इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध व तुष्टिकरण

By: Oct 14th, 2023 12:05 am

देश और विदेश हितों से जुड़े भारत के मुद्दों पर राय कायम करने से पहले विपक्षी गठबंधन के सामने फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती चुनाव में सीट शेयरिंग की है। इस अधरझूल एजेंडे के कारण ही विपक्षी एकता सिरे नहीं चढ़ सकी है। विपक्षी गठबंधन में पारदर्शिता और स्पष्टता नहीं रही तो लोकसभा चुनाव में भाजपा की चुनौती रहेगी…

इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध में हमास के क्रूर आतंकी घटना की आलोचना करने के बजाय इजरायल की निंदा करने से साबित हो गया है कि कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल अल्पसंख्यकों के वोट के लिए किस तरह तुष्टिकरण की नीति पर चलते हैं। यही वजह है कि भाजपा विपक्षी दलों पर आक्रामक रुख अख्तियार करती रही है। दरअसल विपक्षी दल आतंकी हमास की निंदा करके देश के अल्पसंख्यक वोट बैंक को नाराज नहीं करना चाहते। इस नए युद्ध की शुरुआत आतंकी संगठन हमास ने की। इसमें सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए और बड़ी संख्या में लोगों का अपहरण कर लिया। इसके विपरीत इस मुद्दे पर कांग्रेस ने तुष्टिकरण की नीति अपना कर भाजपा को फिर से एक नया मुद्दा थमा दिया। केंद्र की भाजपा सरकार ने पहले दिन से ही रुख साफ कर दिया कि किसी भी तरह की आतंकी कार्रवाई का भारत समर्थन नहीं करेगा। केन्द्र सरकार की यह नीति जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा की जाने वाली आतंकी कार्रवाइयों से प्रभावित है। आश्चर्य की बात यह है कि इस मामले में नए बने विपक्षी गठबंधन इंडिया में कांग्रेस को छोड़ कर ज्यादातर दलों ने कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। ऐसे मुद्दों पर विपक्षी दल ज्यादातर बचाव या विरोध की नीति ही अपनाते रहे हैं। दरअसल कांग्रेस सहित गैर भाजपा दलों का निशाना भी अल्पसंख्यक वोट बैंक होता है। ऐसे में कोई भी दल सार्वजनिक तौर पर प्रतिक्रिया जाहिर करने से बचता है। इसमें हमास ने पहले हमला कर युद्ध को आमंत्रित किया, इसलिए विपक्षी दल स्पष्ट प्रतिक्रिया देने से कतरा रहे हैं। इसके विपरीत जम्मू-कश्मीर में धारा 370, तीन तलाक और अयोध्या में राम मंदिर जैसे मुद्दों पर कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने भाजपा के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया जाहिर करने में देर नहीं लगाई। धारा 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर की शांति और तरक्की की हालत सर्वविदित है।

पत्थरबाजी की घटनाएं लगभग शून्य हो गई हैं। इस साल पर्यटकों की रिकार्ड आमद दर्ज की गई है। जम्मू-कश्मीर से एक अग्निवीर का दस्ता तक सेना में शामिल हुआ है। जम्मू-कश्मीर में जी-20 की बैठक हो चुकी है। इसी से स्पष्ट होता है कि गैर भाजपा दलों को किस तरह से अल्पसंख्यक वोट बैंक के तौर पर नजर आते हैं। इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध पर कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने इजरायल और हमास के बीच चल रहे युद्ध को लेकर फिलिस्तीन के समर्थन में एक प्रस्ताव पारित किया। इसमें निराशा और पीड़ा व्यक्त की और फिलिस्तीनी लोगों के भूमि (और) स्वशासन, गरिमा और सम्मान के साथ जीने के अधिकार के प्रति अपने समर्थन को तवज्जो दी। हमास ने जिस तरह बच्चों और महिलाओं के कत्ल करके इनसानियत को शर्मसार किया, उस पर कांग्रेस ने एक शब्द भी नहीं कहा और न ही अपहृत लोगों को रिहा किए जाने की अपील की। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि उनकी पार्टी का हमेशा मानना रहा है कि इजरायलियों की राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को सुनिश्चित करते हुए फिलिस्तीन के लोगों की वैध आकांक्षाओं को बातचीत के माध्यम से पूरा किया जाना चाहिए। कांग्रेस के इस बयान पर भाजपा ने जोरदार हमला बोला। भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने एक पोस्ट में कांग्रेस के बयान को अत्यंत निंदनीय बताया। विजयवर्गीय ने कहा कि कांग्रेस ने एक बार फिर राष्ट्रनीति और राष्ट्रहित के खिलाफ फैसला लेते हुए प्रस्ताव पारित किया है। एक धर्म विशेष के लोगों को खुश करने के लिए कांग्रेस किस हद तक गिर सकती है? उन्होंने कहा, अब कांग्रेस आतंकवाद से भी समझौता करने को तैयार है। हम और हमारी पार्टी भी विपक्ष में रही है, लेकिन कभी भी राष्ट्रहित के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया। कांग्रेस का हाथ आतंकवाद के साथ है। अपने प्रस्ताव में कांग्रेस ने कहा कि सीडब्ल्यूसी मध्य पूर्व में छिड़े युद्ध पर अपनी निराशा और पीड़ा व्यक्त करती है, जहां पिछले दो दिनों में एक हजार से अधिक लोग मारे गए हैं।

