कर्मचारियों के सिर का ताज है पेंशन

By: Oct 26th, 2023 12:05 am

इस प्रकार से देखें तो ग्रुप सी और डी कर्मचारियों को इतना ज्यादा भी नहीं मिलता जितनी ज्यादा लोगों में चर्चाएं होती हैं। भूलें नहीं अर्थव्यवस्था का पहिया तभी गतिमान और चलायमान रहता है जब समाज के सभी वर्गों को उनके देय लाभ मिलते रहें। आखिर सरकारी कार्यक्रमों, योजनाओं और नीतियों को सिरे चढ़ाने का जिम्मा भी तो इन्हीं कर्मचारियों के जिम्मे रहता है, तो फिर इन्हें इनकी जायज तनख्वाह, वेतन-भत्ते और पेंशन तो मिलनी ही चाहिए…

हिमाचल प्रदेश के सेवानिवृत्त शिक्षक चिंतराम शास्त्री न्यू पेंशन स्कीम से पुरानी पेंशन स्कीम के अंतर्गत आने वाले पहले लाभार्थी बनते ही घरेलु आर्थिक चिंताओं से मुक्त हो गए हैं। न्यू पेंशन स्कीम के अंतर्गत उन्हें पिछले छह साल से 1770 रुपये मासिक पेंशन मिल रही थी, वहीं अब पुरानी पेंशन स्कीम में आने के बाद उनकी मासिक पेंशन 36850 हो गई है। एनपीईएसए के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर का कहना है कि यह सिर्फ पेंशन की बात नहीं है बल्कि ये सम्मान और सामाजिक सुरक्षा से जुड़ा फैसला है। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर व न्यायाधीश विपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने भी एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि सरकारी सेवा से सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन कोई इनाम या अहसान नहीं है बल्कि यह कर्मचारियों द्वारा की गई लंबी और संतोषजनक सेवा प्रदान करने के बाद अर्जित की जाती है। आखिर पेंशन की आवश्यकता क्यों? सवाल के जवाब में यह सर्वविदित तथ्य है कि बढ़ती आयु के साथ-साथ युवाओं की तुलना में व्यक्ति की उत्पादकता घटती जाती है। एकल परिवार होने से शिक्षा एवं नौकरी के चलते परिवार के सदस्यों को देश-विदेश जाना पड़ता है। निरंतर जीवनयापन के खर्चों में वृद्धि और लम्बे जीवनकाल आदि कारणों की वजह से गारंटीशुदा मासिक आय सम्मानजनक जीवनयापन की गारंटी देती है।

पंद्रहवें सालाना मर्सर सीएफए इंस्टीट्यूट ग्लोबल पेंशन इंडेक्स (एमसीजीपीआई) के अनुसार भारत का पेंशन सूचकांक मूल्य 2022 में 44.5 से बढक़र इस साल 45.9 हो गया। लेकिन फिर भी इस आधार पर विश्लेषण में शामिल 47 पेंशन प्रणालियों वाले देशों में भारत 45वें स्थान पर है। नीदरलैंड 85 के स्कोर के साथ शीर्ष पर है, उसके बाद आइसलैंड 83.5 के स्कोर के साथ दूसरे और डेनमार्क 81.3 के स्कोर के साथ तीसरे स्थान पर है। जाहिर है सेवानिवृत कर्मचारियों की पेंशन को लेकर भारत सरकार को तत्काल आवश्यक उपाय करने की जरूरत है। इधर हिमाचल प्रदेश के लोकप्रिय समाचार पत्र दिव्य हिमाचल द्वारा कराए गए सर्वे में कि ‘क्या आगामी लोकसभा चुनावों में ओपीएस मुद्दा बनेगी’, इस पर 77 प्रतिशत लोगों ने ‘हां’ में जवाब दिया है। सिर्फ 20 प्रतिशत लोगों ने ओपीएस को मुद्दा मानने से इनकार किया। सर्वे में तीन प्रतिशत लोगों ने ‘पता नहीं’ में उत्तर दिया है। सर्वे में कुल 2074 लोगों ने अपनी राय दी थी। गत वर्ष दिसंबर 2022 में संपन्न हिमाचल विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने पुरानी पेंशन को बड़ा मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ा था और नई पेंशन योजना के अंतर्गत आने वाले कर्मचारियों ने भी अपने सुरक्षित भविष्य की खातिर अपने हक में वोटिंग की और नतीजा यह हुआ कि भाजपा की जयराम ठाकुर सरकार की हार हो गई। अब कुछ माह में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इन चुनावों में भी ओल्ड पेंशन का मुद्दा निर्णायक भूमिका अदा करने वाला है। इसी महीने की 01 अक्टूबर को नई दिल्ली में ओपीएस के मसले पर करीब तीन लाख कर्मचारी देश भर से जुटे थे। हिमाचल की बात करें तो यहां एक लाख 35 हजार कर्मी अभी इसके दायरे में आए हैं, वहीं बिजली बोर्ड समेत कई अन्य बोर्डों एवं निगमों के कर्मी जल्द उन्हें भी ओपीएस के दायरे में लाने के लिए सरकार से मांग कर रहे हैं। पुरानी पेंशन बहाली एक ऐसा मुद्दा है जिस पर सोशल मीडिया में कर्मचारियों में सबसे ज्यादा चर्चा होती है।

