कैसे बनाएं साख

By: Nov 9th, 2023 12:05 am

सफलता के क्रम में हम जब दूसरों से मिलते हैं, उन्हें समझते हैं, उनसे प्रभावित होते हैं तो हम सीखते भी हैं…

कला के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों तथा लेखन में रत लोगों के मन में अक्सर यह विचार घर कर जाता है कि चूंकि वे कलाकार हैं, लेखक हैं, रंगकर्मी हैं, चित्रकार हैं अथवा शिल्पकार हैं, इसलिए बढिय़ा काम के लिए ‘मूड बनने’ की आवश्यकता रहती है, अत: कलाकार का मूडी होना उसका गुण है, या उसका अधिकार है। बड़े लेखकों, गायकों, अभिनेताओं के मूड के चर्चे अखबारों व पत्रिकाओं में छपते रहते हैं और लोग चटखारे ले-लेकर उन्हें पढ़ते भी हैं, इससे कला अथवा लेखन से जुडऩे वाले नए लोग यह मान लेते हैं कि लेखक अथवा कलाकार का मूडी होना स्वाभाविक ही है। यह सही है कि किसी काम में मन न हो तो काम का स्तर बढिय़ा हो ही नहीं सकता। इसमें भी दो राय नहीं है कि हमारे आसपास के लोगों, घटनाओं और वातावरण का प्रभाव हमारी मनोस्थिति यानी मूड पर पड़ता है और कई बार किसी एक छोटी-सी बात से भी बना बनाया मूड बिगड़ जाता है। हम किसी काम में पूरी तन्मयता से लगे होते हैं कि कोई व्यक्ति ऐसा कुछ कह देता है या कर देता है कि हमारा मन एकदम से उखड़ जाता है। लेखक भी आम आदमियों की हर कमजोरी का शिकार है और उसके लिए उसे दोष नहीं दिया जाना चाहिए। परंतु इसी प्रकार यह भी याद रखा जाना चाहिए कि कोई लेखक, लेखक होने के कारण ही महामानव नहीं हो जाता कि वह अनावश्यक आदतें पाल ले जो उसकी कमजोरी बन जाएं।

यानी सिर्फ लेखक अथवा कलाकार हो जाने मात्र से किसी व्यक्ति को काम से बचने की बहानेबाजी के लिए मूड का सहारा नहीं लेते रहना चाहिए, वरना हमें पता भी नहीं चलेगा कि कब हमारी यह आदत हमारी कमजोरी बन गई। अक्सर जब हम व्यवस्थित नहीं होते अथवा योजनाबद्घ ढंग से काम नहीं करते तो यह समझ नहीं आता कि काम कहां से शुरू करें और काम शुरू करना चाहते हुए भी हम काम शुरू नहीं कर पाते। मूड न बनने का यह एक बड़ा कारण है। यह एक अनुभूत सत्य है कि यदि हम एक नियत दिनचर्या के हिसाब से चलें और योजनाबद्घ ढंग से कार्य करें तो मूड की परेशानी स्वत: ही समाप्त हो जाती है। अत: मूड न बनने का बहाना मन में आते ही आत्म-निरीक्षण कीजिए और देखिए कि कहीं आप व्यवस्थित न होने अथवा समुचित कार्य-योजना न होने के कारण तो काम से नहीं बच रहे। इस आत्म-निरीक्षण से सत्य आपके सामने होगा और फिर मूड का इलाज करना आपके लिए आसान हो जाएगा, अन्यथा आप को पता भी नहीं चलेगा और आप मूड के नाम पर खुद ही स्वयं को धोखा देते रहेंगे। प्रयत्नपूर्वक कार्य आरंभ कर देना और उसमें लगे रहना मूड बनाने का सर्वोत्तम उपाय है। आप जब चाहें, जहां चाहें इसे आजमा सकते हैं। इस संबंध में यह कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि मूड न बन पाने का एक बड़ा कारण हमारा अव्यवस्थित होना है और दूसरा कारण काम की बारीकियों की जानकारी न होना होता है।

