हमारे कालेज बनें रिसर्च सेंटर

उद्योग और अनुसंधान संगठनों के संभावित सहयोगियों की पहचान करके परिसरों में अनुसंधान को बढ़ावा देने, परियोजना प्रस्तावों में मदद करने और समय सीमा के पालन की निगरानी करने के लिए भी गाइड लाइन नियामक संस्थान पहले जारी कर चुका है। इसके अलावा रिसर्च को लेकर कई स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं। उच्च शिक्षा किसी भी व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के विकास की धुरी होती है। उच्च शिक्षा के बिना कोई भी राष्ट्र, समाज या व्यक्ति प्रगति नहीं कर सकता है। उच्च शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्ति, समाज या देश का मूल्यांकन किया जा सकता है। उच्च शिक्षा नागरिकों में आत्मविश्वास, आत्मगौरव, आत्मसंतोष जैसे भावों को भरने के साथ-साथ समाज सेवा जैसे सद्गुणों को विकसित करने की अलौकिक शक्ति है। भारतीय उच्च शिक्षा परिदृश्य में अनुसंधान क्षमता निर्माण चर्चा का एक महत्वपूर्ण बिंदु बन गया है। अब समय आ गया है कि अनुसंधान के लिए अधिक आलोचनात्मक, संबंधपरक और चिंतनशील दृष्टिकोण अपनाने के लिए पुनर्विचार किया जाए और तत्परता से कार्य किया जाए…

ताजा खबरों के अनुसार केंद्र सरकार चाहती है कि एक साल के भीतर सभी विश्वविद्यालयों, कॉलेज और उच्च शिक्षण संस्थाओं में रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेल का गठन हो, जिससे आत्मनिर्भर भारत की दिशा में उच्च शिक्षण संस्थान और उद्योग मिलकर काम कर सकें और स्थानीय जरूरतों और बाजार की मांग के अनुरूप इनोवेशन और रिसर्च को बढ़ावा मिले। तथ्यों को खंगालें तो अभी तक 244 विश्वविद्यालय और 298 महाविद्यालयों सहित 542 उच्च शिक्षण संस्थानों ने अपने परिसरों में आर एंड डी सेल का गठन किया है। इसके अलावा उद्योग लिंकेज को जोडक़र आर एंड डे सेल का गठन करने वाली संस्थाओं की संख्या 1100 के आसपास है। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के योगदान में समयबद्ध तरीके से सभी विश्वविद्यालयों, उच्च शिक्षण संस्थानों में यह सेल स्थापित किया जाना है। देश में पंजीकृत विश्वविद्यालयों/विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों की कुल संख्या 1113, कॉलेजों की संख्या 43796 और स्वचलित संस्थानों की संख्या 11296 है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत की स्थिति सिर्फ ठीक-ठाक है। इस क्षेत्र को अगर पहुंच, समानता और गुणवत्ता के स्तर पर जांचें, तो हम तीनों ही स्तर पर अपनी युवा पीढ़ी को न्याय देने में अक्षम रहे हैं।

हमारे देश में उच्च शिक्षा संस्थानों की कमी नहीं है, परंतु उनमें सभी प्रकार की गुणवत्ता का अभाव है। प्राध्यापकों की कमी के साथ-साथ पुस्तकों और अन्य सुविधाओं की बहुत कमी है। अनेक संस्थानों में संकाय प्राध्यापकों के लिहाज से लगभग आधे खाली हैं। विशेष तौर पर दक्षिण भारत के संस्थानों में बहुत ज्यादा कैपीटेशन शुल्क लिया जाता है। इसके साथ ही यहां उच्च शिक्षा एक तरह से राजनीतिज्ञों के लिए व्यवसाय का साधन बन गया है, क्योंकि इन्हीं की मदद से ये संस्थान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से ऋण की सुविधा प्राप्त करते हैं। ऐसा लगता है कि ये संस्थान डिग्री प्रदान करने की फैक्टरी मात्र हैं। उच्च शिक्षा संस्थानों में से अधिकतर का पाठ्यक्रम बहुत पुराना तो है ही, वह विद्यार्थियों के लिए सृजनात्मक भी नहीं है। एक अनुमान के अनुसार हमारे कुल स्नातकों में से केवल 5 प्रतिशत को ही रोजगार मिल पाता है। हमारे संस्थानों में रिसर्च यानी कि अनुसंधान की सुविधाएं न के बराबर हैं। यही कारण है कि विश्व के उत्कृष्ट 200 संस्थानों में भारत का एक भी संस्थान शामिल नहीं है, जबकि चीन के 10 संस्थान इस सूची में शामिल हैं। हालांकि यह अंतरराष्ट्रीय सूचीक्रम कोई एकमात्र मानदंड नहीं है, फिर भी यह भारतीय उच्च शिक्षा के स्तर की झलक तो दे ही देता है। यकीनी तौर पर विद्यालय से निकले प्रत्येक विद्यार्थी को विश्वविद्यालय में प्रवेश का अधिकार मिलना चाहिए। कुछ सुझाव हैं- हर तीन वर्ष बाद विश्वविद्यालय का एक ऑडिट करवाया जाए। साथ ही संस्थान राशि का ब्योरा विधायिका को सौंपा जाए, प्राध्यापकों का चुनाव और तरक्की उनके काम के पुनरीक्षण के आधार पर किया जाए। पुनरीक्षण के इस कार्य को संकाय के ही प्राध्यापक बाहरी विद्वत समीक्षा के आधार पर करें।

