एमएसपी की चुनावी बढ़ोतरी

By: Oct 20th, 2023 7:24 pm

भारत सरकार के कृषि मूल्य आयोग ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाया है। गेहूं रबी के मौसम की मुख्य फसल होती है। 2023-24 के लिए एमएसपी में बढ़ोतरी 150 रुपए कर गेहूं के दाम 2275 रुपए प्रति क्विंटल तय किए गए हैं। यह अभी तक की सबसे अधिक वृद्धि है, क्योंकि यूपीए सरकार के दौरान 2006-07 और 2007-08 में लगातार दो साल फसलों के एमएसपी में बढ़ोतरी की गई थी, लेकिन तुलना में वे कम थीं। यह एमएसपी वृद्धि महज किसानों के कल्याण और उनकी आर्थिक स्थिति के मद्देनजर नहीं है। इससे किसानों की आमदनी दोगुनी होने लगेगी, ऐसे कोई आसार नहीं हैं। दरअसल बुनियादी व्यवस्था में ही खोट है, क्योंकि किसान की फसल एमएसपी पर नहीं खरीदी जाती। सरकारी खरीद का लाभ बेहद सीमित है। उसका फायदा 10-12 फीसदी किसानों को भी नसीब नहीं है, लिहाजा किसान कृषि की मंडियों में ही फसल बेचने को विवश है। वहां कई तरह की कटौतियों के बाद किसान के हाथ एमएसपी तक नहीं लगता। फसल बेचना उसकी मजबूरी है, लिहाजा किसान कम दाम पर भी फसल बेचने को विवश है।

यही सवाल कई दशकों से किसानों के सामने ‘यक्ष’ की तरह मौजूद है। मोदी सरकार के 10 साल भी गुजर जाएंगे, लेकिन एमएसपी का सवाल अनुत्तरित रहेगा। वैसे उसने एक समिति का गठन कर रखा है, जिसमें कुछ किसान प्रतिनिधि भी शामिल हैं, लेकिन वह समिति क्या कर रही है, उनका विमर्श किस निष्कर्ष तक पहुंचा है, क्या एमएसपी को कानूनी दर्जा देने की सिफारिश पर सहमति बन चुकी है, लेकिन लंबा समय बीतने के बावजूद कुछ भी सार्वजनिक नहीं किया गया है। अभी एमएसपी की घोषणा करने के आर्थिक के साथ-साथ राजनीतिक, चुनावी आयाम भी हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले एमएसपी में यह आखिरी बढ़ोतरी है। इसके अलावा, पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया जारी है। नवम्बर में मतदान होंगे और 3 दिसंबर को जनादेश घोषित किए जाएंगे। इन राज्यों में मध्यप्रदेश और राजस्थान में गेहूं रबी मौसम की प्रमुख फसल है। एमएसपी में बढ़ोतरी की गई है, जाहिर है कि किसानों के वोट बैंक पर निगाहें रही होंगी। वैसे मोदी सरकार ने अपने साढ़े नौ साल के कार्यकाल में गेहूं का एमएसपी 875 रुपए क्विंटल बढ़ाया है, जबकि यूपीए सरकार के दौरान यह बढ़ोतरी 770 रुपए क्विंटल की गई थी। धान का एमएसपी भी मौजूदा सरकार ने 873 रुपए क्विंटल बढ़ाया है, लेकिन यूपीए सरकार के 10 साला कालखंड में यह वृद्धि 760 रुपए की गई थी। वैसे ऐसी तुलनाएं ही गलत हैं, क्योंकि मुद्रा के अवमूल्यन और मुद्रास्फीति को भी ध्यान में रखना होता है। बहरहाल एमएसपी में बढ़ोतरी की घोषणा तब की गई है, जब सरकारी भंडारणों में गेहूं एक अक्तूबर को 239.95 लाख टन बताया गया है। यह न्यूनतम स्टॉक 205.2 लाख टन से कुछ ही अधिक है।

नई फसल की संभावनाओं को लेकर भी कुछ चिंताएं हैं। देश के प्रमुख जलाशयों में बीते साल जलस्तर 82.4 फीसदी था। बीते 10 सालों में यह औसत 94.4 फीसदी रहा है। एक ताकतवर अल नीनो के सर्दियों से लेकर मई तक जारी रहने की संभावनाएं हैं, नतीजतन वह बारिश को प्रभावित करेगा। सर्दियों में ही कुछ बारिश आती है, तो नमी के साथ-साथ तापमान भी कम रहेगा। रबी की फसल के लिए यह बहुत जरूरी मौसम है। मोदी सरकार आम चुनाव के मद्देनजर आपूर्ति की कमी को लेकर किसी भी तरह का जोखिम उठाने के पक्ष में नहीं है, लिहाजा गेहूं का भंडारण किया जा रहा है। इसी के संदर्भ में सरकारी खरीद भी बढ़ेगी और किसानों को एमएसपी मिल सकेगा, लेकिन ऐसे कितने फीसदी किसान होंगे? यदि आपूर्ति का कोई संकट सामने हो सकता है, तो सरकार गेहूं आयात भी कर सकती है। आयात सस्ता पड़ता है, लेकिन सवाल है कि हमारे किसान गेहूं पैदा करने में आत्मनिर्भर क्यों नहीं?


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