चीन को आर्थिक टक्कर देगा भारत

कंप्यूटर चिप बनाने वाली अमेरिकन कंपनी माइक्रोन के सहयोग से देश में सेमीकंडक्टर के निर्माण से अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदलनी होगी। विदेशी निवेश को बढ़ाने के लिए एफडीआई नीतियों और उदार निवेश व्यवस्थाओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा। हमें प्रयास करना होगा कि दुनिया के विकसित और विकासशील देश आर्थिक डगर पर भारत को अधिक तरजीह दें…

यकीनन इस वर्ष 2023 में जी-20 की अध्यक्षता और जी-20 शिखर सम्मेलन की ऐतिहासिक सफलता के बाद जी-20 से प्राप्त नई शक्ति को मुठ्ठी में लेकर भारत चीन को आर्थिक टक्कर देने की स्थिति में दिखाई दे रहा है। गौरतलब है कि जी-20 शिखर सम्मेलन के इतर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक बार फिर क्वाड संगठन के प्रति अपने-अपने देश की न सिर्फ प्रतिबद्धता जताई है, बल्कि सीधे तौर पर चीन को यह संदेश भी दिया है कि क्वाड के सदस्य देश अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान आर्थिक रूप से एक-दूसरे को और मजबूती देंगे। साथ ही मौजूदा वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला व्यवस्था की जगह एक दूसरी वैकल्पिक व्यवस्था को मूर्त रूप देंगे। जी-20 के सफल आयोजन के साथ दुनिया में यह बात उभरकर सामने आई है कि ‘चीन प्लस वन’ रणनीति के तहत भारत दुनिया के सक्षम व भरोसेमंद देश के रूप में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला वाले देश के रूप में नई भूमिका निभा सकता है। दुनिया का कोई दूसरा देश इस तरह के परिचालन के पैमाने और आकार की पेशकश नहीं कर सकता, जैसा भारत में उपलब्ध है।

इसके अलावा जी-20 में घोषित हुए भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक कारिडोर (आईएमईसी) के माध्यम से रेल एवं जल मार्ग से भारतीय कंपनियों के लिए नए अवसरों का ऐसा ढेर लगाया जा सकेगा जिससे चीन की तुलना में भारत की प्रतिस्पर्धा क्षमता भी बढ़ जाएगी। यह कोई छोटी बात नहीं है कि जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद इस समय अमेरिका और ब्रिटेन सहित दुनिया के विभिन्न देशों के प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की स्पेशल रिपोर्टों में यह बात भी एकमत से कही जा रही है कि जी-20 की नई शक्ति से सुसज्जित भारत नए वैश्विक आपूर्तिकर्ता देश की भूमिका में उभरकर सामने आया है और चीन को आर्थिक टक्कर देने की स्थिति में है। ऐसे में जहां भारत एक ओर अधिक रणनीतिक प्रयासों से भारतीय बाजार में चीन के प्रभुत्व को कम कर सकता है, वहीं दूसरी ओर दुनिया के बाजार में उद्योग-कारोबार, निर्यात और निवेश के अधिक मौकों को मुठ्ठियों में ले सकता है। नि:संदेह भारत के द्वारा चीन को आर्थिक टक्कर देने की मजबूत स्थिति के कई कारण उभरकर दिखाई दे रहे हैं। वैश्विक आर्थिक-वित्तीय संगठनों की नई रिपोर्टों में उभरकर दिखाई दे रहा है कि चीन की अर्थव्यवस्था में सुस्ती का दौर है और भारत की विकास दर चीन की तुलना में तेजी से बढ़ रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है। मॉर्गन स्टेनली ने अपनी रिपोर्ट में भारत को एशिया के सबसे उभरते बाजारों की लिस्ट में पहले नंबर पर रखा है। भारत में ढांचागत विकास की तेजी, बढ़ते विदेशी निवेश, बढ़ते शेयर बाजार, मजबूत राजनीतिक नेतृत्व, मध्यम वर्ग की ऊंची क्रय शक्ति, कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती, बढ़ते हुए कामकाजी उम्र वाले लोग जैसे विभिन्न कारण भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत बढ़ा रहे हैं। इतना ही नहीं, दुनियाभर में कल तक जिस भारत को सिर्फ एक बड़े बाजार के रूप में देखा जाता था, वह अब वैश्विक चुनौतियों के समाधान का हिस्सा बन गया है।

