बाइडेन-शी मुलाकात

By: Nov 17th, 2023 9:37 pm

करीब छह लंबे सालों के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अमरीका गए। उन्होंने वहां ‘एशिया पेसिफिक इकोनॉमिक को-ऑपरेशन’ (एपेक) के शिखर सम्मेलन में भाग लिया, लेकिन उसी दौरान अमरीकी राष्ट्रपति जोसेफ बाइडेन से देर रात मुलाकात और बातचीत महत्वपूर्ण मानी जा सकती है। एक मुलाकात से ही दो देशों के आपसी तनाव, विवाद और छाया-युद्ध के संकट हल होने लगेंगे, ऐसा सोचना ही फिजूल है। अलबत्ता दोनों राष्ट्रपति फिर से सैन्य-वार्ता (हॉटलाइन) को बहाल करने पर सहमत हुए हैं, यह ही महत्वपूर्ण निष्कर्ष है। जी-20 देशों के बाली शिखर सम्मेलन के करीब एक साल बाद दोनों राष्ट्रपति मिले हैं, तो संवाद और संचार का सिलसिला भी बंध सकता है। उसी से कई संघर्ष और तनाव शांत पड़ सकते हैं, लेकिन एक मुलाकात से ही अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य और समीकरण बदल जाएंगे, यह फिलहाल संभव नहीं है। अमरीका और चीन के बीच सैन्य स्तर पर संबंध खटास में पड़ गए थे अथवा टूटने के कगार तक पहुंच चुके थे, क्योंकि अमरीका की तत्कालीन स्पीकर नैन्सी पेलोसी ताइवान के प्रवास पर गई थीं।

अब उनमें बहाली होगी, तो कुछ गलतफहमियां पिघल भी सकती हैं। ताइवान और दक्षिण चीन सागर आदि के मुद्दों पर चीन अब भी अडिय़ल है, क्योंकि वह ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और अपने में मिलाना चाहता है। बताया जा रहा है कि चीनी राष्ट्रपति ने यह मुद्दा अमरीकी समकक्ष के सामने उठाते हुए आग्रह किया है कि अमरीका ताइवान को हथियार देना बंद करे। लेकिन शी जिनपिंग का यह कहना महत्वपूर्ण है कि हम आक्रमण का रास्ता अपनाने से बचें। चीन अमरीका को पछाडऩा अथवा उसकी जगह लेना नहीं चाहता, लिहाजा अमरीका भी चीन को दबाना बंद करे। इस संदर्भ में शी ने पहली बार चीन को ‘महाशक्ति’ करार दिया। दूसरी तरफ अमरीकी राष्ट्रपति बाइडेन ने स्पष्ट किया कि ताइवान पर अमरीका का रुख बदलने वाला नहीं है। दरअसल आपसी प्रतिस्पर्धा को किसी भी स्थिति में संघर्ष में तबदील करने से बचा जाए। बहरहाल यदि ताइवान पर संवाद किया गया है, तो क्वाड, ऑकस (अमरीका, ब्रिटेन, ऑस्टे्रलिया के बीच एक सुरक्षा, सैन्य समझौता) और पुराने साथी देश जापान के साथ संबंध सुधारते हुए रणनीतिक विस्तार पर भी अमरीकी-चीनी राष्ट्रपतियों में बातचीत हुई होगी। दरअसल बीते एक दशक या उससे कुछ अधिक समय के दौरान अमरीका ने एशिया में अपनी रणनीति को व्यापकता और मजबूती दी है। भारत और जापान इसके सबसे अहम उदाहरण हैं। वे आपस में रणनीतिक साझेदार भी हैं। हिंद प्रशांत महासागर, दक्षिण चीन सागर आदि बेहद संवेदनशील क्षेत्रों में अमरीका और उसके साथी देश मिलकर चीन को कितना ‘प्रभावहीन’ बना सकेंगे, यह भी संवाद का एक महत्वपूर्ण पक्ष रहा होगा। दोनों राष्ट्रपतियों के संवाद के संदर्भ में भारत की यह भूमिका जरूर कारगर रहेगी कि वह वाशिंगटन-बीजिंग के बदलते संबंधों पर गहरी निगाह रखे। यदि अमरीका-चीन में तनाव और टकराव के हालात शांत होते हैं, तो उसका फायदा वैश्विक बाजार को भी होगा।


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