मोबाइल एनसाइक्लोपीडिया

By: Oct 13th, 2023 12:05 am

यह बस व्यवस्था पर व्यंग्य नहीं है। यदि यह रचना व्यंग्य हो जाती है तो इसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी मैं अपने पर नहीं लेकर मुसद्दीलाल पर डालना चाहूंगा। मुसद्दीलाल को तो आप भी जानते होंगे। वही मुसद्दीलाल जो बस की सीट पर आपके बराबर में बैठा आपको अपनी चिन्ताओं में एकाग्र नहीं होने देता। आप कहीं कन्सन्ट्रेशन को सचेष्ट होते हैं, तभी वह अपना एकालाप प्रारम्भ कर आपको बोरियत के चरम पर पहुंचाता है। मुसद्दीलाल अधेड़ उम्र का झोला लटकाये पूरी बस में बस इधर से उधर होता रहता है। वह हर यात्री से परिचय पाना चाहता है। परिवहन व बस सेवा से जुड़ी सभी समस्याओं के समाधान हैं उसके पास। वह बसों का समय, कितनी संख्या में, किस मार्ग पर कौनसी बसें चल रही हैं, आदि की वैविध्यपूर्ण जानकारी रखता है। मुसद्दीलाल का कहना है कि जब वह उस कॉलोनी में रहने आया था, तब एक भी बस नहीं चलती थी और उसी ने बसों का श्रीगणेश करवाया। हम लोग तो उसके किये का सुफल भोग रहे हैं। मुसद्दीलाल बसों में इस तरह थूकता है-जैसे वे उसके निजी स्वामित्व की हों, नगर बस सेवा को उसने ही बहाल किया हुआ है अन्यथा अव्यवस्था होने में थोड़ी भी देर नहीं लगे। मैं तो यह भी कह सकता हूं कि मुसद्दीलाल यदि नहीं होते तो शहर की बसें शमशान लगती। उन्हीं की देन है कि आज बसें आबाद हैं।

मुसद्दीलाल की उपस्थिति बड़ी सुखद होती है। पूरे यात्री उन्हें मनोरंजन मानकर बसों में बने हुए हैं, जिस गम्भीरता से बस व्यवस्था को उन्होंने लिया है-वह बसों का निजीकरण करने के लिए पर्याप्त है। मुसद्दीलाल आपकी बगल में बैठा कभी अकेला बड़बड़ायेगा तो कभी आपको खिडक़ी से सडक़ पर दौड़ती दूसरी बसों के सामान्य ज्ञान से परिचित करायेगा। वह कहेगा वह बस सांगानेर जा रही है तो दूसरी बस मानसरोवर। वह कहेगा कि उसने घर से निकलने में थोड़ी देर कर दी, अन्यथा वह पांच मिनट पहले गन्तव्य पर पहुंच गया होता। वह हर बस स्टैण्ड पर सजगता से देखता है कि कितनी सवारियां बस में आयीं तथा थोड़ी देर में वह पुख्ता आंकड़ा आपको मिल जायेगा। वह यात्रियों की आपस की बातें, कण्डक्टर और ड्राइवर का मनमुटाव तथा किराये को लेकर होने वाली हुज्जत का आंखों देखा हाल सुनाता रहता है। वह कभी यह भी कहता है कि बस आजादी का ऐसा फल है-जिसे खाने से लोगतंत्र का अस्तित्व बना रहता है। इस प्रकार से मुसद्दीलाल अब बस में कण्डक्टर से कहीं ज्यादा बेहतर स्थिति को प्राप्त हो गया है। मुसद्दीलाल बस में बैठता नहीं, वह लोगों को बैठता है। उसे कोई अपने साथ बैठने को कहे या न कहे, वह अपने हाथ से सवारियों को बैठे रहने का संकेत देता रहता है। अनेक लोग तो ऐसे हैं जो उसे देखते ही आंखें चार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। वे जानते हैं, उससे साक्षात्कार होते ही वे अपने अमन-चैन से हाथ धो बैठेंगे। इसलिए वे यथासम्भव इस उड़ते तीर से नहीं भिडऩा चाहते। मुसद्दीलाल आपसी सद्भाव तथा राष्ट्रीय विकास का द्योतक है। वह राष्ट्रीय भावनाओं से लबरेज सामयिक रानजीति पर बेलोस अपनी अमूल्य टिप्पणी देता रहता है। उस समय पर वह इतना गम्भीर रहता है कि आपके भी एक बार तो उसे देखते ही रौंगटे खड़े हो जायें। उस समय मुसद्दीलाल शहीदाना अंदाज में राष्ट्र की एकता और अखण्डता का आह्वान करते देखा जा सकता है।

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक

 


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