नियुक्ति के हर तीन वर्ष बाद इन प्राध्यापकों का गुणांकन किया जाए। वरिष्ठता के आधार पर कोई तरक्की के साथ काबीलियत भी देख ली जाए। गुणांकन के बाद ही वेतन वृद्धि की जाए। वेतन-व्यवस्था लचीली हो, जिससे असाधारण प्रतिभाओं को प्रोत्साहित किया जा सके। दूरस्थ शिक्षा की आधुनिक तकनीक का पूरा लाभ उठाया जाना चाहिए। विशेषकर उच्च श्रेणी के पाठ्यक्रमों में उपलब्ध इंटरनेशनल मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेस सिस्टम का उपयोग किया जा सकता है। हमारे विद्यार्थियों के स्तर को बढ़ाने के साथ ही यह प्राध्यापकों की कमी को भी पूरा कर सकेगा। देश के उच्च शिक्षा संस्थानों को भी अनुसंधान के साथ स्थानीय उद्योगों और व्यवसायों से जोड़ा जाना चाहिए। इससे देश के विश्वविद्यालयों में भी ऊंचे स्थान पर आने की होड़ शुरू कर दी जाए। विदेशों में प्राध्यापकों और अच्छे विद्यार्थियों को अपने-अपने संस्थानों में बुलाने की होड़-सी लगी रहती है। वहां किसी प्राध्यापक के चले जाने के साथ ही उसके साथ जुड़ी समस्त शोध योजनाएं विद्यार्थी और लैब तक स्थानांतरित हो जाते हैं। इसलिए सभी संस्थान शोध, अनुसंधान एवं अन्वेषण के लिए सभी सुविधाएं देना चाहते हैं। यदि भारत में भी हम ऐसा कर सकें, तो अच्छा होगा। विदेश के उच्च शिक्षा संस्थानों में बाहरी एजेंसियों से शोध के लिए धनराशि ली जाती है। भारत में ऐसा किया जा सकता है, बशर्ते यूजीसी एवं सीएसआईआर जैसे अनुदान संस्थानों को प्रशासकीय नियंत्रण से मुक्ति मिल सके। सुनते हंै कि बड़ी संख्या में कॉलेजों ने अनुसंधान और विकास सेल स्थापित करने की विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सलाह को अभी तक नजरअंदाज कर दिया है।

उद्योग और अनुसंधान संगठनों के संभावित सहयोगियों की पहचान करके परिसरों में अनुसंधान को बढ़ावा देने, परियोजना प्रस्तावों में मदद करने और समयसीमा के पालन की निगरानी करने के लिए भी गाइड लाइन नियामक संस्थान पहले जारी कर चुका है। इसके अलावा रिसर्च को लेकर कई स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं। उच्च शिक्षा किसी भी व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के विकास की धुरी होती है। उच्च शिक्षा के बिना कोई भी राष्ट्र, समाज या व्यक्ति प्रगति नहीं कर सकता है। उच्च शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्ति, समाज या देश का मूल्यांकन किया जा सकता है। उच्च शिक्षा नागरिकों में आत्मविश्वास, आत्मगौरव, आत्मसंतोष जैसे भावों को भरने के साथ-साथ समाज सेवा जैसे सद्गुणों को विकसित करने की अलौकिक शक्ति है। भारतीय उच्च शिक्षा परिदृश्य में अनुसंधान क्षमता निर्माण चर्चा का एक महत्वपूर्ण बिंदु बन गया है। अब समय आ गया है कि अनुसंधान के लिए अधिक आलोचनात्मक, संबंधपरक और चिंतनशील दृष्टिकोण अपनाने के लिए पुनर्विचार किया जाए और तत्परता से कार्य किया जाए। यह तभी संभव हो पाएगा जब हमारी उच्च शिक्षा स्तरीय और गुणात्मक होगी। इस काम को हमारे कॉलेज रिसर्च को उत्साहित करके भली-भांति अंजाम दे सकते हैं।

डा. वरिंद्र भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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