ड्रग्स से भी घातक इंटरनेट की लत

By: Oct 24th, 2023 12:06 am

यदि हमें छोटे बच्चों, किशोरों, युवा पीढ़ी को आदर्श तथा जिम्मेदार नागरिक बनाना है तो ऐसे कदम शीघ्र उठाने की सख्त आवश्यकता है। आने वाले समय में ड्रग्स के लत वाले लोगों से, इंटरनेट के लती कई गुणा होंगे…

आम लोगों की धारणा है कि चरस, गांजा, अफीम, कोकीन, हेरोइन, चि_ा इत्यादि ऐसे मादक द्रव्य हैं जिनकी एक बार किसी को आदत पड़ जाए तो फिर छूटती नहीं है। जिन लोगों को इनके सेवन की लत लग जाए तो उनका जीवन नरक बन जाता है। ऐसे लती लोग स्वयं तो किसी लायक नहीं रह पाते हैं, अलबता परिवार, समाज और देश पर बोझ तथा धब्बा बन जाते हैं। इनका न घर में, न ही बाहर कोई इज्जत, आदर होता है। ऐसे नशेड़ी लोगों को देखते ही सामान्य जन अपना मुंह बिचका कर, उन्हें उपेक्षा तथा घृणा से देखते हैं। नशीले ड्रग्स के आदी ऐसे लोग पूरी दुनिया में मिलते हैं। बस, अंतर इतना भर होता है कि कहीं ज्यादा, कहीं कम होते हैं। परंतु नशे वाली इन चीजों के अतिरिक्त हाल के वर्षों में एक और नशे ने पूरे समाज को अपने में जकड़ लिया है। इससे मासूम बच्चों से लेकर, हर उम्र और बूढ़े-बुजुर्ग तक अछूते नहीं हैं। आज हर व्यक्ति की मु_ी में नशे का यह पिटारा मौजूद है। इस पिटारे के कई रूप और प्रकार हैं। इन पिटारों में उपलब्ध कराई गई सामग्री ड्रग्स से भी कई गुणा घातक तथा व्यक्ति का नैतिक पतन करने वाली है। पिटारों के रूप में ये कंप्यूटर, लैपटॉप, टेबलेट्स, स्मार्टफोन, स्मार्ट टीवी, अलेक्सा और अन्य ऐसे ही डिवाइस हैं। पीसी, लैपटॉप, टेबलेट्स पर तो कहीं रुक कर अथवा घर, ऑफिस इत्यादि स्थानों में बैठकर देख सकते हैं। लेकिन चलते-फिरते हुए इन पर काम करना, देखना थोड़ा मुश्किल है।

सबसे सुलभ पिटारा अथवा डिवाइस जिसे मोबाइल के रूप में स्मार्ट फोन कहते हैं, आज हर किसी की जेब में और हाथ में रहता है। बिना मोबाइल फोन के आज जीवन सूना तथा बेकार लगने लगता है। स्मार्ट फोन का प्रयोग-उपयोग नि:संदेह बहुत आवश्यक तथा जरूरी हो चुका है। किसी भी त्वरित संदेश-संवाद के लिए आज यह इलैक्ट्रॉनिक उपकरण सबसे आसान एवं कारगर साधन है। आज हर स्मार्ट फोन में इंटरनेट की सुविधा सहज ही उपलब्ध है। इंटरनेट का अर्थ होता है, कंप्यूटर का अंतरजाल। इंटरनेट एक ऐसा नेटवर्क है जो ग्लोबली सभी इलैक्ट्रॉनिक डिवाइस जैसे कंप्यूटर, लैपटॉप, स्मार्ट फोन इत्यादि को आपस में जोडऩे का कार्य करता है। इससे सभी प्रकार की जानकारी आसानी से एक्सेस कर सकते हैं। इन उपकरणों में इंटरनेट की सुविधा ही, इस नए नशे का नाम है। आज युवा दम्पती अपने कार्य तथा समायाभाव के कारण, अपने बच्चों को ठीक से समय नहीं दे पाते हैं। बच्चा जब रोने लगता है तो उसे बहलाने के लिए स्मार्ट फोन में इंटरनेट डाटा ऑन करते हुए, कुछ हंसने-खेलने वाले कार्टून अथवा ऐसा ही कोई मनोरंजक विषय उसे देखने को छोड़ देते हैं। बच्चा रोना और मां-बाप को भूल कर, मोबाइल फोन में आ रहे उन बोलती-खेलती जीवंत जैसी तस्वीरों को देखने में रम जाता है। कहने का तात्पर्य यही है कि उसके खुश होने की सामग्री उसके हाथ में आ जाती है। उन्हें देखने में तल्लीन होकर, वह मां-बाप को भी जैसे कुछ समय के लिए भूल जाता है। बच्चे की देखभाल करने वाली आया अथवा घर के बुजुर्ग भी रोते शिशु को चुप कराने के उद्देश्य से उसे स्मार्ट फोन पकड़ा देते हैं। बच्चों वाले कार्टून, जानवरों की अठखेलियां तथा किसी भी प्रकार के नाच-गाने तक तो ठीक है, परंतु परेशानी तब बढ़ जाती है जब किसी भी यूट्यूब में भरी अश्लील सामग्री, वीडियो में अपलोड किए दृश्यों को देखने की आदत हो जाती है। फिर यह आदत एक नशे का रूप ले लेती है। गूगल, यूट्यूब इत्यादि में अश्लील, नग्न तथा पोर्न साईट से भरे वीडियो में मौजूद सामग्री भरी होती है। इन्हें देखने की एक बार आदत हो जाए तो यह आदत एक लत के रूप में बदल जाती है।

