्णायक मोड़ पर रुकना था, लेकिन ये सभी लाइन क्रॉस करके भाग रही थीं। पहली बार देश भागमभाग में सरकार की नीयत पर शक नहीं कर रहा था कि तभी प्रधानमंत्री फिर प्रकट हुए, ‘देखिए आजादी के इतने सालों में पहली बार हमने जांच को इतनी रफ्तार दी कि हर जांच एक-दूसरे पर भारी पड़ रही है। जब तक आप सीटी बजाते रहेंगे, ये दौड़ती रहेंगी। हम जांच में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करेंगे। जो जांच पर जितनी बार सीटी बजाएगा, उसी हिसाब से उसके बैंक खाते में सरकार पैसे डालेगी।’ यह घोषणा इतने जोर से हुई कि लगभग सोया हुआ बुद्धिजीवी जाग गया। वह देश की हर जांच में ऐसे फंसा था कि खुद जांच की तरह वर्षों से भाग रहा था। खैर उसने ठाना कि वह अपनी आंखों के सामने आज देख ही लेगा कि देश और जनता की निगाहों के सामने कौनसी जांच विजयी घोषित होती है। एक बार फिर जांच प्रतियोगिता में बुद्धिजीवी की हाजिरी लगी और वह देखने लगा कि देश में हर जांच अपने से आगे निकल गई, जांच पर भारी पड़ रही थी। इन जांचों ने प्रतियोगिता के सारे नियम तोड़ डाले थे। अपने ही खून से लथपथ हर जांच को आगे निकलना था, इसलिए बुद्धिजीवी मान चुका था कि यह देश उसे सिर्फ दिखा सकता है, लेकिन तभी उसने एक विभागीय जांच को गिरते हुए देखा। प्रतियोगिता की बाकी जांच उसके ऊपर से गुजर रही थीं। उससे देखा नहीं गया। बुद्धिजीवी ने कंधे पर एक और मरी हुई जांच रखी और शमशानघाट की ओर रुखसत हो गया। वह इसे जला पाता, इससे पहले घटिया सामग्री के कारण शमशानघाट के ढहने की खबर आ गई। शमशानघाट उसी विभाग ने बनाया था जिसके खिलाफ पहली जांच का शव उठाए बुद्धिजीवी आहिस्ता-आहिस्ता चल रहा था।

निर्मल असो

स्वतंत्र लेखक


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