कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और महंगाई

देश में जमाखोरी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई तेज की जानी होगी। अतिरिक्त नकदी की निकासी पर रिजर्व बैंक को ध्यान देना होगा। आवश्यक खाद्य पदार्थों के उपयुक्त रूप से आयात की रणनीति से मजबूत आपूर्ति से खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी को नियंत्रित किया जाना होगा। सरकार के द्वारा खुदरा महंगाई नियंत्रण के लिए रणनीतिक रूप से एक ऐसी मूल्य नियंत्रण समिति का गठन करना होगा जो बाजार में आने वाले उतार-चढ़ाव को देखते हुए कीमतों के अनियंत्रित होने से पूर्व ही मूल्य नियंत्रण के कारगर कदम उठाने के लिए तत्पर रहे। इजराइल-हमास युद्ध के गहराने की बढ़ती आशंका के बीच महंगाई नियंत्रण के ऐसे कारगर रणनीतिक प्रयास किए जाने होंगे जिनसे देश के आम आदमी को राहत मिले और अर्थव्यवस्था को महंगाई के खतरों से बचाया जा सके…

19 अक्तूबर को केंद्र सरकार ने कहा कि इस समय त्योहारी मौसम के दौरान आवश्यक खाद्य वस्तुओं की कीमतें स्थिर रहने की उम्मीद है। सरकार ने हाल ही में मूल्य स्थिर रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण फैसले लिए हंै। इसके तहत सरकार ने अपने नियंत्रण वाले सभी उपायों का उपयोग किया है, चाहे वह व्यापारिक नीति हो या स्टॉक सीमा मापदंड तय करने का पैमाना हो। सरकार का यह वक्तव्य ऐसे समय में आया है जब इन दिनों हमास-इजरायल युद्ध, कच्चे तेल उत्पादक देशों के द्वारा तेल उत्पादन में कटौती, कच्चे तेल की कीमतें लगातार बढ़ते हुए ऊंचे स्तर पर पहुंचने तथा वैश्विक खाद्यान्न संकट से दुनिया के कोने-कोने में महंगाई बढऩे का परिदृश्य दिखाई दे रहा है। यद्यपि इसी माह अक्तूबर 2023 में प्रकाशित केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम मंत्रालय के द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक थोक एवं खुदरा महंगाई के सूचकांक महंगाई में कमी का संकेत दे रहे हैं, लेकिन चुनौतीपूर्ण वैश्विक भूराजनीतिक एवं आर्थिक चुनौतियों के दौर में तेज महंगाई बढऩे की आशंका बनी हुई है। चूंकि महंगाई शहरी मध्यम वर्ग को अधिक प्रभावित करती है, अतएव आगामी चुनावों में महंगाई के मुद्दे के मद्देनजर सरकार के द्वारा महंगाई नियंत्रण सरकार की बड़ी चिंता बन गई है। यह चिंता इसलिए भी दिखाई दे रही है क्योंकि पिछले दिनों विश्व बैंक के द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के साथ-साथ भारत में भी महंगाई बढऩे की चुनौती दी गई है।

रिपोर्ट में वर्ष 2023-24 में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति 5.9 फीसदी रहने का अनुमान प्रस्तुत किया गया है। पूर्व में प्रस्तुत महंगाई के अनुमान से नया अनुमान अधिक बताया गया है। हाल ही में 16 अक्तूबर को प्रकाशित थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के आंकड़ों के अनुसार सितंबर 2023 में थोक मुद्रास्फीति दर लगातार छठे महीने शून्य से नीचे घटकर सितंबर में .0.26 प्रतिशत दर्ज की गई। अगस्त महीने में थोक महंगाई दर पांच महीने के उच्च स्तर .0.52 फीसदी पर पहुंच गई थी। पिछले माह सितंबर में रासायनिक उत्पादों, खनिज तेल, कपड़ा, बुनियादी धातुओं और खाद्य उत्पादों की कीमतों में गिरावट थोक महंगाई के कम होने का प्रमुख कारण है। ज्ञातव्य है कि थोक मूल्य सूचकांक थोक में बेचे और कारोबार किए गए सामानों की कीमतों में बदलाव का मूल्यांकन करता है। इसी तरह देश में खुदरा महंगाई में भी कमी आई है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के अनुसार जुलाई 2023 में जो खुदरा महंगाई दर 15 महीने के उच्चतम स्तर 7.44 प्रतिशत पर पहुंच गई थी, वह अगस्त 2023 में घटकर 6.8 फीसदी और सितंबर में 5.02 फीसदी के स्तर पर आ गई है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में यह कमी इस बात सूचकांक से तय होने वाली इस दर में अनाज, सब्जी, परिधान, फुटवियर, आवास एवं सेवाओं की कीमतों में आई गिरावट की वजह से हुई है। गौरतलब है कि 6 अक्तूबर को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने लगातार चौथी बार नीतिगत ब्याज दर रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखने का निर्णय लिया है। खुदरा महंगाई के तय दायरे से अधिक होने के कारण रिजर्व बैंक ने यह फैसला लिया है। वस्तुत: रेपो रेट वह दर है जिस पर बैंक अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए आरबीआई से ऋण लेते हैं। जब महंगाई ज्यादा होती है तो आरबीआई रेपो रेट बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रवाह को कम करने की रणनीति अपनाता है। आरबीआई के रेपो रेट स्थिर रखने के फैसले से फिलहाल मकान, वाहन समेत विभिन्न कर्जों पर मासिक किस्त (ईएमआई) में कोई बदलाव नहीं होगा और महंगाई में नरमी आएगी।

