हिमाचली हिंदी कहानी : विकास यात्रा

By: Nov 12th, 2023 12:05 am

डा. हेमराज कौशिक

अतिथि संपादक

मो.-9418010646

कहानी के प्रभाव क्षेत्र में उभरा हिमाचली सृजन, अब अपनी प्रासंगिकता और पुरुषार्थ के साथ परिवेश का प्रतिनिधित्व भी कर रहा है। गद्य साहित्य के गंतव्य को छूते संदर्भों में हिमाचल के घटनाक्रम, जीवन शैली, सामाजिक विडंबनाओं, चीखते पहाड़ों का दर्द, विस्थापन की पीड़ा और आर्थिक अपराधों को समेटती कहानी की कथावस्तु, चरित्र चित्रण, भाषा शैली व उद्देश्यों की समीक्षा करती यह शृंखला। कहानी का यह संसार कल्पना-परिकल्पना और यथार्थ की मिट्टी को विविध सांचों में कितना ढाल पाया। कहानी की यात्रा के मार्मिक, भावनात्मक और कलात्मक पहलुओं पर एक विस्तृत दृष्टि डाल रहे हैं वरिष्ठ समीक्षक एवं मर्मज्ञ साहित्यकार डा. हेमराज कौशिक, आरंभिक विवेचन के साथ किस्त-3१

-(पिछले अंक का शेष भाग)

‘पोस्ट खाली है’ कहानी में एक शिक्षिक के दुर्घटनाग्रस्त होकर मृत्यु होने की अफवाह के कारण विद्यालय में उस शिक्षक के पद रिक्त होने पर विभिन्न अध्यापकों के उस पद को भरने के लिए स्वार्थयुक्त दृष्टिकोण को सामने लाया है। ‘डोलमा’ कहानी में दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र में अध्यापकों के जीवन की कठिनाइयों के साथ एक दस साल की बालिका की निर्धनता को रेखांकित किया है। डोलमा का चरित्र मार्मिक बन पड़ा है। जीर्ण-शीर्ण कपड़ों को पहने बालिका को शहर से आया शिक्षक उसे गर्म सूट लाने का आश्वासन देता है। बालिका प्रतीक्षारत रहती है। शिक्षक अपने वचन को पूरा नहीं करता है और शहर के विद्यालय में स्थानांतरण करवा कर चला जाता है। वह उन्हें विदा भी करती है। बालिका निराशा में डूब जाती है। ‘दबी हुई आग’ में मजदूर वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में सोहणा सत्ता के विरोध में खड़ा होता है।

मजदूरों को वेतन समय पर न मिलने को लेकर वह शोषक वर्ग के विरोध में चुनौतीपूर्ण भाषण देता है और मजदूरों को अपने अधिकारों के प्रति सजग करता है। ‘पहली बरसात’ में नव-विवाहिता पति-पत्नी के अंतर्मन की भावनाओं को व्यंजित करने के साथ कृषक जीवन की दुश्वारियों को निरूपित किया है। ‘डेपुटेशन’ शीर्षक कहानी में कल्याण चंद के माध्यम से ग्रामीण समाज में एक डाकिए के वैयक्तिक और सामाजिक जीवन को मूर्तिमान किया है। डेपुटेशन में एक महीने के लिए आए एक डाकिए का गांव में जीवन है।

कहानीकार ने कहानी के सूत्र रोमांटिक रेशों से विन्यस्त किए हैं जिसमें युवती के प्रति डाकिए की मूक प्रेम भावना का उन्मेष है। ‘ड्यूटी’ में कहानीकार ने यह प्रतिपादित किया है कि रणजीत सिंह जैसे अनेक सैनिक हैं जो तीज-त्यौहार के अवसर पर सुदूर दुर्गम क्षेत्रों पर ड्यूटी देते हैं। वे अपनी पत्नी-बच्चों की स्मृतियों में त्योहारों के अवसर पर विचलित होते हैं। देश की सीमाओं की रक्षा के लिए वैरी दल से लोहा लेने के लिए कृतसंकल्प रहते हैं। हंसराज भारती की संदर्भित संग्रह की कहानियां उनके निकट परिवेश के यथार्थ को सहज-सरल शैली में व्यंजित करती हैं। पात्रानुकूल भाषा शैली के प्रयोग के कारण आंचलिक भाषा बोली के संवाद कथा तंतुओं को और अधिक प्रभविष्णु और रसयुक्त बनाते हैं। हंसराज भारती की कहानियां परिवेश को तो जीवंत बनाती ही हैं, किरदारों के अंत:करण में भी प्रवेश कर अंतर्मन की ऊहापोह को भी मूर्तिमान करती हैं।

