रिपब्लिक ऑफ इंडिया या मीडिया

By: Oct 24th, 2023 12:05 am

सुना है जब से रिपब्लिक ऑव इण्डिया रिपब्लिक ऑव मीडिया हुआ है, आर्यावर्त में राम राज्य की नींव पाताल लोक तक जा पहुँची है। जब नींव इतनी गहरी है तो इमारत कितनी बुलन्द होगी, इसका अन्दाज़ा लगाना मुश्किल नहीं। लेकिन यह पता लगाना कठिन है कि सरकार मीडिया में है या मीडिया सरकार में है। मोदिया चैनल और अख़बारें अगर सरकार की गोदी में बैठे होते तो शायद राम राज्य की नींव की गहराई का पता लगाना जऱा कठिन होता। पर जब से मीडिया ने सरकार को अपनी गोदी में बिठा लिया है, लगता है कि राम राज्य जितना मजबूत हो रहा है, उसकी नींव ऑटोमोड में स्वत: उतनी गहरी होती जा रही है। ख़ासकर इजऱायल की ज़मीन पर खड़ा जब कोई मोदिया चैनल रिपब्लिक ऑव इण्डिया की ओर से बयान देता है कि भारत अपनी पूरी ताक़त के साथ इजऱायल के साथ खड़ा है तो समूचा विश्व रिपब्लिक ऑव मीडिया की ताकत को अपनी फटी आँखों से देखता है। दुनिया सोचती है कि इजऱायल के भीतर चाहे मीडिया और जनता नेतन्याहू का विरोध करते रहें लेकिन विश्व गुरू का मोदिया कम से कम उसके साथ तब तक तो खड़ा रहेगा, जब तक उसकी कमर नहीं टूट जाती। आजकल रिपब्लिक ऑव मीडिया विश्व में इजऱायल की सैन्य ताकत का लोहा मनमाने में इतना व्यस्त है कि उसके पास ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत के फिसड्डी रहने के बावजूद चर्चा करने का वक्त नहीं। यूँ भी उसके पास जन समस्याओं पर प्रश्न उठाने या उन पर बहस करने की फुर्सत नहीं होती। उसके पास समय होता है तो केवल दिन-रात सभी धर्मों और समुदायों में आपसी प्रेम-भाव और सामंजस्य बढ़ाने का। यह उनकी दिन-रात की अथक मेहनत का ही नतीज़ा है कि देश में बढ़ते प्रेम की वजह से लोग इतने अँधे हो चुके हैं कि वे सही-गलत समझने की तमीज़ की कमीज़ सिलवा कर पहन चुके हैं।

दुष्यंत ने कई दशक पहले लिखा था, भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ, आजकल दिल्ली में ज़ेर-ए-बहस ये मुद्दआ। पर अब दिल्ली में रोटी पर बहस नहीं होती। न संसद में न मोदिया चैनलों और अख़बारों में। वजह अब राम राज्य में कोई भूखा नहीं सोता। बुद्धू बक्से के धारावाहिक ‘सास भी कभी बहू थी’ की नायिका ने केन्द्रीय महिला और बाल विकास मंत्री बनने के बाद देश भर में महिलाओं और बच्चों का सर्वांगीण विकास इस तरह सुनिश्चित कर दिया है कि वैश्विक भूख सूचकांक में दो बार पलटी खाने के बाद भारत राम राज्य की नींव तक जा पहुँचा है। एक टीवी कनक्लेव में ग्लोबल हंगर इंडेक्स को ठेंगा दिखाते हुए मंत्री कहती हैं कि देश भर में महज़ तीन हज़ार लोगों से फोन पर ऐसी जानकारी इक_ी की जाती है। भारत के भूख से मर चुके लोग अगर आज जि़न्दा होते तो ज़रूर मुँह की खाते। उन्हें पता चलता कि ऐसी जानकारी केवल उन लोगों से ली जाती है जो सुबह अपना नाश्ता देरी से करते हैं या फिर पेट खराब होने की वजह से खाना नहीं खाते। अगर उस दिन ग्लोबल हंगर इंडेक्स बनाने वालों ने इस केन्द्रीय मंत्री का फोन पर स्मरण किया होता तो उन्हें पता चलता कि मंत्री सुबह से विभिन्न जगहों के दौरों की वजह से व्यस्त थीं और उन्होंने काजू-बादाम, फ्रूट और जूस के अलावा कुछ नहीं खाया-पिया। आरके लक्ष्मण के कार्टूनों के चेहरे पर दिखने वाली भूख उस दिन मंत्री के चेहरे से टपक-टपक कर फर्श पर गिर कर उसे खराब कर रही थी। उनके चेहरे से फर्श पर टिपकती भूख को बार-बार साफ करने की वजह से टीवी कनक्लेव वालों का बजट इतना बिगड़ गया कि उसकी भरपाई सरकारी विज्ञापन लेकर करनी पड़ी। यह केवल रिपब्लिक ऑव इण्डिया के विश्व गुरू परिधान मंत्री और मंत्रियों की संवेदनशीलता की वजह से ही संभव हो पाया है कि देश में सभी भूखे-नंगे समवेत् स्वर में गा रहे हैं, ‘कोई न सोए भूखा-प्यासा, पूरी हो गई सबकी आशा’। ग्लोबल हंगर इंडेक्स बनाने वाले भले न समझें, लेकिन भारतवासी स्वेच्छा से भूखा रहने और मजबूरी में भुखमरी का भेद अब ख़ूब समझने लगे हैं।

पीए सिद्धार्थ

स्वतंत्र लेखक


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