विष है विषाद

By: Oct 5th, 2023 12:06 am

अपने खिलाफ या किसी दूसरे व्यक्ति के खिलाफ कुछ सोचना, कहना या करना बंद करें ताकि हमारा मन हमेशा शुद्ध रहे, सात्विक रहे। हम खुद को अयोग्य मानें, अक्षम मानें या किसी दूसरे की आलोचना करें, किसी भी रूप में चाहे हमारे विचार हों या कर्म, इनकी अपनी विशेष तरंगें होती हैं और हमारे विचारों या कामों की तरंगें सारे ब्रह्मांड में फैलकर सारे ब्रह्मांड को प्रभावित करती हैं। इसी तरह ब्रह्मांड में फैले हुए दूसरे लोगों के विचार भी हमें प्रभावित करते हैं…

हमारे देश में और इस दुनिया में अमीर लोगों की कमी नहीं है, सफल लोगों की कमी नहीं है, बड़े-बड़े संपर्कों वाले लोगों की कमी नहीं है, प्रभावशाली लोगों की कमी नहीं है, पर देश में भी और दुनिया में भी खुश लोगों की, सुखी लोगों की कमी जरूर नजर आती है। लोग खुशहाल हैं, पर खुश नहीं हैं, अमीर हैं पर सुखी नहीं हैं। हमारे जीवन की यह विडंबना सबसे बड़ी विडंबना है। यह एक ऐसी चुनौती है जिसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं है। गुस्सा, निराशा, हताशा, ग्लानि, उदासी, तनाव, अवसाद, विषाद आदि से हमारा जीवन प्रदूषित हो गया है। हम किसी पर विश्वास नहीं कर सकते, स्थिति इतनी भयानक है कि कई बार तो अपने परिवार के सदस्यों पर भी विश्वास नहीं कर पाते। मुखौटे लगाकर चलना हमारी नियति बन गया है। हम अच्छे दिखना चाहते हैं, अच्छे होना नहीं चाहते, अच्छे बनना नहीं चाहते। दिखावा, झूठी शान और तडक़-भडक़ बनाए रखने की कोशिश ने जीवन को और भी कठिन बना दिया है। जीवन से सरलता चली गई है, तरलता चली गई है, फ्लैक्सिबिलिटी चली गई है, रिजिडिटी आ गई है। इस सब का परिणाम यह हुआ है कि दुनिया में बहुत बड़ी संख्या में लोग अवसादग्रस्त हो गए हैं, डिप्रेशन के शिकार हो गए हैं।

अवसाद यानी डिप्रेशन को भारतीय चिकित्सा विज्ञान में विषाद भी कहा जाता है क्योंकि यह स्थिति ऐसी है कि रोगी का मन मानो विषाक्त ही हो जाता है और वह दुनिया से ही नहीं, अपने परिवार वालों से भी कट जाता है, वह बिल्कुल अकेला रहना शुरू कर देता है, अक्सर अपनी तकलीफ समझता है, पर समझा नहीं पाता। परिवार के लोग असहाय हो जाते हैं और रोगी का रोग बढ़ता चला जाता है। अवसादग्रस्त लोग अक्सर एक बच्चे की तरह व्यवहार करते हैं, उनका मूड बदलते देर नहीं लगती। समस्या यह है कि खुशी का मूड कभी-कभार ही होता है। ऐसे रोगी से बहुत ही दयालुता और प्यार के व्यवहार की जरूरत होती है क्योंकि रोगी दिखावा नहीं कर रहा, वह सचमुच बीमार है। अगर किसी रोगी को चोट लगी हो, पट्टी बंधी हो, प्लास्टर चढ़ा हो, ड्रिप लगी हो, आक्सीजन लगी हो तो हमें नजर आ जाता है और हम रोगी के व्यवहार के प्रति सहिष्णु हो जाते हैं, उनसे सहानुभूति से बात करते हैं, लेकिन अवसादग्रस्त रोगी को न पट्टी बंधी होती है, न प्लास्टर लगा होता है, न ड्रिप लगी होती है तो कई बार हम उनकी तकलीफ का अंदाजा नहीं लगा पाते और उनके व्यवहार को बचकाना कह कर उन्हें और ठोस पहुंचा देते हैं। हमारे इस व्यवहार से रोगी और भी शंकित हो जाता है और हम जाने-अनजाने उनकी बीमारी बढ़ा डालते हैं। इसलिए यह याद रखना जरूरी है कि उपचार किसी भी तरह से किया जाए, परिवार का साथ, परिवार का प्यार और परिवार की सुरक्षा, रोगी के लिए बहुत बड़ा संबल है, और कोई भी दवा इसका स्थान नहीं ले सकती। परिवार या दोस्तों-शुभचिंतकों के साथ के बिना अवसादग्रस्त रोगियों का इलाज संभव ही नहीं है। भारतीय सात्विक और आध्यात्मिक उपचार पद्धति विषादग्रस्त रोगियों के इलाज में सर्वाधिक कारगर है क्योंकि यह सिर्फ स्थूल शरीर का ही नहीं, बल्कि स्थूल शरीर के साथ-साथ सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर का भी इलाज करती है। विज्ञान यह मानता है कि हम सिर्फ स्थूल शरीर ही नहीं हैं, इसीलिए यह समझना आवश्यक है कि अकेले स्थूल शरीर के इलाज से मानसिक विकारों का इलाज संभव नहीं है, जबकि ऐलोपैथी पद्धति का आधुनिक चिकित्सा विज्ञान सारी तकनीकी उन्नतियों के बावजूद स्थूल शरीर तक ही सीमित रह जाता है और रोगी को इसका लाभ नहीं मिल पाता।

