एंटायर पनौती साइंस

By: Nov 28th, 2023 12:05 am

साधो! समस्त दुनिया के विश्वविद्यालयों में जिस तरह एंटायर पॉलीटिकल साइंस की डिग्री की पढ़ाई नहीं होती, उसी तरह हिन्दी या किसी अन्य भाषा के शब्दकोश में पनौती शब्द मौजूद नहीं। लेकिन विश्व गुरू में कुछ भी संभव है। जब हम मौके और ज़रूरत के हिसाब से नया देवता या देवी घड़ सकते हैं तो एंटायर पॉलीटिकल साइंस की डिग्री या पनौती जैसा शब्द क्यों नहीं घड़ सकते। पूरी दुनिया में केवल हमारे विश्व गुरू ही ऐसे हैं, जिन्होंने गुजरात विश्वविद्यालय से एंटायर पॉलीटिकल साइंस में एमए की डिग्री हासिल की है। हिन्दी फिल्म राजा बाबू में जिस तरह अभिनेता गोबिन्दा द्बारा अभिनीत पात्र अनपढ़ होने के बावजूद हर मौके पर नए गेटअप में नजऱ आता है, उसी तरह परिधान मंत्री हर रोज़ मौके के हिसाब से नए-नए परिधानों में नजऱ आते हैं। कभी वह संत-फकीर हो जाते हैं तो कभी पायलट, कभी आदिवासी हो जाते हैं तो कभी सैनिक या कुछ और। परिधान मंत्री के कपड़ों के बारे में भले पूरे विश्वास के साथ से यह न कहा जा सके कि वह आज कौनसा बाना धारण करेंगे, किन्तु यह बात पूरे यक़ीन से कही जा सकती है कि न संसार के किसी विश्वविद्यालय में एंटायर पॉलीटिकल साइंस की डिग्री की पढ़ाई होती है और न विश्व की किसी भाषा में पनौती नाम का कोई शब्द है। पनौती शब्द न हिन्दी के शब्दकोश में सम्मिलित है और न मराठी के। गुजराती के शब्दकोश में यह शब्द अवश्य आता है, लेकिन पनौती के रूप में नहीं। गुजराती में जो शब्द मौजूद है, वह पनोती है। यह अच्छे-बुरे दोनों सन्दर्भों में इस्तेमाल होता है। पर जिन्हें मीठा-मीठा गप-गप और कड़वा-कड़वा थू-थू करने की आदत हो, उन्हें गुजराती होने के बावजूद पनोती शब्द उसी अर्थ में दिल में कटार बन कर चुभ रहा है, जिस अर्थ में यह आजकल देश में इस्तेमाल किया जा रहा है। अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में खनिज तेल सस्ता होने पर परिधान मंत्री किसी चुनावी रैली में स्वयं ही ख़ुद को नसीब वाला बताते हुए कह सकते हैं कि जब नसीब वाला सामने है तो बदनसीब क्यों चुना जाए।

‘मुझसे शादी करोगी में कादिर ख़ान अभिनीत चरित्र सुविधा के हिसाब से किसी दिन अंधा बन जाता है तो किसी दिन गूँगा या बहरा। हमारे परिधान मंत्री नसीब वाले वैश्विक नेता तो बन जाते हैं, लेकिन उन्हें बदनसीब कहलाना पसंद नहीं। शायद उन्हें लगता है कि इस घोर कलियुग में वह विष्णु के अवतार हैं जो अपने व्यापारी मित्रों के उद्धार के लिए अवतरित हुए हैं। लेकिन क्रिकेट विश्व कप फाइनल में देश के हारने पर पनौती कहे जाने पर उस बच्चे की तरह मचल उठते हैं, जो कक्षा में स्वयं तो दूसरे बच्चों को चिढ़ाता है, लेकिन दूसरे बच्चों द्वारा चिढ़ाए जाने पर शिक्षक से शिकायत करना आरम्भ कर देता है। पनोती शब्द हिन्दी टीवी धारावाहिक ‘तारक मेहता का उल्टा’ में पहली बार इस्तेमाल किया गया था, जिसका मुख्य चरित्र गुजराती था। वहाँ से होता हुआ यह शब्द पनौती के रूप में बॉलीवुड के उस अभिनेता की फिल्म ‘खट्टा-मीठा’ में इस्तेमाल हुआ, जिसने पत्रकार बन कर परिधान मंत्री का साक्षात्कार करते हुए उनसे सवाल पूछा था कि वह आम चूस कर खाते हैं या काट कर। लेकिन इसके बाद से इस अभिनेता की सारी फिल्में लगातार फ्लॉप हो रही हैं। इसी तरह एक बॉलीवुड अभिनेत्री की सारी फिल्में तब से निरन्तर फ्लॉप हो रही हैं, जब से वह परिधान मंत्री से जुड़ी है। ऐसे ही बॉलीवुड के एक शायर और लेखक के परिधान मंत्री से जुडऩे के बाद नौबत पिटने तक आ पहुँची। अब यह शोध का विषय हो सकता है कि यह तीनों बॉलीवुड शख्सियत परिधान मंत्री से जुडऩे के बाद पनौती हुईं या परिधान मंत्री इनसे जुडऩे के बाद पनौती हुए। गोबर पट्टी क्या, अब तो पूरे देश में पनौती को अपशकुन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। भाषाविदों को जो थोड़ा-बहुत संशय बाक़ी था, वह बीजे पार्टी ने राहुल गाँधी द्वारा चुनावी रैली में इस शब्द को इस्तेमाल करने पर चुनाव आयोग को शिकायत कर दूर कर दिया है।

पीए सिद्धार्थ

स्वतंत्र लेखक


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