कथाकार रेखा की सृजन यात्रा का समारंभ उस समय हो गया था जब वे विद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रही थीं। बाद में महाविद्यालय में शिक्षा अर्जित करते हुए सृजन में अभिरुचि के फलस्वरूप कालेज की पत्रिका की संपादक भी रहीं। समय-समय पर उनकी कहानियां पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। रेखा का प्रथम कहानी संग्रह ‘पिआनो’ (1994) शीर्षक से प्रकाशित है। इसमें ग्यारह कहानियां- हाथ, तीसरा आदमी, ब्राउन कोट, विरासत, समीकरण, जिजीविषा, शंकर दास की चि_ी, ब्यूटी पार्लर, ट्रॉफी, इतना आसान और पिआनो संगृहीत हैं। संदर्भित संग्रह की कहानियों की संवेदना भूमि मध्यवर्गीय समाज की अहंमन्यता, अहंकार और प्रदर्शनवृत्ति पर केंद्रित है। इनमें निम्न मध्य वर्ग तथा हाशिए पर स्थित समाज के प्रति मध्यवर्गीय मानसिकता और उपेक्षापूर्ण दृष्टि का निरूपण है। कुछ कहानियां स्त्री-पुरुष संबंधों के सूक्ष्म तंतुओं से निर्मित हैं।

संग्रह की पहली कहानी ‘हाथ’ में सरयू केंद्रीय चरित्र है। इसके इर्द-गिर्द कथा तंतु निर्मित है। सरयू अपने प्रेमी सलिल से मिलने के लिए आतुर होकर जिस बस में चढ़ती है, वह रोगियों के समूह से पूरी तरह भरी होती है। उसे अंधेरे में कुछ रोगियों के झड़ चुके हाथों के स्पर्श की अनुभूति होती है। जीवन की इस कुरूपता का वह साक्षात्कार करती है जिसमें जुगुप्सा और घृणा की भावना विद्यमान है। वह अनुभव करती है ‘सहसा वह स्पर्श हाथों से छिटक गया। पीठ के नंगे हिस्से में एक खुरदरी रगड़ महसूस हुई। अत्यंत कंटीला स्पर्श। वह जुगुप्सा से तिलमिलाई। वह अपनी पूरी ताजगी में अछूता रहना चाहती है, सलिल के लिए, और रगड़ है कि लगातार उसका धीरज खुरच रही है। पीठ पर कनखजूरे जैसा कोई कीड़ा चल रहा है- उसके महीन पांव पहले चमड़ी, फिर मांस, फिर हड्डियों तक कुरेदेते चले जाएंगे।’ कहानीकार ने कहानी की वस्तु को फेंटेसी में विकसित किया है।