नि:संदेह इस समय देश में महंगाई को लेकर चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। पिछले माह सितंबर के दौरान ज्यादातर समय कच्चे तेल का दाम 90 डॉलर प्रति बैरल से अधिक रहा है। अब ये और बढ़ कर 94 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर है। चूंकि भारत अपनी ऊर्जा जरूरत का करीब 80 फीसदी आयात करता है, अतएव वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के तेजी से बढ़ते हुए मूल्यों के कारण महंगाई बढऩे की आशंका है। जहां दुनिया के बाजारों में गेहूं, दाल और चावल की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं, वहीं चीनी की कीमतें तो 12 साल की रिकॉर्ड ऊंचाई पर हंै। इसी माह अक्तूबर 2023 में त्योहारी मांग बढऩे से गेहूं, अरहर की दालों व अन्य खाद्यान्नों के दाम बढऩे लगे हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि 18 अक्तूबर को सरकार के द्वारा प्रकाशित खाद्यान्न उत्पादन आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2022-23 में गेहूं का उत्पादन अनुमानित लक्ष्य से 20 लाख टन घटकर 11.05 करोड़ टन रहेगा। दालों का उत्पादन पिछले वर्ष 2.7 करोड़ टन से घटकर 2.6 करोड़ टन और चावल का उत्पादन पिछले वर्ष के 12.94 करोड़ टन से घटकर 13.57 करोड़ टन होने का अनुमान है। ऐसे में गेहूं और दालों की कीमतें बढऩे की आशंकाएं सामने हैं। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि देश में बढ़ती कीमतों के कारण बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार और आरबीआई कई प्रयासों के साथ आगे बढ़े हैं। यद्यपि महंगाई के नए आंकड़ों से महंगाई नियंत्रित दिखाई दे रही है। लेकिन दुनिया के चुनौतीपूर्ण भूराजनीतिक और युद्धपूर्ण परिदृश्य के मद्देनजर महंगाई बढऩे की आशंका बनी हुई है। खासतौर से गेहूं के दाम नियंत्रण के लिए खुले बाजार में मांग की पूर्ति के अनुरूप इसकी अधिक बिक्री जरूरी है।

आटा मिलों को अधिक मात्रा में गेहूं देना होगा। साथ ही गेहूं के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दिए जाने की जरूरत है। यह भी ध्यान में रखा जाना होगा कि इस वर्ष सरकार 341 लाख टन के मुकाबले किसानों से 262 लाख टन गेहूं ही खरीद पाई है। यह भी ध्यान रख जाना होगा कि एक अक्तूबर तक सरकारी गोदामों में गेहूं का स्टॉक करीब 240 लाख टन था जो पिछले 5 साल के औसत करीब 376 लाख टन से कम है। देश में जमाखोरी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई तेज की जानी होगी। अतिरिक्त नकदी की निकासी पर रिजर्व बैंक को ध्यान देना होगा। आवश्यक खाद्य पदार्थों के उपयुक्त रूप से आयात की रणनीति से मजबूत आपूर्ति से खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी को नियंत्रित किया जाना होगा। सरकार के द्वारा खुदरा महंगाई नियंत्रण के लिए रणनीतिक रूप से एक ऐसी मूल्य नियंत्रण समिति का गठन करना होगा जो बाजार में आने वाले उतार-चढ़ाव को देखते हुए कीमतों के अनियंत्रित होने से पूर्व ही मूल्य नियंत्रण के कारगर कदम उठाने के लिए तत्पर रहे। इजराइल-हमास युद्ध के गहराने की बढ़ती आशंका के बीच महंगाई नियंत्रण के ऐसे कारगर रणनीतिक प्रयास किए जाने होंगे जिनसे देश के आम आदमी को राहत मिले और अर्थव्यवस्था को महंगाई के खतरों से बचाया जा सके।

डा. जयंती लाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री


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