जैसा उल्लेख किया गया है, यह लत बच्चों से लेकर बूढ़ों तक में एक रोग की तरह फैल चुकी है। ऐसे लोगों को हम मनोरोगी ही कहेंगे। उनके स्मार्ट फोन में मौजूद ऐसी सामग्री को एक नशेबाज की तरह देखना, और उसके मन-मस्तिष्क में पडऩे वाले दुष्प्रभाव की हम कल्पना कर सकते हैं। यौन उन्मुक्तता से भरी सामग्री, दृश्य उनकी लिप्सा को ही बढ़ाएंगे। इसका परिणाम कितना घातक होगा, इसका सहज ही अनुमान लगा सकते हैं। ऐसे व्यक्ति से नैतिकता-शिष्टता की आशा नहीं की जा सकती है। कुछ वर्षों में बलात्कार, दैहिक दुराचार, शोषण, अपहरण जैसी घटनाएं पहले की तुलना में कई गुणा अधिक बढ़ गई हैं। इस बढ़ोतरी का कारण इंटरनेट द्वारा परोसी जा रही सेक्स सामग्री है। किशोरवय तथा युवा इनको देखते हैं। सेक्स के प्रति आकर्षित होकर घिनौने कारनामों, वारदातों को अंजाम देते हैं। इस प्रकार की क्रियाकलापों में 10 वर्ष के बच्चों से लेकर 60 वर्ष या अधिक उम्र वाले व्यक्ति तक लिप्त रहते हैं। प्रश्न उठता है कि लैंगिक क्रियाओं को देखने अथवा आकर्षण के लिए ऐसी सामग्री आपकी जेब में मौजूद मोबाइल फोन में उपलब्ध रहती है तो आप किसी को कैसे समझा-बुझा सकते हैं। इससे समाज में अपसंस्कृति ही फैलेगी। नकारात्मक असर पडऩा स्वाभाविक है। अपराध बढ़ रहे हैं। लोग मानसिक बीमारी के शिकार हो रहे हैं। ऐसी वारदातों के पीडि़त पक्ष आम लोगों की सहानुभूति खो रहे हैं। जन समाज संवेदनहीन होता जा रहा है। ऐसी हालत में नैतिकता कहां बची रहेगी? यह एक बहुत ही गंभीर और ज्वलंत विषय है। इस पर गंभीरता से मनन करते हुए कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है। इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न रूपों में फैलाई जा रही यह प्रवृत्ति समाज को कहां ले जाएगी? सरकार को ऐसी सामग्री को नेट में अपलोड करने वाले चैनलों, चाहे वे यूट्यूब हैं, पाइरेटेड फिल्में हों, अथवा ऐसा कोई भी अन्य साधन, जिसके माध्यम से अश्लीलता, पोर्नोग्राफी उपलब्ध कराई जा रही हो, बंद करवा देने चाहिए।

सेंसर अथॉरिटी होनी चाहिए। उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए। यदि हमें छोटे बच्चों, किशोरों, युवा पीढ़ी को आदर्श तथा जिम्मेदार नागरिक बनाना है तो ऐसे कदम शीघ्र उठाने की सख्त आवश्यकता है। आने वाले समय में ड्रग्स के लत वाले लोगों से, इंटरनेट के लती कई गुणा अधिक होंगे। अश्लील सामग्री से युक्त यूट्यूब, इंटरनेट के लती होंगे। नालायक और नकारा बनकर रह जाएंगे। समय रहते इन पर रोक और अंकुश लगाना आवश्यक है। तब हम आदर्श और नैतिकता की उम्मीद कर सकते हैं। अन्यथा आने वाले समय में कोई भी व्यक्ति किसी का नहीं होगा।

शेर सिंह

साहित्यकार


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