जिन हाथों का वह स्पर्श अनुभव करती है वह हाथ नहीं ठूंठ हथौड़े जैसे बेडोल मु_ी होती है। बस में वह स्पर्श उसे बेहोशी तक ले जाता है जिसमें वह बड़ाबड़ाती रहती है, मेरे हाथ मेरे हाथ हाथ कहां थे? यह कहानी जीवन की कुरूपता और सुंदरता को एक साथ जिस शैल्पिक विधान से विन्यस्त करती है, वह अपने आप में विलक्षण है। ‘हाथ’ चेतन और अचेतन मन के तंतुओं से निर्मित कहानी है। ‘हंस’ में प्रकाशन के साथ ही यह कहानी न केवल चर्चा के केंद्र में आई, अपितु उस दशक में हिंदी में प्रकाशित श्रेष्ठ कहानियों में चयनित होकर कथा पुरस्कार से भी अलंकृत हुई थी। ‘ब्राउन कोट’ काव्यात्मक शैली में सृजित कहानी है। इसमें डॉ. रजत और उसकी पत्नी सुधा के अतिरिक्त शोधार्थी सुमि है। डॉ. रजत प्रख्यात लेखक है, बुद्धिजीवी है। उसका ब्राउन कोट उसके बुद्धिजीवी व्यक्तित्व का प्रतीक है। उसको धारण कर वह एक बड़े लेखक के रूप में सामने आता है, परंतु उनका दाम्पत्य जीवन तनावपूर्ण है। गृहस्थी की पट्टी समतल नहीं है। उस तनावपूर्ण जीवन में पत्नी का आक्रोश पति के सामने आने पर समय-समय पर प्रस्फुटित होता रहता है। शोधार्थी सुमि डॉ. रजत के व्यक्तित्व से प्रभावित होती है और पाठक भी डॉ. रजत के व्यक्तित्व के साथ चलता है। सुमि दोनों के तनावपूर्ण संबंधों को अनुभव करती है।

सुमि के संपर्क में आकर उसके तनाव में शिथिलता आती है और वह सुमि को अपने उपन्यास की नायिका के रूप में रूपांतरण करना चाहता है। परंतु कहानी का अंत एक आकस्मिक मोड़ लेता है और पुरुष की मानसिक विकृतियों पर प्रहार करती है। वह सवाल उठाती है ‘रजत! क्या मैं कोई खाली फोटो फ्रेम हूं जिसमें आप मन चाहे अपनी किताबों की स्त्रियों के हंसते रोते चेहरे फिट कर सकें? क्या सुधा इसलिए असफल है कि वह आपकी किसी पेचीदा नायिका जैसी नहीं लगती। वह ऐसा पारदर्शी प्रिज्म नहीं जिसे छूकर आपकी कल्पना सतरंगी इंद्रधनुष बनती रहे।’ ‘विरासत’ में मध्यवर्गीय परिवार का चित्रण है जिसमें पांच बेटियों के पिता की बेटी उर्मि को परिवार के उत्तरदायित्व में पिता और बिजी के लिए सहायक होना पड़ता है। विवाह की उम्र निकलने पर वृद्धावस्था में माता-पिता की सेवा में समर्पित रहती है। पिता के जीवन के उत्तरार्ध में उर्मि उनके लिए बेटे की भूमिका में पहुंच जाती है और पिता भी उसे बेटा कह कर संबोधित करते हैं। कहानीकार ने उर्मि के चेतन-अचेतन मन के संताप और अंतद्र्वंद्वों को सूक्ष्मता से निरूपित किया है। ‘तीसरा आदमी’ में स्त्री-पुरुष मन के अंतद्र्वंद्वों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण है।

शिप्रा के गर्भ में कृत्रिम गर्भाधान से पलने वाले शिशु के संबंध में पति शेखर की सहमति होती है, परंतु पति के मन में अंतद्र्वंद्व और तनाव है। इसी अंतद्र्वंद्व पूर्ण स्थिति में वह शिशु के जन्म पर सुख अनुभव नहीं करता। वह उस समाचार को भी नहीं सुनना चाहता। यहां आधुनिकता और रूढि़वादिता से ग्रस्त शेखर की मनोस्थिति का सूक्ष्म विश्लेषण है। ‘ट्रॉफी’ लघु कलेवर की कहानी है जिसमें कथा नायिका का अपने अयोग्य छात्र के प्रति जुगुप्सा और घृणा भाव है जो वर्षों के अंतराल के अनंतर परिवर्तित हो जाता है जब वह बस में कंडक्टर बनकर अपनी शिक्षिका से आत्मीयता स्थापित करता है। अपने पुराने शिष्य के प्रति कथा नायिका की दृष्टि और हृदय परिवर्तित होता है। ‘पिआनो’ संग्रह की शीर्ष कहानी है। इसमें ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के हस्तांतरण के अनंतर पर्वतीय शहर में रहने वाले वाली दो अंग्रेज बहनों की मार्मिक गाथा है जो अपने जीवन के उत्तरार्ध में औपनिवेशिक शासन काल की स्मृतियों को पुनर्जीवित करते हुए अपना जीवन यापन करती है। प्रस्तुत कहानी में दो सनकी अंग्रेज बहनों का अपने देश के प्रति अनुराग और शिमला की कोठी के एकांत में अकेलापन तथा अतीत और वर्तमान का द्वंद्व उभर कर सामने आया है।