अवसादग्रस्त होना एक भावनात्मक स्थिति है, यह मन की बीमारी है, यही कारण है कि अवसादग्रस्त व्यक्ति को परिवार के भरपूर प्यार के साथ-साथ आध्यात्मिक उपचार की आवश्यकता होती है। आध्यात्मिक उपचार का मतलब यह नहीं है कि रोगी पूजा-पाठ आरंभ कर दे, बल्कि कुछ हल्के-फुल्के योगासन, श्वसन क्रिया पर नियंत्रण, थोड़ा सा ध्यान और हंसी-खुशी के माहौल में पूरा आराम मिले तो रोगी शीघ्र ही चंगा हो जाता है। मोटी बात यह है कि डिप्रेशन बहुत गंभीर बीमारी है, लेकिन यह लाइलाज नहीं है। अवसाद की ही तरह मधुमेह यानी डायबिटीज और रक्तचाप यानी ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां जिन्हें आधुनिक चिकित्सा विज्ञान लाइफस्टाइल डिसीज कह कर जीवन भर की बीमारियां बता देता है, इनका इलाज भी संभव है। दो-तीन छोटी-छोटी बातों को समझ लें तो हमारा जीवन बहुत आसान हो जाएगा और हम एक स्वस्थ और परिपूर्ण जीवन का आनंद ले सकेंगे। आम तौर पर हम एक मिनट में 16 से 18 बार सांस लेते और छोड़ते हैं। अगर हम अपनी श्वसन क्रिया पर फोकस करें और धीरे-धीरे सांस अंदर लेने, कुछ देर सांस रोकने और फिर सांस बाहर छोडऩे की क्रिया पर ध्यान दें तो हम इनका समय बढ़ा सकते हैं और यह अभ्यास कर सकते हैं कि हम एक मिनट में 10 या 12 बार ही सांस लें और छोड़ें। श्वसन क्रिया का यह अभ्यास बहुत प्रभावकारी है और सेहत के लिए अच्छा है। इसी तरह यदि हम कुछ समय मौन बैठें और अपनी सांसों तथा विचारों पर ध्यान दें तो हमारा अवचेतन मन सशक्त होकर इन विचारों पर नियंत्रण करने के काबिल हो जाता है। विचारों पर नियंत्रण से मन और शरीर शुद्ध होते हैं और स्वस्थ हो जाते हैं। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हमारा भोजन सिर्फ हमारा खाना ही नहीं है, हमारे विचार भी हमारा भोजन हैं। हम दिन भर जो देखते हैं, सुनते हैं, कहते हैं, करते हैं, वह भी हमारे मन-मस्तिष्क में दर्ज होता है और वह भी हमारे भोजन का ही हिस्सा है। इसीलिए कहा गया है कि हम विचारों में, बातों में और कामों में सात्विक रहें।

अपने खिलाफ या किसी दूसरे व्यक्ति के खिलाफ कुछ सोचना, कहना या करना बंद करें ताकि हमारा मन हमेशा शुद्ध रहे, सात्विक रहे। हम खुद को अयोग्य मानें, अक्षम मानें या किसी दूसरे की आलोचना करें, किसी भी रूप में चाहे हमारे विचार हों या कर्म, इनकी अपनी विशेष तरंगें होती हैं और हमारे विचारों या कामों की तरंगें सारे ब्रह्मांड में फैलकर सारे ब्रह्मांड को प्रभावित करती हैं। इसी तरह ब्रह्मांड में फैले हुए दूसरे लोगों के विचार भी हमें प्रभावित करते हैं। यह क्रिया अनवरत चलती रहती है और हम वातावरण से तथा वातावरण हमसे प्रभावित होते रहते हैं। जब कोई अवसाद में हो तो परिवार का प्यार, स्वस्थ भोजन, हल्का व्यायाम, श्वसन क्रिया पर फोकस, मौन का अभ्यास और आध्यात्मिक उपचार से इनका निदान संभव है। मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक कई बार हमारे अवचेतन मन तक नहीं पहुंच पाते, लेकिन आध्यात्मिक उपचार पर यह सीमा लागू नहीं होती, इसीलिए यह कारगर तो है ही, सुरक्षित भी है और हमारे देश के कई ऋषियों-मनीषियों ने आध्यात्मिक उपचार पद्धति से देश-विदेश के हजारों रोगियों का सफल इलाज किया है। यह खुशी की बात है कि वर्तमान शासन, आयुष मंत्रालय के माध्यम से प्राचीन भारतीय उपचार पद्धतियों के प्रचार-प्रसार में योगदान दे रहा है। उम्मीद करनी चाहिए कि हमारे देशवासी सिर्फ ऐलोपैथिक पद्धति पर ही निर्भर रहने के बजाय इन प्राचीन पद्धतियों का महत्व समझेंगे और इन्हें अपने जीवन में अपनाकर स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन की ओर मजबूत कदम बढ़ाएंगे।

पीके खु्रराना

हैपीनेस गुरु, गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


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