वहीं ओपीएस के मुद्दे पर केंद्र सरकार बीच का रास्ता ढूंढ़ रही है ताकि राज्य व केंद्र सरकारों की आर्थिक सेहत को ज्यादा नुकसान पहुंचाए बिना न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) को ही आकर्षक व गारंटीशुदा बनाने का विकल्प अपनाया जाए। इसके लिए केंद्र सरकार ने एनपीएस में सुधार के लिए वित्त सचिव टीवी सोमनाथन की अध्यक्षता में कमेटी गठित की है। दूसरी तरफ राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार को अपने फैसले के बारे में सूचित किया है कि वे पुरानी पेंशन योजना को अपना चुके हैं और इन राज्यों ने एनपीएस के तहत संचित कोष को वापस करने की मांग की है। ओपीएस में फिक्स्ड पेंशन की गारंटी है जबकि एनपीएस का योगदान प्रतिभूतियों जैसे ऋण और इक्विटी में निवेश किया जाता है लिहाजा एनपीएस फिक्स्ड पेंशन की गारंटी नहीं देता है। आगामी चुनावों के दृष्टिगत केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की गर्ज के चलते केन्द्रीय एवं राज्यों के कर्मचारी 3 नवंबर को रामलीला मैदान में चेतावनी रैली करने जा रहे हैं। कर्मचारियों के मुद्दों में निजीकरण पर रोक, खाली पदों को भरने, आठवें पे कमीशन का गठन, 18 महीने के बकाया डीए/डीआर का भुगतान, नई पेंशन स्कीम को वापस लेना भी शामिल है। जहां तक हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन को बहाल करने का सवाल है और धीरे-धीरे कर्मचारियों को उसका लाभ भी मिलना शुरू हो गया है तो सेवानिवृत कर्मचारियों के मुखमंडल पर वास्तविक ख़ुशी, हर्ष, उल्लास एवं रौनक देखी जा सकती है।

भले ही हिमाचल में कर्मचारियों को पुरानी पेंशन मिलना शुरू हो चुकी है लेकिन अभी वित्तीय मामलों से जुड़े उनके कुछ मुद्दे बरकरार हैं जिन पर फैसला होना बाकी है, जैसे कर्मचारियों के भत्ते आठ साल के बाद भी लंबित हैं। महंगाई भत्ता 12 फीसदी की दर से देय है। पिछले पे कमीशन का बकाया बाकी है। इस प्रकार से देखें तो ग्रुप सी और डी कर्मचारियों को इतना ज्यादा भी नहीं मिलता जितनी ज्यादा लोगों में चर्चाएं होती हैं। भूलें नहीं अर्थव्यवस्था का पहिया तभी गतिमान और चलायमान रहता है जब समाज के सभी वर्गों को उनके देय लाभ मिलते रहें। आखिर सरकारी कार्यक्रमों, योजनाओं और नीतियों को सिरे चढ़ाने का जिम्मा भी तो इन्हीं कर्मचारियों के जिम्मे रहता है, तो फिर इन्हें इनकी जायज तनख्वाह, वेतन-भत्ते और पेंशन तो मिलनी ही चाहिए।

अनुज आचार्य

स्वतंत्र लेखक


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