कहानीकार ने यह स्थापित किया है कि उपनिवेश की सत्ता परिवर्तित होती है तो उसकी भव्य इमारतें खंडहर में परिवर्तित होकर श्रीहीन हो जाती हैं। उनमें रहने वाले लोगों का जीवन भी विखंडित हो जाता है। मानवीय संदर्भ में देखें तो ‘पिआनो’ कहानी के चरित्र उन लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने देश और नेटिव स्थान को लौटने की सामथ्र्य नहीं रखते। अपने एकांत में दो वृद्ध बहनें पर्वतीय शहरी परिवेश के अकेलेपन में अपने जीवन के उत्तरार्ध को गुजारती है। एक तरह से वे अर्थहीन और निरुदेश्य जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं। उनका प्रिय वाद्य पिआनो भी आखिर में बिक जाता है तो बड़ी बहन ग्रेस नितांत दुखी होती है और छोटी बहन रूबी मि नाथ से कहती है ‘आप वाइसराय हाउस में काम करते हैं न? वहां कई पिआनो थे। अगर कोई पुराना पिआनो सस्ते में नीलाम हो तो खरीद लेना अपने नाम से, मुझे ग्रेस के लिए चाहिए।’

शंकर दास की चि_ी एक बूढ़े व्यक्ति के इर्द-गिर्द विन्यस्त की गई है। संदर्भित कहानी का देश विभाजन के समय नरसंहार और खून की पृष्ठभूमि में सृजन किया गया है। साथ में पंजाब में व्याप्त आतंकवाद के कारण रोज बेगुनाहों की हत्या की खबरें शंकर दास जैसे आम आदमी को विचलित करती हैं। वह कथा लेखिका से इस भयानक स्थिति से निजात पाने के लिए पढ़ी-लिखी होने के कारण सरकार को चि_ी लिखने का आग्रह करता है ‘यारो, कुछ तो सोचो! इस खून खराबे का क्या फायदा? यारो ढंग से रहो, कमाओ-खाओ, हंसो-खेलो। ईश्वर ने इतना दिया है, धरती माता भी इतनी दयालु है।’ कहानी लेखिका घर-घर बर्तन मांजने वाले निम्न मध्यवर्गीय अनपढ़ शंकर दास की बूढ़ी आंखों में धरती माता को छलछल रोती है। कहानीकार रेखा ने एक सामान्य चरित्र के इर्द-गिर्द कहानी के तंतु विन्यस्त कर संवेदनशील कहानी की सृष्टि की है। कथाकार रेखा ने शंकर दास की चि_ी, जिजीविषा, विरासत और ब्यूटी पार्लर जैसी कहानियों के माध्यम से निम्न मध्य वर्ग के संघर्ष को चित्रित किया है। इनमें ‘शंकर दास की चि_ी’ में शंकर दास के संघर्ष की भांति ‘ब्यूटी पार्लर’ में गुलशन और ‘जिजीविषा’ में रूपा ईमानदार और निर्भीक होकर अपनी बात को रखने वाले चरित्र हैं। संदर्भित संग्रह की कहानियों में कथाकार रेखा ने प्रतिपाद्य के वैविध्य को अपनी कलात्मक प्रतिभा से सूक्ष्मता रूपांतरित कर व्यंजित किया है। रेखा की कहानी कला की निजी विशिष्टता है। पहले ही कहानी संग्रह की कहानियों में हम जिस संवेदनात्मक गहराई और परिपक्वता से साक्षात्कार करते हैं एवं भाषा वैभव को देखते हैं, वह रेखा की कहानियों को विशिष्ट बनाती है।

-(शेष भाग अगले अंक में)