भाजपा ने हमलावर रुख अख्तिायर करते हुए कांग्रेस के शासन के दौरान हुई आतंकी वारदातों गिना दी। इसका एक वीडियो जारी करते हुए भाजपा ने कहा कि यूपीए के समय जून 2004 से मई 2014 तक भारत में 10262 आतंकी हमले हुए जिनमें 7012 नागरिकों की जान गई। 2014 में देश में नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई जिसके बाद 2016 में पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक हुई। असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने इजराइल और हमास से जुड़े युद्ध के बीच कांग्रेस के प्रस्ताव की तुलना पाकिस्तान और तालिबान से की और आरोप लगाया कि तुष्टीकरण की राजनीति के लिए देश के हित का बलिदान करना उसके डीएनए में है। शर्मा ने कहा कि कांग्रेस के प्रस्ताव में पाकिस्तान और तालिबान के बयानों से काफी समानताएं हैं। उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस, पाकिस्तान और तालिबान हमास की निंदा नहीं करते। इजराइल पर आतंकवादी हमले की निंदा नहीं करते और बंधक महिलाओं और बच्चों के संबंध में चुप हैं। मुख्यमंत्री ने कहा, तुष्टीकरण की राजनीति के लिए देशहित की बलि चढ़ाना कांग्रेस के डीएनए में है। कांग्रेस बेशक फिलिस्तीन की दुहाई की आड़ में हमास की आतंकी कार्रवाई की निंदा से बच रही हो किन्तु खाड़ी के कुछ देशों ने इसकी भत्र्सना की है। संयुक्त अरब अमीरात ने हमास के हमले को गंभीर और तनाव बढ़ाने वाला बताया था। यूएई के विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया कि वो इसराइली नागरिकों को उनके घरों से अगवा करके बंदी बनाए जाने की खबरों से स्तब्ध है। बहरीन ने भी हमास के हमलों की आलोचना की है। बहरीन ने कहा था कि हमले ने तनाव को खतरनाक स्तर तक पहुंचा दिया है जिससे आम लोगों की जान जोखिम में पड़ गई है। इन दोनों देशों के ये बयान उनके पहले के रुख से अलग हैं, जब पूरा अरब वल्र्ड इसराइल के खिलाफ एक सुर में बोलता था। ईरान खुलकर हमास का समर्थन कर रहा है और इसराइल पर सीधे उंगली उठा रहा है। ईरान के हितों का अपना समीकरण है और उसी के हिसाब से वह प्रतिक्रिया दे रहा है। कतर ने इसराइल को इस तनाव का अकेला जिम्मेदार बताया है। मलेशिया, पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने भी फिलिस्तीनियों के प्रति समर्थन दिखाया है।

खाड़ी देशों के इस तरह अलग-अलग बयानों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि विश्व में देशों के रिश्ते किस तरह बदल रहे हैं। इसके विपरीत कांग्रेस सहित भारत के विपक्षी दल अभी तक ऐसे मसलों को सिर्फ वोट बैंक के नजरिए से देखते रहे हैं। भारत के संबंध खाड़ी देशों से लगातार बेहतर हो रहे हैं। गौरतलब है कि हमास के हमले से पहले सऊदी अरब और दूसरे देश इसराइल से संबंध सुधारने के लिए समझौता करने वाले थे। इस हमले के बाद हालात बदल गए हैं। इस हमले की वजह भी यही मानी जा रही है कि किसी तरह इन देशों में कोई समझौता नहीं होने पाए। कांग्रेस और विपक्षी दल इंडिया की तीन बैठकों में अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं हो सका कि घरेलू और विदेशी मसलों पर नीति क्या रहेगी। इसी तरह भ्रष्टाचार और दूसरों मुद्दों पर भी विपक्षी गठबंधन की एकराय नहीं हो सकी। यह विपक्षी दलों की ढुलमुल नीति का ही परिणाम है कि भाजपा इन मुद्दों पर विपक्षी गठबंधन को आड़े हाथों लेने में पीछे नहीं रही। देश और विदेश हितों से जुड़े भारत के मुद्दों पर राय कायम करने से पहले विपक्षी गठबंधन के सामने फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती चुनाव में सीट शेयरिंग की है। इस अधरझूल एजेंडे के कारण ही विपक्षी एकता सिरे नहीं चढ़ सकी है। विपक्षी गठबंधन में पारदर्शिता और स्पष्टता नहीं रही तो लोकसभा चुनाव में भाजपा की चुनौती का एकजुट होकर सामना करना आसान नहीं होगा। फिलहाल भाजपा के हाथ में बड़ा मुद्दा आ गया है।

योगेंद्र योगी

स्वतंत्र लेखक


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