लंबे समय तक भारत को एक अरब से अधिक भूखे पेट वाले लोगों के राष्ट्र के रूप में जाना जाता था, लेकिन अब भारत एक अरब से अधिक आकांक्षी प्रतिभाओं और दो अरब से अधिक कुशल हाथों और युवाओं के राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है। भारत ने दुनिया का दृष्टिकोण बदल दिया है। कोविड महामारी के दौर में जहां भारत ने 150 से अधिक देशों को कोरोना दवाओं व टीकों की आपूर्ति की, वहीं अब तक वैश्विक मंदी की निराशाओं के बीच भारत सक्षम व भरोसेमंद आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) वाले देश के रूप में उभरकर दिखाई दे रहा है। स्थिति यह है कि चीन की बढ़ती हुई आर्थिक समस्याओं और आपदाओं के बीच भारत के लिए आर्थिक अवसरों का नया दौर आकार ग्रहण करते हुए दिखाई दे रहा है। चीन-ताइवान के बीच चरम पर पहुंची तनातनी और चीन के द्वारा अपनाई जा रही अमेरिका के विरोध की रणनीति के कारण चीन से वैश्विक फंड मैनेजर्स और विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) का मोह भंग होने लगा है। घटती मांग के कारण ये चीन के शेयर बाजार से धन निकालकर भारत सहित अन्य देशों में भेज रहे हैं। मल्टीनेशनल कंपनियों ने भारत, वियतनाम और मैक्सिको जैसे देशों में फैक्टरियां डालना शुरू किया है। चीन से निकलकर एप्पल, सैमसंग जैसी कई बड़ी कंपनियां भारत में काम शुरू कर चुकी हैं। इतना ही नहीं, विदेशी निवेशक अगले 10 साल में चीन की अर्थव्यवस्था को लेकर ज्यादा आशान्वित नहीं हैं। वे भारत में अपना आर्थिक भविष्य देख रहे हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि जी-20 से भारत की बढ़ी हुई आर्थिक ताकत के बावजूद भारत के द्वारा चीन की अर्थव्यवस्था को देखते ही देखते पीछे छोडऩा कठिन व चुनौतीपूर्ण है। जहां अप्रैल 2023 में भारत जनसंख्या के मामले में तो चीन को पछाड़ चुका है, वहीं विकास के मामले में आज भी भारत बहुत पीछे है।

दुनिया में अमेरिका के बाद चीन की अर्थव्यवस्था दूसरे क्रम पर है, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था 5वें क्रम पर है। वैश्विक रिपोर्टों के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार करीब 3.7 लाख करोड़ डॉलर हो गया है। जबकि चीन की अर्थव्यवस्था का आकार भारत से पांच गुना अधिक है। चीन की प्रति व्यक्ति आय भी भारत से पांच गुना अधिक है। साथ ही अगस्त 2023 में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार से चीन के विदेशी मुद्रा भंडार का आकार पांच गुना है। ऐसे में इस समय दुनिया के करोड़ों लोग अर्थविशेषज्ञों से यह पूछ रहे हैं कि भारत आर्थिक वृद्धि को गति देकर चीन की अर्थव्यवस्था को कैसे पीछे छोड़ सकता है? इसके जवाब में अर्थविशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा संभव है, क्योंकि जहां जी-20 से भारत को दुनिया के विकसित और विकासशील देशों से विकास की अभूतपूर्व संभावनाएं मिली हैं, वहीं अब चीन दुनिया के इतिहास का ऐसा पहला देश बनेगा जो अमीर होने से पहले बूढ़ा हो जाएगा। चीन में 2050 तक करीब 70 फीसदी आबादी ऐसी होगी जो काम करने वाले लोगों पर निर्भर होगी। फिलहाल यह 35 फीसदी है। नि:संदेह चीन से आगे निकलने के लिए भारत को कई बातों पर ध्यान देना होगा। भारत के द्वारा कार्यकुशलता के स्तर को बढ़ाने और मानव पूंजी को डिजिटल कौशल युक्त बनाने पर काम करना होगा। भारत में महिला श्रम बल भागीदारी केवल 24 प्रतिशत है, इसे बढ़ाना होगा।

अब मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में पीएलआई के माध्यम से ज्यादा उत्पादन और ज्यादा नौकरियां बढ़ानी होंगी। कंप्यूटर चिप बनाने वाली अमेरिकन कंपनी माइक्रोन के सहयोग से देश में सेमीकंडक्टर के निर्माण से अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदलनी होगी। विदेशी निवेश को बढ़ाने के लिए एफडीआई नीतियों-उदार निवेश व्यवस्थाओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा। हमें प्रयास करना होगा कि एक मजबूत लोकतंत्र होने के नाते दुनिया के विकसित और विकासशील देश आर्थिक डगर पर भारत को अधिक तरजीह दें। हम उम्मीद करें कि जी-20 के दौरान क्वाड सहित दुनिया के विभिन्न देशों से भारत को चीन प्लस वन रणनीति के साथ-साथ नए निर्मित होने वाले भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक कारिडोर (आईएमईसी) के अभूतपूर्व लाभ मिलने की जो नई संभावनाएं उभरी हैं, भारत उन्हें मुठ्ठी में अवश्य लेगा। ऐसे में यदि हम विभिन्न रणनीतियों के साथ चीन को आर्थिक टक्कर देते हुए 8-9 फीसदी विकास दर के साथ लगातार आगे बढ़ेंगे तो भारत 2047 में दुनिया का विकसित देश बनने के साथ-साथ चीन को विकास की डगर पर पीछे छोडऩे वाले देश के रूप में भी चमकते हुए दिखाई देगा।

डा. जयंती लाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री


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