हिमाचल का कहानी संसार

विमर्श के बिंदु

1. हिमाचल की कहानी यात्रा
2. कहानीकारों का विश्लेषण
3. कहानी की जगह, जिरह और परिवेश
4. राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचली कहानी की गूंज
5. हिमाचल के आलोचना पक्ष में कहानी
6. हिमाचल के कहानीकारों का बौद्धिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक व राजनीतिक पक्ष

लेखक का परिचय

नाम : डॉ. हेमराज कौशिक, जन्म : 9 दिसम्बर 1949 को जिला सोलन के अंतर्गत अर्की तहसील के बातल गांव में। पिता का नाम : श्री जयानंद कौशिक, माता का नाम : श्रीमती चिन्तामणि कौशिक, शिक्षा : एमए, एमएड, एम. फिल, पीएचडी (हिन्दी), व्यवसाय : हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग में सैंतीस वर्षों तक हिन्दी प्राध्यापक का कार्य करते हुए प्रधानाचार्य के रूप में सेवानिवृत्त। कुल प्रकाशित पुस्तकें : 17, मुख्य पुस्तकें : अमृतलाल नागर के उपन्यास, मूल्य और हिंदी उपन्यास, कथा की दुनिया : एक प्रत्यवलोकन, साहित्य सेवी राजनेता शांता कुमार, साहित्य के आस्वाद, क्रांतिकारी साहित्यकार यशपाल और कथा समय की गतिशीलता।

पुरस्कार एवं सम्मान : 1. वर्ष 1991 के लिए राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से भारत के राष्ट्रपति द्वारा अलंकृत, 2. हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा राष्ट्रभाषा हिन्दी की सतत उत्कृष्ट एवं समर्पित सेवा के लिए सरस्वती सम्मान से 1998 में राष्ट्रभाषा सम्मेलन में अलंकृत, 3. आथर्ज गिल्ड ऑफ हिमाचल (पंजी.) द्वारा साहित्य सृजन में योगदान के लिए 2011 का लेखक सम्मान, भुट्टी वीवर्ज कोआप्रेटिव सोसाइटी लिमिटिड द्वारा वर्ष 2018 के वेदराम राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत, कला, भाषा, संस्कृति और समाज के लिए समर्पित संस्था नवल प्रयास द्वारा धर्म प्रकाश साहित्य रतन सम्मान 2018 से अलंकृत, मानव कल्याण समिति अर्की, जिला सोलन, हिमाचल प्रदेश द्वारा साहित्य के लिए अनन्य योगदान के लिए सम्मान, प्रगतिशील साहित्यिक पत्रिका इरावती के द्वितीय इरावती 2018 के सम्मान से अलंकृत, पल्लव काव्य मंच, रामपुर, उत्तर प्रदेश का वर्ष 2019 के लिए ‘डॉ. रामविलास शर्मा’ राष्ट्रीय सम्मान, दिव्य हिमाचल के प्रतिष्ठित सम्मान ‘हिमाचल एक्सीलेंस अवार्ड’ ‘सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार’ सम्मान 2019-2020 के लिए अलंकृत और हिमाचल प्रदेश सिरमौर कला संगम द्वारा डॉ. परमार पुरस्कार।