अव्यवस्थित होने का मतलब यह है कि हमारे आसपास इतने कागज, फाइलें या किताबें पड़ी हों कि काम करने के लिए जगह ही न बचे, या यह न समझ आये कि काम कहां से शुरू करें। अव्यवस्थित होने का दूसरा परिणाम यह है कि हम काम शुरू करने से पहले उस काम से संबंधित सारी आवश्यक चीजें अपने पास न रखें और हमें उन चीजों के लिए बार-बार उठना पड़े जिससे काम में अनावश्यक व्यवधान पड़ता हो, इससे भी या तो मूड उखड़ जाता है या मन भटक जाता है और काम में एकाग्रता नहीं बन पाती जिससे काम या तो गलत हो जाता है या फिर देर से संपन्न होता है। ऐसे ही काम शुरू करने से पहले काम की सांगोपांग जानकारी न होना, काम की बारीकियों को न समझना भी हमारा मूड बिगाडऩे के लिए काफी है। काम शुरू कर देने के बाद जब कठिनाइयां आयें और उनका हल न सूझे तो अक्सर हम बेजार हो जाते हैं और हमारे मन को काम से भागने का बहाना मिल जाता है। अत: काम शुरू करने से पहले काम की बारीकियों को समझना भी आवश्यक है ताकि काम बीच में न रुके या उसमें कठिनाइयां न आयें। कलाकारों और लेखकों में अक्सर यह धारणा पायी जाती है कि कला से जुड़े होने के कारण वे आम आदमी से ज्यादा संवेदनशील हैं। कई बार तो वे अन्य लोगों को अपने से कम काबिल और स्वयं को अपेक्षाकृत ज्यादा संस्कारित अथवा सुसंस्कृत भी मानने लग जाते हैं। एक बार यह भावना मन में आ जाए तो आदमी दूसरों से सीखना बंद कर देता है। हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि लोहार का हथौड़ा चलाना और नाई का बाल काटना भी एक कला है। चित्रकार, मूर्तिकार, रंगकर्मी और लेखक ही नहीं, बल्कि नक्शानवीस, बढ़ई, कुम्हार और लोहार भी कलाकार हैं। कलाकार बनने के लिए अक्षरज्ञान लाभदायक तो है, परमावश्यक नहीं। बढिय़ा से बढिय़ा कलाकार भी घटिया इनसान हो सकता है। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है। हम सब जानते हैं कि अच्छा इनसान बनने के लिए कलाकार होना कोई शर्त नहीं है। बल्कि इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जहां अच्छे माने जाने वाले लोगों ने कला को फालतू लोगों का शौक माना। इसी प्रकार अधिकारी के रूप में, नियोक्ता के रूप में, पूंजीपति अथवा राजनीतिज्ञ के रूप में लेखकों और पत्रकारों की बेईमानियों के उदाहरण भी कम नहीं हैं। अत: हमें स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि लेखन अथवा किसी भी प्रकार की कला विशेषज्ञता का एक अन्य क्षेत्र मात्र है। लेखक अथवा कलाकार होकर कोई व्यक्ति महामानव नहीं बन जाता, अत: इस बारे में हमें किसी भ्रम में नहीं रहना चाहिए।

हां, यह अवश्य हो सकता है कि कोई कलाकार, कोई अभिनेता, कोई गायक अपनी कला के कारण आम आदमी से ज्यादा मशहूर हो जाए, लेकिन यह किसी कलाकार को महामानव मान लेना भूल है। कलाकारों की आदतों का जिक्र इसलिए कि बहुत से लोग दूसरे सफल लोगों की नकल करने लगते हैं और उनमें जो नखरे सफलता के बाद आए, उन नखरों की नकल भी करने लगते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि किसी भी क्षेत्र में सफल व्यक्ति अपनी सफलता के कारण अपना मूल्य बढ़ा सकता है। यह स्वाभाविक ही है। बहुत ज्यादा सफलता मिल जाने पर वह व्यक्ति अपने क्षेत्र का ‘ब्रांड’ बन जाता है और उसके लिए अपनी शर्तें मनवाना आसान हो जाता है। अत: ऐसे किसी सफल व्यक्ति की आदतों की नकल आम आदमी के लिए घातक ही होगी। सफल व्यक्तियों को इतनी प्रशंसा मिलती है कि वे अक्सर स्वयं को अधिक ज्ञानी मानना शुरू कर देते हैं और उनमें दूसरों के प्रति अनादर अथवा उपेक्षा की एक हल्की सी भावना आ जाती है और वे दूसरों की अच्छाइयों, गुणों और विशेषताओं को भी नहीं पहचान पाते, उनकी कही बातों की गहराई नहीं समझ पाते तथा उनके किये कामों को सही परिप्रेक्ष्य में नहीं देख पाते जिससे वे उनसे कुछ भी सीखने से वंचित रह जाते हैं। हमें यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हर व्यक्ति की अपनी पृष्ठभूमि, अपना अतीत, अपने अनुभव तथा अपनी विचारधारा होती है। यह आवश्यक नहीं कि हमारे सारे विचार सही हों और यह भी आवश्यक नहीं कि सामने वाले व्यक्ति के सभी विचार गलत ही हों। गरीब, अनपढ़ और गंवार माने जाने वाले लोगों के अनुभव से भी ज्ञानियों ने बहुत कुछ सीखा है। उनके बीच रहे बिना हम उन्हें नहीं समझ सकते। किसी को मात्र इसलिए असभ्य अथवा अज्ञानी नहीं मान लेना चाहिए कि हमारे विचार उससे नहीं मिलते। बढिय़ा कपड़े, बड़ा घर, चमचमाती गाड़ी, सफल व्यवसाय अथवा नौकरी अक्सर हममें आत्म-विश्वास ही नहीं अहम भी पैदा कर देते हैं। सफल से सफल व्यक्ति भी कई बार हालात के सामने बेबस पाये जाते हैं और असफल माने जाने वाले व्यक्ति भी कठिन समय में धीरज न खोते देखे गये हैं। अत: किसी एक घटना या वार्तालाप के कारण ही किसी व्यक्ति के बारे में कोई गलत धारणा बना लेना शायद उसके साथ बहुत बड़ा अन्याय है। दूसरों की जीवन शैली में रमकर उनके बारे में कुछ जानना और सीखना जीवन का स्वर्णिम सूत्र है। अत: सफलता के क्रम में हम जब दूसरों से मिलते हैं, उन्हें समझते हैं, उनसे प्रभावित होते हैं तो हम उनसे सीखते भी हैं।

पीके खु्रराना

हैपीनेस गुरु, गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


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