क्या कुल्लू दशहरा भरेगा हिमाचली जीवन में रंग

By: Oct 14th, 2023 12:06 am

श्री रघुनाथ जी का रथ पर विराजमान होना और घाटी के समस्त देवी-देवताओं का इस रथयात्रा में भाग लेना, श्रद्धालुओं का रथ को खींचना, सबसे सुंदर तस्वीर प्रस्तुत करता है। हिमाचल की जनता और सैलानियों के लिए यह महाकुंभ है, देवभूमि की धार्मिक आस्था में लीन होने के लिए। उम्मीद है यह उत्सव प्राकृतिक आपदा से उभर रहे हिमाचल के जख्मों पर मरहम का काम करेगा…

अक्टूबर महीने की 24 तारीख से शुरू वाले दशहरा उत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं। कुल्लू दशहरा या विजय दशमी की खास बात यह है कि जब यह उत्सव बाकी जगह सम्पन्न होता है तो यहां शुरू होता है और यह उत्सव भगवान् श्री राम की रथयात्रा से शुरू होता है। यह पारंपरिक रथ यात्रा है जिसमें घाटी के अधिकतम देवी-देवता शामिल होते हैं। दशहरा की तैयारी में पूरा कुल्लू प्रशासन जुटा है। दशहरा कमेटी के अध्यक्ष एवं सीपीएस सुंदर सिंह ठाकुर स्वयं प्रशासन के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव की तैयारियों में एक महीने से जुटे हैं। क्योंकि वे कुल्लू से हैं और उन्होंने बचपन से दशहरा उत्सव में भाग लिया है तो उनके पास दशहरा को किस तरह से और बेहतर बनाया जा सकता है, इसके लिए कई विचार हैं। दशहरा उत्सव की खास बात यह होगी कि इसमें लगभग बीस देशों के सांस्कृतिक प्रतिनिधि भाग लेंगे। हिमाचल के विभिन्न सांस्कृतिक मंचों के कलाकारों द्वारा भी पर्यटकों और स्थानीय लोगों का मनोरंजन किया जाएगा। मेले में लगने वाले स्टाल या दुकानों को पैगोड़ा, यहां की मंदिर निर्माण वास्तुकला, का आकार देने की कोशिश की जाएगी। साफ-सफाई और रोशनियों का विस्तृत प्रबंध किया जा रहा है। व्यापारिक दृष्टि से यह मेला कुल्लू और लाहुल-स्पीति के लिए बहुत महत्व रखता है। पिछले कुछ सालों में जब से अटल सुरंग शरू हुई है, लोगों को यातायात हर मौसम में आवाजाही की सुविधा है। लेकिन पहले जब यातायात रोहतांग दर्रे से होकर गुजरता था तब अधिकतर खरीददारी लोग दशहरा के मेले से ही करते थे।

अब भी यह परंपरा है। क्योंकि बर्फबारी और मौसम की अनिश्चितता बनी रहती है। हां, यह बात अलग है कि सुरंग के आसपास का रास्ता अगर बर्फबारी में कुछ दिनों के लिए बंद भी रहे तो उसे जल्दी खोलने के लिए हम सक्षम हैं। पिछले तीन सालों में कुल्लू दशहरा ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। पूरे देश में ही अनिश्चितता का वातावरण था। लेकिन इस बार बरसातों में हिमाचल को बहुत कठिन दौर से गुजरना पड़ा। अकस्मात बाढ़, बारिशें, बादलों का फटना, भूस्खलन और पहाडिय़ों और रास्तों का जगह-जगह से बह जाना, यह सब दुखद है। 9 जुलाई से लगातार नुकसान और 14 अगस्त के बाद हिमाचल प्रदेश के निवासियों को काफी नुक्सान हुआ। जान-माल की खूब क्षति हुई। हिमाचल धीरे-धीरे अपने पैरों पर खड़ा हो रहा है। 12000 करोड़ की हानि के बाद, केंद्र सरकार और राज्य सरकार के प्रयत्नों से बहुत सी सडक़ों और दूसरी जगहों को ठीक किया गया है। सडक़ों के जगह-जगह से बह जाने से हिमाचल में पर्यटकों का आना-जाना लगभग बंद हो गया था। ज्ञात रहे हिमाचल की आर्थिक स्थिति पर्यटन और बागवानी पर अधिक निर्भर करती है। पिछले 15 दिनों में कुल्लू, मनाली तथा दूसरे पर्यटक स्थलों में पर्यटकों का आना-जाना शुरू हुआ है। कुल्लू दशहरा, आपदा से उभरे हिमाचल के जीवन में नया रंग भरेगा। यह साल का सबसे बड़ा उत्सव है। हिमाचल सरकार चाहती है कि इसे इस बार एक यादगार उत्सव बनाया जाए। इसलिए इसे अच्छे तरीके से योजनाबद्ध किया गया है। दशहरा कमेटी के अध्यक्ष एवं सीपीएस सुंदर सिंह ठाकुर नहीं चाहते कि कोई कसर बाकी रहे।