पुस्तक समीक्षा : संवेदनाओं को जगाता कविता संग्रह

आचार्य आरसी रत्नाकर का काव्य संग्रह ‘जलते नीड़’ पाठकों की संवेदनाओं को जगाता है। इस संग्रह में छोटी-छोटी 57 कविताएं संग्रहित हैं। अमृत प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित इस कविता संग्रह का मूल्य 400 रुपए है। आत्मकथ्य में कवि कहता है, ‘विगत 45 वर्षों से जब से मेरे अंतर्मन में शब्द संरचना का विवेक विकसित हुआ, तब से सामाजिक यथार्थ की घटनाओं ने मेरे कवि मन में हलचल पैदा की। मन में राष्ट्र भक्ति, प्रेम सौंदर्य, धीरता आदि भावों ने मुझे आंदोलित किया। इन्हीं अनुभूतियों ने कविता का रूप ले लिया।’ ‘स्वर्णिम कल के राही’ नामक कविता में कवि कहता है, ‘उठो, उठो, मेरे बंधु भाई/स्वर्णिम कल के हैं हम राही/नवयुग निर्माण हमीं से होगा/हर्षोल्लास हमीं से होगा/भारत मां का अनुपम-उज्ज्वल/शृंगार हमीं से होगा।’ स्वार्थ का भूत नामक कविता में कवि कहता है, ‘जोड़ता है सामग्री/विस्फोटों और घोटालों की/जोड़ता शब्दों के आकर्षक टोटके/बुनता षड्यंत्रों एवं भाषणों का सुनहरा जाल/जो जन सभाओं में/करता सुखद नव घोषणाएं/दिखाता स्वर्णिम सब्जबा$ग/लूटता करतल ध्वनियों में वाहवाही।’ मलाला की चेतावनी नामक कविता में बच्ची का हौसला देखिए, ‘अरे, देखा तुम्हारी गोलियों से/मेरा बाल बांका तक नहीं हुआ/हूं न, मैं जिंदा/तुम हैरान हो न, मैं अभी भी जिंदा हूं/चल सकती हूं, बोल सकती हूं/सोच-समझकर अपने अधिकार के लिए/पुन: लड़ सकती हूं।’ इसी तरह कवि ‘समय’ नामक कविता में समय की विकरालता प्रकट करता हुआ कहता है, ‘आज जिस दौर से हम गुजर रहे हैं/यह दौर बड़ा भयंकर है/संकट में है सबका अस्तित्व/सब अपने वजूद को बचाने के लिए/छटपटाने लगे हैं/विद्रोह पर उतारू हो गए हैं/यह विद्रोह हर जगह, हर क्षेत्र/हर जन-मन में पनपने लगा है/अब इससे कोई नहीं बचा है।’ कविता ‘नन्ही परी की विदाई’ में कवि कहता है, ‘तुम्हारा यहां आना/था कोई संबंध पुराना/प्राणी का आना-जाना/है नियति का नियम पुराना/और फिर/जीवन तो एक नाटक है/उस सूत्रधार के संकेतों पर/हर कोई करता अभिनय/सीता, राम या रावण का।’ संग्रह की सभी कविताएं विविध अनुभूतियां लिए हुए हैं। -फीचर डेस्क

कवि का सामथ्र्य दर्शाता कविता संग्रह

डा. शंकर लाल वासिष्ठ ‘जुगनू जितनी औ$कात’ नामक कविता संग्रह लेकर आए हैं। इस संग्रह में कवि का सामथ्र्य दर्शाया गया है। कवि की तुलना जुगनू से की गई है। साहित्य संस्थान, गाजियाबाद से प्रकाशित इस कविता संग्रह की कीमत 350 रुपए है। इस संग्रह के बारे में कवि का कहना है कि, ‘मेरी धारणा है कि साहित्यिक उदधि बहुमूल्य मणि-रत्नों से समृद्ध है, परंतु मुझे न तो इसकी गहराई का ज्ञान है और न ही मैं इस भंवर में जाने का साहस रखता हूं। मेरे साहित्यिक कोंपल पंख असीम साहित्यिक अंतरिक्ष को मापने की क्षमता भी नहीं रखते। जब साहित्यिक भौगोलिक परिस्थितियों का अलंकरण देखता हूं तो सर्वविध स्वयं को इस क्षेत्र में बौना पाता हूं। इसके बावजूद साहित्यिक जगत के अग्रणी विद्वानों, सुधी पाठकों के समक्ष यह कविता संग्रह लेकर प्रस्तुत हुआ हूं। यह मानते हुए कि मेरा भी वही प्रयत्न है जो घोर अंधकार में एक जुगनू का होता है।’ कविताएं विविध भावों को अभिव्यक्त करती हैं। ‘जुगनू जितनी औकात’ में कवि कहता है, ‘बस, व्याकुलता से/उर्वरा हो उठती है/कवि मन की क्यारी/खोदता है कलम से/करता है विचारों से/बीजारोपण… सींचता है/द्रवित हृदय के उद्गारों से/क्योंकि…/कवि या लेखक का/नहीं होता है कोई संप्रदाय/या…कोई विशेष जात/बस जुगनू जितनी होती है/उसकी औकात…।’

