ग़ज़ा और सियार…

By: Oct 17th, 2023 12:05 am

अपने देश में पिछले पाँच महीनों से गृह युद्ध की आग में झुलसते राज्य मणिपुर जाने का न उन्हें कभी खय़ाल आया, न ही उनके मालिक ने उन्हें कभी इसका इशारा दिया। इसलिए न वे मणिपुर गए और न वहाँ जाकर नाचे। लेकिन ऐसा नहीं कि वे नाचना भूल गए हैं। वे नाचते हैं और हर रोज़ नाचते हैं। चौबीस गुणा सात नाचते हैं। नफरत की ठुमरी और गीतों पर। लेकिन केवल अपने मालिक के हुकुम पर। अपने मालिक के आदेश पर उन्होंने दशक भर पहले नैतिकता के सारे वस्त्र उतार फैंकने के बाद बेशर्मी के गहने पहन लिए थे। तब से लेकर आज तक अपने मालिक की ताली या सीटी बजते ही सारे हर रोज़ नाचने लगते हैं और पूरे जोश-ओ-खऱोश में नाचते हुए अपने घुँघरू भी तोड़ डालते हैं। विश्व गुरू के झूठ का गुणगान करते हुए अब उन्हें मीडिया की बजाए मोदिया सुनने और कहने में ज़्यादा रस और आनन्द आता है। टीवी चैनलों पर दिखने वाले ये नचनिए अब इस बात की खुले तौर पर मुनादी करने से नहीं झिझकते कि वे सरकार के घोषित भाँड हैं। अपना ख़र्चा घटाने के लिए अगर केन्द्र और राज्य सरकारें चाहें तो अपने-अपने सूचना प्रसारण मंत्रालय और विभाग बंद कर सकते हैं। धर्म और राष्ट्रवाद के फ्य़ूजऩ पर नाचने वाले ये नचनिए और अंधभक्त आका का इशारा मिलते ही दिमाग़ को ताखे पर रख कर सियारों की तरह हुआ-हू करने लगते हैं। अगर आका का मुँह उत्तर की ओर हो तो अँधेरों में भटकने वाले ये सियार उत्तर की ओर हुआ-हू करते हैं और दक्षिण की ओर हो तो दक्षिण की ओर। इजऱायल के पक्ष में जुमलोदी का पहला ट्वीट आते ही नचनिओं के भेष में रंगे सियार इजऱायल की ओर कूच कर गए। लेकिन गज़ा पट्टी में निर्दोषों पर की जा रही हवाई बमबारी या ज़मीनी हमले की कवरेज करने की बजाए इजऱायल में कवरेज का अभिनय करते हुए नाच रहे हैं। यही हाल अंधभक्त सियारों का है।

बनारस में काला कोट पहनने वाले सियार सडक़ों पर बिना यह सोचे इजऱायल के पक्ष में प्रदर्शन करते रहे कि उनका देश भी ऐसी परिस्थितियों से दो-चार है। कई धार्मिक सियार इजऱायल की जीत के लिए हवन कर रहे हैं। लेकिन इन सियारों ने मणिपुर में शाँति बहाली के लिए न कोई यज्ञ किया और न हवन। सत्ताई गलियारों के सियारों ने भी अपने आका की दिशा देखकर इजऱायल के पक्ष में सोशल मीडिया पर नाचना शुरू कर दिया। लेकिन यह क्या? आका ने एक बार पुन: अपना सुर बदला है। अब वह फलस्तीन के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है। सियारों ने बिना कुछ सोचे अपने मालिक के सुर में सुर मिलाना शुरू कर दिया है। लेकिन तब तक डरने की कोई बात नहीं जब तक सियारों का पेट भरा है। टके सेर भाजी है और टके सेर खाजा। समझ में नहीं आता कि अस्सी करोड़ से अधिक लोगों को मुफ़्त राशन बाँटने का दावा करने वाला विश्व गुरू वैश्विक भूख सूचकांक में पिछले एक दशक में दो गुलाटियाँ मारने के बाद भुक्खड़ देशों के पायदान में सबसे नीचे कैसे पहुँच गया। पर धर्म और राष्ट्रवाद की जलेबी की चाशनी में डूब कर मरने को आमादा ये चींटियाँ कभी नहीं सोचतीं कि हलवाई कभी ख़ुद चाशनी में नहीं डूबता। अगली बार जलेबियाँ छानने से पहले हलवाई चाशनी में ख़ुदकुशी कर चुकी चींटियों को निकाल कर बाहर फैंक देता है। लेकिन ख़ुदकुशी पर आमादा इन चींटियों को भला कौन रोक सकता है। अँधों के हाथ धर्म और राष्ट्रवाद की बटेर लगी है। धर्म के साथ राष्ट्रवाद का तडक़ा लगाते सियारों को इस बात का जऱा भी खय़ाल होता तो शायद शाँति के संदेश के साथ निर्दोष फलस्तीनियों के साथ खड़ा देश वास्तव में विश्व गुरू बनने की ओर क़दम बढ़ा चुका होता। लेकिन इन्तज़ार, थोड़ा और इन्तज़ार। धर्म और राष्ट्रवाद की कड़ाही के बाद विधानसभाओं के चुनावों के लिए जाति जनगणना की कड़ाही चढ़ चुकी है। पूरी उम्मीद है कि धर्म और राष्ट्रवाद से ऊब चुकी चींटियाँ अब जाति जनगणना की चाशनी में डूबने के लिए क़दमताल शुरू कर देंगी। चुनाव तो आते-जाते रहेंगे। चींटियाँ अमर रहें।

पीए सिद्धार्थ

स्वतंत्र लेखक


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