उपायुक्त आशुतोष गर्ग और तमाम प्रशासनिक अधिकारी जो दशहरा कमेटी का हिस्सा हैं, दशहरा उत्सव को खास बनाने में लगे हैं। सुरक्षा और सुविधा को प्रमुखता दी जा रही है। कुल्लू दशहरा उत्सव को अंतरराष्ट्रीय फोक डांस फेस्टिवल भी कहा जाता है। कुल्लू के लोक नर्तक सामूहिक नाटी में रिकार्ड तो बना ही चुके हैं। इस बार 20 देशों के कलाकार नृत्य और अन्य कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। स्थानीय लोगों के लिए विश्व संस्कृति की झलक देखने का यह सुनहरा अवसर होगा। दशहरा में 325 देवी-देवता भाग लेंगे। यह संख्या कम या ज्यादा हो सकती है। उन्हें तमाम सुविधाएं प्रदान की जाएं, इसका विशेष ध्यान रखा जाएगा। दशहरा को आधुनिकता प्रदान की जा रही है। पारंपरिक मान्यताओं को उतना ही सम्मान भी दिया जा रहा है। दशहरा के प्रचार-प्रसार के लिए सोशल मीडिया का भरपूर प्रयोग किया जाएगा। दशहरा के विज्ञापन आजकल एक्स (जो पहले ट्विटर था) और दूसरे सोशल मीडिया पर देखे जा सकते हैं। विभिन्न समाचार पत्रों और दृश्य संचार साधनों में भी इस उत्सव का जमकर उल्लेख किया जा रहा है। कुल्लू दशहरा प्रदेश में आपसी मिलनसारी और भाईचारे का प्रतीक भी है। इस अवसर पर लोगों का बड़ी संख्या में मेला देखने आना, आपस में मिलना जुलना, सांस्कृतिक आदान प्रदान और खुशी के सात दिनों को बिताना, अपने आप में रोमांचकारी है। पिछले तीन महीने हिमाचल के जीवन में बहुत कष्ट लेकर आए। लेकिन सबके सांझा प्रयासों से हम मुश्किलों से निपट कर लगभग सामान्य हो रहे हैं।

दशहरा उत्सव उदास चेहरों पर खुशी लौटा सकने में कामयाब होगा। व्यापारी, खरीददार और पर्यटक इस वार्षिक उत्सव का बहुत बेसब्री से इंतजार करते हैं। यह महासंगम है हिमाचल की सांस्कृतिक विरासत का। यहां की लोककला का, यहां के इतिहास का, वाद्ययंत्रों का, धार्मिक परम्परा का और दर्पण है पहाड़ी जीवन का। सात दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में पूरी कुल्लू वादी नया रूप धारण कर लेती है। पूरी वादी में हिमाचल के लोकगीतों की आवाज गूंजती है। देवी-देवताओं के रथों या पालकियों के साथ लोगों के झुण्ड दशहरे में शामिल होते हैं, रथयात्रा में लोगों का सैलाब उमड़ पड़ता है। श्री रघुनाथ जी का रथ पर विराजमान होना और घाटी के समस्त देवी-देवताओं का इस रथयात्रा में भाग लेना, श्रद्धालुओं का रथ को खींचना, सबसे सुन्दर तस्वीर प्रस्तुत करता है। हिमाचल की जनता और बाहर से आने वाले सैलानियों के लिए यह महाकुंभ है, देवभूमि की धार्मिक आस्था में लीन होने के लिए। उम्मीद है यह उत्सव प्राकृतिक आपदा से उभर रहे हिमाचल के जख्मों पर मरहम का काम करेगा।

रमेश पठानिया

स्वतंत्र लेखक


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