प्रवासियों की विकास में नई भूमिका

यह बात भी महत्वपूर्ण है कि कई बार भारत के प्रवासियों के द्वारा विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार की चिंताएं कम हुई थी। इसी तरह से भारत ने भी विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीयों के हर दुख-दर्द को कम करने में अहम भूमिका निभाई है…

यकीनन इस समय दुनिया के विभिन्न देशों में प्रभावी भूमिका निभा रहे भारतवंशी और प्रवासी भारतीय भारत के आर्थिक और तकनीकी विकास में भी अपने अभूतपूर्व योगदान के नए अध्यायों के साथ वैश्विक मंच पर भारत के हितों की जोरदार हिमायत करते हुए दिखाई दे रहे हैं। हाल ही में कनाड़ा में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर हत्याकांड में भारत की छवि खराब करने के उद्देश्य से कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के बयान की कनाडा और अमेरिका सहित दुनिया के विभिन्न देशों के प्रवासी भारतीयों ने निंदा की और भारत के द्वारा आतंकवाद को समाप्त करने के प्रयासों को शक्ति प्रदान की। इतना ही नहीं, इस समय प्रवासी भारतीय भारत को वर्ष 2047 तक विकसित देश बनाने के सपने को साकार करने के मद्देनजर विशेष संगठन बनाकर नई अहम भूमिका निभाते हुए दिखाई दे रहे हैं। गौरतलब है कि इस वर्ष 2023 में भारत की जी-20 की अध्यक्षता और विगत 9-10 सितंबर को नई दिल्ली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन को सफल बनाने में प्रवासी भारतीयों के संगठन ‘इंडियास्पोरा’ का अभूतपूर्व योगदान रहा है। इंडियास्पोरा भारत के विकास में अहम योगदान देने के उद्देश्य से वर्ष 2012 में अमेरिका में स्थापित एक ऐसी गैर-लाभकारी संस्था है, जो करीब 20 देशों में सक्रिय रूप से मजबूती के साथ काम कर रही है। यह संगठन दुनियाभर के विभिन्न देशों के प्रवासी भारतीयों के लिए भी प्रेरणादायी बन गया है। इस संगठन का कहना है कि भारत ने अपनी आजादी के 76 साल का संतोषजनक सफर तय किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा भारत के बढ़ाए गए गौरव और प्रवासी भारतीयों के लिए किए गए विशेष प्रयासों से भारतवंशियों तथा प्रवासियों का भारत के लिए सहयोग और स्नेह लगातार बढ़ा है।

ऐसे में अब भारत के तेज विकास और भारत को विकसित देश बनाने के लक्ष्य को पूरा करने के मद्देनजर भारतवंशियों व प्रवासियों द्वारा तन-मन-धन से आगे बढऩा चाहिए। यह कोई छोटी बात नहीं है कि दुनिया के अनेक देशों में प्रभावी भारतवंशी राजनेता अपने-अपने देशों को आगे बढ़ाते हुए विश्व के समक्ष भारत के चमकते हुए चेहरे हैं और ये हरसंभव तरीके से भारत के विकास में अपना अहम योगदान देते हुए भी दिखाई दे रहे हैं। इन राजनेताओं में हाल ही में 14 सितंबर को सिंगापुर के राष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण करने वाले भारतवंशी थर्मन शनमुगरत्नम, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक. आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वराडकर, पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंटोनिया कोस्टा, अमेरिका की पहली महिला और पहली अश्वेत उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, गुयाना के राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली, मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ और राष्ट्रपति पृथ्वीराजसिंह रूपुन, सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद संतोखी आदि के नाम उभरकर दिखाई दे रहे हैं। इसी तरह दुनिया में वैश्विक आर्थिक व वित्तीय संस्थानों, आईटी, कम्प्यूटर, मैनेजमेंट, बैंकिंग, वित्त आदि के क्षेत्र में ऊंचाइयों पर पहुंचे प्रवासी इन विभिन्न क्षेत्रों में भारत को आगे बढ़ाने के नए अध्याय लिख रहे हैं। भारतवंशी अमेरिकी 63 वर्षीय अजय बंगा ने चार माह पहले विश्व बैंक के नए अध्यक्ष के रूप में पांच साल के लिए कार्यभार संभाला है। वे इस संस्था की अध्यक्षता करने वाले पहले भारतवंशी है। माइक्रोसॉफ्ट के सत्य नडेला, गूगल के सुंदर पिचाई, नोवार्टिस वसंत नरसिम्हन, एडोब के शांतनु नारायण, आईबीएम के अरविंद कृष्णा, स्टारबक्स के लक्ष्मण नरसिम्हन, वर्टेक्स फार्मास्यूटिकल्स के रेशमा केवलरमानी, माइक्रोन टेक्नोलॉजी के संजय मेहरोत्रा, कैडेंस डिजाइन सिस्टम के अनिरुद्ध देवगन, पालो अल्टो नेटवर्क के निकेश अरोड़ा, वीएमवेयर के रंगराजन रघुराम, इमर्सन इलेक्ट्रिक कंपनी के सुरेंद्रलाल करसनभाई, माइक्रोचिप प्रौद्योगिकी के गणेश मूर्ति आदि अपनी प्रतिभा व कौशल से कारोबार और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दुनिया की अगुवाई कर रहे हैं और भारत के विकास में भी रेखांकित करने वाला योगदान दे रहे हैं।

