सडक़ों पर सरपट दौड़ती मौत

By: Oct 12th, 2023 12:05 am

आखिर कब हमारे नागरिकों को शांतिपूर्ण, सुखमय एवं भयमुक्त वातावरण में यात्रा करने की सुविधाएं नसीब होंगी? सरकारों एवं प्रशासन को महज बैठकों वाले दौर से ऊपर उठकर धरातल पर सुरक्षित सफर का खाका खींचना होगा और दोषी वाहन चालकों पर कड़ी कार्रवाई करनी होगी…

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का मानना है कि भारत में सडक़ दुर्घटनाओं को कम करने और हताहतों की संख्या में कमी लाने की कोशिशें तब तक कामयाब नहीं होंगी जब तक नागरिक यातायात नियमों का पालन नहीं करेंगे और अपने वाहन चालन व्यवहार में बदलाव नहीं लाते हैं। वे अपने वक्तव्य में नागरिकों को तो यातायात नियमों का अनुपालन करने की सीख देते नजर आते हैं, लेकिन प्राइवेट बस, ट्रक, टैक्सी चालकों का क्या करें जो हिमाचल प्रदेश के संकरे बाजारों में दनदनाते अपनी गाडिय़ां दौड़ाते फिरते हैं, ऊपर से राहगीरों और नागरिकों को गरियाते भी हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इनके आका ट्रांसपोर्ट माफिया हैं जिन्हें राजनीतिक संरक्षण हासिल होता है। इन हालात में आम नागरिक मन मसोस कर रह जाता है। केंद्रीय सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी मानते हैं कि भारत 2024 तक सडक़ दुर्घटनाओं को 50 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएगा। उनका मानना है कि सरकार और अन्य हितधारकों की ओर से सडक़ सुरक्षा मानकों से समझौता करने वाली कई कमियों के कारण अभी यह लक्ष्य हासिल करना संभव नहीं है।

रोड एक्सीडेंट सैंपलिंग सिस्टम (इंडिया) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2021 में सडक़ दुर्घटनाओं में 1.54 लाख लोगों की जानें चली गई थी। वर्ष 2022 में हताहतों की संख्या 1.31 लाख थी। 2021 में सडक़ दुर्घटनाओं में कम से कम 3.84 लाख लोग घायल हुए, जिनमें से कुछ गंभीर रूप से घायल हुए थे। हमारे देश में हर साल लगभग पांच लाख सडक़ दुर्घटनाएं होती हैं और 1.5 लाख मौतें होती हैं। जिन लोगों की जान चली जाती है, उनमें से ज्यादातर की उम्र आमतौर पर 18-34 वर्ष के बीच होती है। वहीं हिमाचल प्रदेश पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019 में 15.1 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत की तुलना में पहाड़ी राज्य में प्रति 10 हजार वाहनों पर सडक़ दुर्घटनाएं 17.1 प्रतिशत थीं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 5.1 प्रतिशत की तुलना में प्रति 10 हजार वाहनों पर आकस्मिक मृत्यु की संख्या सात प्रतिशत थी। राज्य में दुर्घटनाओं के 22 प्रतिशत मामलों में पैदल चलने वालों की मौत हुई है, जबकि आमने-सामने की टक्कर और सडक़ से नीचे उतरे वाहनों के मामलों में से प्रत्येक में 22 प्रतिशत दुर्घटनाएं हुई हैं। पिछले छह वर्षों के पुलिस आंकड़ों के विश्लेषण के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में 80 प्रतिशत से अधिक दुर्घटनाएं दर्ज की गईं। राष्ट्रीय राजमार्गों पर सबसे अधिक दुर्घटनाएं और मौतें हुईं, उसके बाद संपर्क सडक़ों और राज्य राजमार्गों पर और हिट एंड रन की घटनाओं में लोग मारे गए। पुलिस के मुताबिक पैदल चलने वालों की अधिकांश दुर्घटनाएं रात में कम दिखाई देने के कारण होती हैं। सुबह स्कूल जाने वाले वाहनों के अधिकांश ड्राइवर पहले गांव-गांव जाकर बच्चों को अपने वाहनों में बैठाते हैं, फिर समय पर स्कूल पहुंचने की जद्दोजहद के चलते तेज गति से गाडिय़ों को दौड़ाते हैं, आखिर दुर्घटनाएं नहीं होंगी तो और क्या होगा? आज हिमाचल प्रदेश की सडक़ों पर बढ़ती वाहनों की भीड़ के बीच बस चालकों द्वारा अनियंत्रित तथा बदहवास होकर बसों को चलाना कहीं न कहीं आम आदमियों की जिंदगियों को खतरे में डालता है। यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर बढ़ते सडक़ हादसों के कसूरवार इन बस ड्राइवरों के हौसले इतने बुलंद क्यों हैं?

