सियासी परिदृश्य की प्रतिभा

By: Nov 10th, 2023 12:05 am

हिमाचल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह के कम से कम मंडी दौरे ने यह बता दिया कि पार्टी के सामने लोकसभा चुनाव की दीवार खड़ी है। ताजी सत्ता के सामने लोकसभा चुनाव के पैमानों की सियासत तो रहेगी ही, लेकिन तख्त और ताज की परीक्षा में सरकार के ढर्रे का मूल्यांकन भी होगा। यह इसलिए भी कि कांग्रेस इस समय देश के सामने फिर युग परिवर्तन की भूमिका में आगामी चुनाव की धुरी से, विपक्षी एकता के समुद्र को लांघ रही है, जबकि वर्तमान में पांच राज्यों के चुनाव परिणाम उसका राजनीतिक स्थान, कद और परिदृश्य तय करेंगे। हिमाचल में लोकसभा चुनाव की पटकथा यूं तो मंडी व हमीरपुर में लिखी जाएगी, फिर भी कांगड़ा और शिमला संसदीय क्षेत्रों में सत्ता के दरबार और सत्ता के दरबारियों के बीच फैसला होगा। मंडी क्षेत्र में प्रतिभा सिंह को कांग्रेस के तिलक और अपने परिवार की पृष्ठभूमि में उसी संकल्प को फिर से पूरा करना है, जो पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की विरासत का संरक्षण करने का माद्दा रखता है। दूसरी ओर भाजपा की पूर्व सरकार और पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की अमानत के लिए यहां चुनाव में दो-दो हाथ करने के लिए पगड़ी का सवाल है। क्या मंडी की पगड़ी पहन कर जयराम ठाकुर दिल्ली फतह करने के लिए इस सीट को सुनिश्चित करेंगे या फिल्मों में पिट कर सियासत में देश भक्ति खोज रही कंगना रणौत को भाजपा का आश्रय मिल जाएगा। फिलहाल कांग्रेस की ओर से मंडी का उम्मीदवार और भाजपा की ओर से हमीरपुर के प्रत्याशी लगभग तय हैं।

मंडी के बाद हमीरपुर संसदीय सीट में इस बार राज्य बनाम केंद्र की सत्ता का मुकाबला होगा। तमाम सत्ताओं के श्रेष्ठ फलक पर विद्यमान नेताओं का अपना भविष्य हमीरपुर संसदीय सीट के भविष्य पर टिका है। यह सीट मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के अलावा उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्रिहोत्री के ताज-तिलक की परीक्षा है, तो केंद्रीय मंत्री के रूप में अनुराग ठाकुर की छवि और बतौर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के प्रभुत्व व प्रतिष्ठा का मूल्यांकन भी करेगी। जहां तक शिमला संसदीय सीट की अहमियत का सवाल है, सरकार सबसे अधिक मंत्रिमंडल में इस क्षेत्र को प्रतिनिधित्व देकर अपना दांव खेल चुकी है। शिमला सीट को जीतने का सामथ्र्य हकीकत में मंत्रिमंडल के गठन का विजय घोष होना चाहिए। यहां कई तोरणद्वार व कलगियां लगाकर सरकार ने प्रदेश को हिम्मत से बताया था कि उसके प्रभाव के सारे आंकड़े यानी पांच मंत्री इस क्षेत्र से होना अब नई सत्ता का दस्तूर है। यहां कांग्रेस का दांव अन्य सभी सीटों से भारी है। सरकार में कांगड़ा-चंबा संसदीय सीट की हकीकत राजनीतिक दास्तां की तरह है। यहां मंत्रिमंडल की एकमात्र पगड़ी पहने चौधरी चंद्र कुमार के माध्यम से अन्य पिछड़ा वर्ग के सारे मत बटोरने की इच्छा सरकार को रहेगी, लेकिन मंत्रिमंडल की रिक्तियां फिलहाल, सबसे अधिक सत्ता को दस विधायक सौंपने वाले कांगड़ा जिला की सियासी मजबूरी ही साबित हुई हैं। हो सकता है सीपीएस, कैबिनेट रैंक के दो पदकों व विधानसभा अध्यक्ष के पद देने के बाद भी चुनावी परीक्षा में उतरने से पहले सत्ता को उपेक्षित कांगड़ा का महत्त्व समझ आ जाए। ऐसे में मंत्रिमंडल विस्तार के लिए लोकसभा चुनाव ने कुछ जख्म तो अब तक सहला ही दिए हैं।

फिर भी चुनावी परिभाषा के अनुरूप कांगड़ा संसदीय सीट भाजपा व कांग्रेस की कमजोर कड़ी प्रतीत होती है। यहां उम्मीदवारी के लिए खाली मैदान समझ कर कुछ ऐसे लोग भी मांसपेशियां दिखा रहे हैं, जो न भाजपा की उधेड़बुन कम कर सकते हैं और न ही कांग्रेस के दीप को आंधियों से बचा सकते हैं। बहरहाल केंद्र की मोदी सरकार के दस सालों के मुकाबले सुक्खू सरकार को अपने एक साल का योगदान दिखाना पड़ेगा। आपदा से गुजरते हिमाचल ने वक्त की त्रासदी में दोनों सरकारों को देखा, परखा और समझा है। कहीं तो राहत को तरसते हिमाचल ने भाजपा के बड़े-बड़े बयान सुने हैं, लेकिन हकीकत में पोटली खाली ही निकली। यह कहना पड़ेगा कि अपनी त्रासदी से निकलने की इच्छाशक्ति सुक्खू सरकार ने दिखाई, लेकिन पार्टी के भीतर कहीं सत्ता का प्रभाव बेचैनियां दूर नहीं कर पाया। इसीलिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह मंत्रियों को हिदायत देने की बजाय अरदास कर रही हैं कि वे पार्टी को अपना प्रभाव दें। अंतत: सारी कलई तो मतदाता को ही दिखाई देती है और वह उसे अपने विश£ेषण से ही खोलेगा।


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