इसी तरह ‘दीपावली के दीपक’ में दीपक का महत्त्व बताते हुए कवि कहता है, ‘दीपावली के दीपक मात्र/राम के आगमन पर/उमड़े उल्लास व उत्सुकता/के ही प्रतीक नहीं…अपितु/सदियों से अपने आगोश दबोचे/तमस के घने कोहरे को/समेटने का सार्थक प्रयास है।’ ‘जिंदगी’ नामक कविता में कवि जिंदगी के संघर्ष को अभिव्यक्त करता है, ‘न नाप की जिंदगी, न चैन की जिंदगी/उलझनें सुलझाती, रही है जिंदगी/लहर-लहर लड़े, किनारा पाने को/यूं भंवर में घिरती, रही है जिंदगी।’ इसी तरह ‘धुआं-धुआं’ जैसी कविता में कवि की चिंता प्रकट होती है, ‘धुआं-धुआं अंदर और बाहर भी/ठंडी आग घृणा की लगाई किसने/मचा है आज कोहराम चारों ओर/दीवार विश्वास की गिराई किसने?’ संग्रह की अन्य कविताएं भी पाठकों को आह्लादित करती हैं।

प्रकृति की सैर करवाता उपन्यास

शुभांगी स्वरूप ने एक अंग्रेजी उपन्यास ‘लैटिट्यूड्स ऑफ लौंगिंग’ लिखा है। यह उपन्यास पाठकों को प्रकृति की सैर करवाता है। हार्पर कोलिन्स पब्लिशर्स इंडिया द्वारा प्रकाशित यह उपन्यास 599 रुपए कीमत का है। इसके चार अध्याय हैं : आइलैंड्स, फॉल्टिलाइन, वैली और स्नो डैजर्ट। यह पूरी तरह मौलिक उपन्यास है। इसे जादुई उपन्यास भी कहा जा सकता है। यह पाठकों के सोचने के अंदाज को बदल देता है। लोगों के बारे में आपकी क्या सोच है, भू-परिदृश्य, वन, समुद्र और स्नो डैजर्ट के बारे में सोच को भी यह बदल देता है।

यह उपन्यास मानव की उदासियों को खुशी में बदल देता है। पाठकों को यह आश्चर्यचकित भी करता है। दुख भरी जिंदगियों में यह उपन्यास आशाओं की किरणें भर देता है। उपन्यास में संवाद पात्रों के अनुकूल हैं। हालांकि इस उपन्यास की भाषायी सीमा भी है। कुछ संवाद बड़े, तो कुछ छोटे हैं। उपन्यास को पढ़ते हुए पाठक ऊबता नहीं है। पात्रों का चरित्र चित्रण स्वाभाविक रूप से हुआ है, वे उपन्यासकार के हाथों की कठपुतली बने नजर नहीं आते हैं। उपन्यास की कथावस्तु रोचकता लिए हुए है। आशा है यह उपन्यास पाठकों को अवश्य पसंद आएगा।

कविता

पहाड़ पर खड़े आदमी का बयान
मैं जिस जगह पैदा हुआ
वो जगह पानी में डूब गई
जिस वन में चराता था भेड़ें
उस वन पर एक
सीमेंट फैक्टरी लग गई
जिन छोटी छोटी नदियों में सीखा था तैरना
वो कब की सूख गईं
मेरे छोटे से गांव की हवा में
धूल ही धूल है
आजकल से मुलाकात तो छोड़ो
हमारा सूरज तक उस तरह नहीं चमकता
जितना बचपन के दिनों में चमकता था
मेरी रातें पता नहीं
टनल के कौनसे हिस्से में गुजरती हैं
पता नहीं कौनसे हिस्से में
कहां दब जाए मैं या मेरा दोस्त कोई
मेरी नींद
इन बचे हुए थोड़े से पेड़ों की
जड़ें सींच रही है
हो सकता है उसी की वजह से हों वे हरे
हमारे इन पहाड़ों के हर मोड़ पर
अधिकतर विधायकों के स्टोन क्रशर
खा रहे हैं पहाड़ की देह।
-सुरेश सेन निशांत


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