इसमें कोई दो मत नहीं है कि भारतवंशियों और प्रवासी भारतीयों के लिए विदेशों की नई संस्कृति में ढलकर इस तरह की सफलता हासिल करना आसान नहीं होता है। वास्तव में भारतंवशियों और प्रवासी भारतीयों के एक पूरे जीवन को आकार देने तथा ऊंचे पदों पर कार्य की रणनीति बनाने तथा नेतृत्व की भूमिका के मद्देनजर उन्हें मूल रूप से मिले हुए भारतीय संस्कार और भारतीय मूल्यों पर आधारित मूलमंत्र अहम भूमिका निभाते हैं। यद्यपि चीनी प्रवासी भी दुनिया के कोने-कोने में हैं, लेकिन वे भारतीय प्रवासियों की तरह शीर्ष वैश्विक संस्थानों राजनीति और उद्योग-कारोबार में वैसी प्रभावी भूमिका नहीं रखते हैं। ज्ञातव्य है कि दुनिया में प्रवासी भारतीयों का सबसे बड़ा डायस्पोरा है, जिसकी संख्या लगभग 3.2 करोड़ है। मोटे तौर पर प्रवासी भारतीयों में भारतवंशी (पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन), नॉन रेसीडेंट इंडियन (एनआरआई) और ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) शामिल हैं। भारत के विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में भारतीय एनआरआई की संख्या करीब 1.34 करोड़ है और ये भारत में अपने संबंधित क्षेत्र में मतदान के पात्र हैं। सबसे ज्यादा प्रवासी भारतीय अमेरिका में रहते हंै। अमेरिका में विभिन्न प्रवासी समूहों में सबसे अधिक आय भारतीयों की है। भारतीय मूल के लोग अमेरिकी आबादी का एक प्रतिशत से थोड़ा अधिक हैं, वे संयुक्त राज्य अमेरिका के कर खजाने का 6 प्रतिशत हिस्सा हैं। यह आर्थिक ताकत भारतीय प्रवासियों को अमेरिका-भारत गलियारे में द्विपक्षीय महत्व के मुद्दों पर एक शक्तिशाली आवाज उठाने में सक्षम बनाती है। ऑस्ट्रेलिया में भी भारतीयों की औसत आय राष्ट्रीय औसत से डेढ़ गुना है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि प्रवासी भारतीयों का भारत के साथ स्नेह और सहयोग लगातार बढ़ता जा रहा है और ये भारत को धन भेजने के मामले में अन्य सभी देशों के प्रवासियों से बहुत आगे हैं। विश्व बैंक के द्वारा जारी माइग्रेशन एंड डेवलमपेंट ब्रीफ रिपोर्ट 2022 के मुताबिक विदेश में कमाई करके अपने देश में धन (रेमिटेंस) भेजने के मामले में वर्ष 2022 में भारतीय प्रवासी दुनिया में सबसे आगे रहे हैं। वर्ष 2022 में प्रवासी भारतीयों के द्वारा भेजी जाने वाली रकम 100 अरब डॉलर से भी अधिक की रही है। वर्ष 2021 में प्रवासियों ने करीब 87 अरब डॉलर की राशि स्वदेश भेजी। प्रवासियों से धन प्राप्त करने वाले दुनिया के विभिन्न देशों की सूची में भारत वर्ष 2008 से अब तक पहले क्रम का देश बना हुआ है।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अतीत में जब भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में तेज गिरावट आई, तब प्रवासियों ने मुक्त हस्त से भारत के विदेशी मुद्रा कोष को बढ़ाने में सहयोग दिया है। जब वर्ष 1998 में भारत के द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण पोखरण-2 विस्फोट के बाद अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों के द्वारा भारत पर लगाए गए तब आर्थिक प्रतिबंधों को वापस कराने में प्रवासी भारतीयों ने देश का सबसे ज्यादा साथ दिया और दुनिया का रुख बदलने में अहम भूमिका निभाई। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि कई बार भारत के प्रवासियों के द्वारा विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार की चिंताएं कम हुई थी। इसी तरह से भारत ने भी विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीयों के हर दुख-दर्द को कम करने में अहम भूमिका निभाई है। हम उम्मीद करें कि जिस तरह 9-10 सितम्बर को भारत की अध्यक्षता में आयोजित जी-20 को अभूतपूर्व सफलता दिलाने में प्रवासी भारतीयों की भी अहम भूमिका रही है, उसी तरह अब भारतवंशी और प्रवासी भारतीय वर्ष 2027 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने और वर्ष 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हुए दिखाई देंगे।

डा. जयंती लाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री


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