आपदा राहत की चादर

By: Oct 2nd, 2023 12:05 am

अंतत: हिमाचल सरकार ने अपने सीमित संसाधनों को निचोड़ कर आपदा राहत की चादर बिछाई है। वित्तीय मदद की एक नई परिपाटी खड़ी करके सुक्खू सरकार ने कुल 4500 करोड़ का आपदा राहत पैकेज बनाया है, जिसमें से सरकार 3500 करोड़ अपने संसाधनों से, जबकि 1000 करोड़ मनरेगा के तहत खर्च करेगी। आइंदा साधारण नुकसान की वित्तीय मदद के लिए भी एक लाख तक का प्रावधान हो रहा है, जबकि पूरी तरह क्षतिग्रस्त इमारतों को सरकार सात लाख तक का राहत प्रबंध कर रही है। सात जुलाई से तीस सितंबर के दौरान क्षतिग्रस्त मकानों, दुकानों या अन्य संपत्तियों को यह धन उपलब्ध होगा। इससे पहले सरकार अपने तौर पर केंद्र के पास बार-बार यह फरियाद करती रही है कि राज्य में आई आपदा को राष्ट्रीय घोषित करके राहत पैकेज निर्धारित किया जाए, लेकिन हिमाचल की मदद में अब तक मोदी सरकार का पैगाम नहीं आया है। एक अनुमान के अनुसार नुकसान की एक लंबी कहानी निजी तौर पर ही सोलह हजार के करीब भवनों को आंशिक या पूरी तरह बर्बाद कर चुकी है, जबकि राज्य की अपनी संपत्तियों का लेखा-जोखा बर्बादी के भयावह नुकसान का पीड़ाजनक अध्याय जोड़ रहा है। जाहिर तौर पर सरकार अब विकास के तयशुदा लक्ष्यों के बीच आपदा राहत पैकेज का बंदोबस्त कर रही है, तो कुछ क्षेत्रों के संसाधन कम होंगे। यह बजटीय प्रावधानों का ऐसा प्रबंधन है, जो राशियों के सामान्य आबंटन को आपदा राहत के मकसद से जोड़ रहा है।

बुरे वक्त में दोस्त ही ढूंढे जाते हैं, लेकिन अकेला खड़ा हिमाचल केंद्र की अदालत में अपना केस हार चुका है। यह दीगर है कि देश के कुछ राज्यों और मुख्यमंत्री राहत कोष में, जनता व अन्य स्रोतों से आया धन राहत की पैरवी में मानवीय योगदान की भावना को आगे बढ़ा रहा है। स्वयं मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी अपनी जीवनभर की बचत यानी 51 लाख की राशि इसी पुण्य कार्य को अर्पित करके उदाहरण बनाया है। देखना होगा कि 4500 करोड़ का राहत पैकेज किस-किस मद में कटौती करता है। फिलहाल एक निर्णय में हिमाचल सरकार पांच नगर निगमों की 33.74 करोड़ की ग्रांट इन एड की राशि वापस ले रही है, जबकि मनरेगा के तहत आबंटित एक हजार करोड़ भी आपदा के जख्म भरेंगे। ऐसे बहुत सारे व्यय या विकास के कार्य हैं, जिन्हें सरकाया जा सकता है, लेकिन सर्वप्रथम राज्य की फिजूलखर्ची, सरकार का आकार तथा घाटे का कारोबार रोकना होगा। कम से कम आपदा राहत के दौर में सरकार की कार्रवाइयों में बचत का एहसास कराया जाए। पेट्रोल के बिल, सरकार के काफिले और रूटीन में प्रशासनिक व्ययों पर अंकुश लगना चाहिए।

आने वाले कुछ सालों तक वर्तमान परियोजनाओं को ही अमलीजामा पहनाया जाए। घाटे के तमाम निगमों और बोर्डों को सबक सिखाने के लिए बचत के अलावा कमाने के लक्ष्य दिए जाएं। ऐसी बहुत सारी फाइलें यूं ही घूम रही हैं, तो इस दौरान लालफीताशाही पर जोरदार ढंग से रोक लगा कर वर्षों की खामी को सुधारा जा सकता है। अगर धन नहीं है, फिर भी आपदा राहत पर त्वरित रूप से पैकेज देने की अनिवार्यता है, तो नई इमारतों के अनावश्यक प्रदर्शन रोकने के अलावा सरकार की मशीनरी अपनी लेनदारी को वसूलने का कोई भी अवसर न गंवाए। बेशक राहज पैकेज की उदारता का स्वागत होगा, लेकिन इसके नाम पर कटौतियों का भी पारदर्शी हिसाब होना चाहिए। अगर पांच नगर निगमों से एक झटके में 33.74 करोड़ की ग्रांट इन एड वापस ले ली गई तो किसी एक को बचाते-बचाते कई अन्य नागरिकों की जिंदगी मुश्किल नहीं होनी चाहिए। ये नए नगर निगम हैं, जो अभी बाल्यकाल में ही संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। इस तरह तो नगर निगमों की सीमा में इन शहरों को धीमा जहर मिल जाएगा।


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