क्या पुलिस और परिवहन अधिकारियों द्वारा सभी ड्राइवरों के वाहन परिचालन पर नजर रखी जा रही है? क्या यह जांचा भी जा रहा है कि कहीं ड्राइवर-कंडक्टर ने दिनदहाड़े ही तो शराब नहीं पी रखी है और वे नशे की हालत में सडक़ पर गाड़ी को दौड़ा रहे हैं? क्या ड्राइवरों को लाइसेंस जारी करने की पूरी प्रक्रिया में तय मानकों का ध्यान रखा गया है? अन्यथा यह तथ्य किसी से छुपा हुआ नहीं है कि अधिकतर मामलों में वाहन चलाने के लाइसेंस की प्रक्रिया खामियों से युक्त है। सडक़ों की खस्ता हालत, क्रैश बैरियर्स का न होना, ब्लैक स्पॉट, तेज रफ्तारी, पैराफिट का न होना, नशे में वाहन चलाना आदि कुछ ऐसे मूलभूत कारण हैं जो रोजाना होती दुर्घटनाओं की कहानी बयां करते हैं। बाजारों में इक्का-दुक्का पुलिस कर्मियों के अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग पर कहीं पर भी ट्रैफिक पुलिस और हाईवे पुलिस के लोग दिखाई नहीं पड़ते हैं। यात्रियों को ढोने की मारामारी में पहले बस ड्राइवर आधा-आधा घंटा बस अड्डों या चौकों पर खड़े रहते हैं, फिर अपना टाइम पूरा करने की गर्ज के चलते बेतहाशा स्पीड से बसों को दौड़ाते हैं। इन पर कौन लगाम कसे? सडक़ दुर्घटनाओं में 30 प्रतिशत से अधिक संख्या बच्चों और 25 वर्ष से कम आयु वाले युवाओं की होती है। ऐसे में इनके परिवारों को होने वाली पीड़ा का अंदाजा लगाया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश में सडक़ दुर्घटना डाटा प्रबंधन प्रणाली की शुरुआत जुलाई 2015 में हुई तो हिमाचल सडक़ दुर्घटनाओं का डाटा एकत्र करने वाला देश का पहला राज्य बना था। इसे ब्रिटेन की कंपनी टीआरएल लिमिटेड द्वारा केरल की एक्सपीरियन टेक्नोलॉजी इंडिया के सहयोग से तैयार किया गया था।

इसके द्वारा प्रदेश में दुर्घटना संभावित स्थल चिन्हित करने, घटना के कारणों को जानने, इनसे संबंधित आंकड़े एकत्रित करने तथा इनका आकलन कर सुधार के लिए समुचित कदम उठाने की सोच थी। लेकिन क्या वास्तव में ही हम इस प्रणाली का भरपूर फायदा उठा पाए हैं? हिमाचल में आज परमिट, टाइम टेबल, रूट्स, टैक्स, सडक़ दुर्घटनाओं में हुई मौतों के मुआवजों और प्रदूषण को लेकर अनेकों मामले अदालतों में चल रहे हैं। निजी और सरकारी बसों के ड्राइवरों में समय सारिणी और सवारियों को लेकर होती मारपीट लोगों में भय पैदा करती है। आखिर कब हमारे नागरिकों को शांतिपूर्ण, सुखमय एवं भयमुक्त वातावरण में यात्रा करने की सुविधाएं नसीब होंगी? सरकारों एवं प्रशासन को महज बैठकों वाले दौर से ऊपर उठकर धरातल पर सुरक्षित सफर का खाका खींचना होगा और दोषी वाहन चालकों, खासकर ड्राइवर के भेष में वाहन चला रहे गुंडों पर कड़ी कार्रवाई करनी होगी। तभी आम जनता भयमुक्त होकर सडक़ों पर विचरण कर सकेगी।

अनुज आचार्य

स्वतंत्र लेखक


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