समाज में बढ़ता असंतोष एवं घटता अपनत्व

By: Nov 16th, 2023 12:05 am

गांधी जी का मानना था कि सहिष्णुता का अर्थ सिर्फ एक-दूसरे से सहमत होना या अन्याय के प्रति उदासीन रहना नहीं है, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति में आवश्यक मानवता के प्रति सम्मान दिखाना है। लिहाजा हम मनुष्यों के लिए अनिवार्य हो जाता है कि हम अपनी बुरी आदतों को छोड़ें, अपनी जरूरतों को सीमित करें, परिश्रम से अपना भविष्य उज्ज्वल बनाएं। परिवार के साथ सामंजस्य बनाकर रखते हुए आपसी प्रेम, सौहार्द एवं अपनत्व को बढ़ावा दें, ताकि हम सुखी जीवन की ओर अग्रसर हों…

समाज में सहिष्णुता को बढ़ावा देने और जन-जन में जागरूकता फैलाने के लिए हर वर्ष 16 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस के रूप में मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस का उद्देश्य संसार में हिंसा की भावना और नकारात्मकता को खत्म कर अहिंसा को बढ़ावा देना है और अन्याय को रोकने तथा लोगों को सहनशीलता और सहिष्णुता के प्रति जागरूक करना है। महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के अवसर पर वर्ष 1995 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता वर्ष घोषित किया गया था। पिछले एक महीने में समाचारों एवं सोशल मीडिया में पारिवारिक असंतोष एवं व्यक्तिगत स्वार्थ लिप्सा से जुड़ी कुछ ऐसी खबरें देखने-पढऩे को मिलीं जिनमें बिखरते रिश्तों और घटते नैतिक मूल्यों की वजह से कहीं मां तो कहीं भाई-भाभी का दर्दनाक कत्ल अथवा अपनों से दुव्र्यवहार की खबरें किसी भी संवेदनशील मनुष्य को विचलित कर देने के लिए पर्याप्त हैं। कौशांबी गाजियाबाद में हत्या के एक सनसनीखेज मामले में एक बेटे ने अपनी मां की पीट-पीटकर इसलिए हत्या कर दी क्योंकि उसने शराब पीने के लिए पैसे नहीं दिए थे। वहीं हिमाचल प्रदेश के जिला चम्बा के भटियात क्षेत्र में एक व्यक्ति ने अपनी माता की हत्या कर दी। एक अन्य समाचार के अनुसार 06 नवंबर 2023 को उत्तरी त्रिपुरा जिले के धर्मनगर पुलिस स्टेशन के अंतर्गत राधापुर ग्राम पंचायत में मातृहत्या की एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है जहां एक बेटे ने अपनी मां की फावड़े से हत्या कर दी और उसका शव घर में छिपा दिया।इन सभी मामलों में शराब की लत ने पारिवारिक ताने-बाने को उजाड़ दिया। पारिवारिक असंतोष एवं संपत्ति विवाद के चलते जिला कांगड़ा के नगरोटा बगवां की ग्राम पंचायत जसौर में छोटे भाई ने अपने बड़े भाई और भाभी की गोली मारकर हत्या कर दी। आज परिवारों के भीतर अहम और ईगो के चलते बच्चों और बड़े बुजुर्गों के बीच असंतोष एवं दूरियां इतनी बढ़ गई हैं कि युवा अक्सर घर से दूर रहना पसंद कर रहे हैं। कहीं कहीं चिट्टे एवं नशे की जरूरतों अथवा शीघ्र रुपया जुटाने की जुगत में लोग चोरियों की घटनाओं को अंजाम देने की फिराक में निर्दोष लोगों की हत्याएं करने से भी नहीं झिझक रहे हैं। लेकिन कई बार हमें पारिवारिक रिश्तों को मजबूती प्रदान करते कुछ बेहतरीन उदाहरण भी देखने को मिलते हैं, जैसे राखी वाले दिन भी अपनी ड्यटी निभाते बस ड्राइवर और कंडक्टरों को बस स्टैंड या रास्ते में राखी बांधती बहनों की वीडियो एवं तस्वीरें मन को सुकून और आनंद प्रदान करती हैं और रिश्तों में स्नेह-अपनत्व की झलक दिखलाई देती है जो भारतीय संस्कृति का उज्ज्वल पक्ष है। अतएव पथभ्रष्ट मनुष्यों के लिए ऐसे व्यक्तियों से सीख लेकर परिवार एवं सामाजिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए स्वयं को बदलना होगा। वर्तमान मानव जीवन भौतिकतावाद पर अवलंबित है। मनुष्य जब अपने आसपास और बाजारवाद से प्रभावित होता है तो अन्य लोगों से अपनी प्रगति की तुलना करता है।

कहीं कहीं पारिवारिक, शिक्षा एवं आर्थिक कारणों से वह अपने को दूसरों के मुकाबले पिछड़ा हुआ पाता है और यही कमियां उसकी प्रगति में अवरोधक का कार्य करती हैं जिससे उसके मनोविकारों में बदलाव आते हैं जो उसे तनाव, अवसाद, चिंता और व्यग्रता की ओर ले जाते हैं जिससे उसका पतन होता है और वह अनैतिक निंदनीय कार्य कर पथभ्रष्ट होकर सामाजिक तिरस्कार का पात्र बनकर रह जाता है जिसकी परिणति अंतत: नशीले एवं मादक पदार्थों के सेवन से शुरू होकर मारपीट और हत्या करने जैसे कार्यों से समाप्त होती है। ऐसे व्यक्ति न केवल स्वयं अपने परिवार को आघात पहुंचाते हैं अपितु समाज को भी पीडि़त करते हैं। इससे समाज का माहौल खराब होता है एवं युवा पीढ़ी पर गलत प्रभाव पड़ता है। आज इन्हीं परिस्थितियों को बदलने के लिए समाज के ही लोगों को आगे आने की आवश्यकता है। मानव जीवन में इस सत्य को सभी को स्वीकार करना चाहिए कि हम कहां पैदा होंगे और कब मरेंगे, यह हमारे वश में नहीं है, लेकिन श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार हमें कर्म करने की शिक्षा के संदेश को अपने जीवन में अपनाने की आवश्यकता है। जीवन में अगर हम दूसरों की सफलता को स्वीकार नहीं करते हैं तो वो ईष्र्या बन जाती है और अगर स्वीकार कर लें तो वही प्रेरणा बन जाती है। हमारा आज का समाज ईष्र्या, द्वेष, घृणा, क्रोध, अहंकार रूपी अग्नि से झुलस रहा है। आज आवश्यकता है कि अध्यात्म शक्ति के द्वारा हम स्वयं के अंदर दहक रही इस ज्वाला को शांति, प्रेम, धीरज, करुणा से बुझाएं और मानवता का कल्याण करें।

ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव के अनुसार जब आप अपनी पसंद और नापसंद से ऊपर उठ जाते हैं तो अनजाने में आप चेतन हो जाते हैं, आध्यात्मिक हो जाते हैं। गांधी जी का मानना था कि सहिष्णुता का अर्थ सिर्फ एक-दूसरे से सहमत होना या अन्याय के प्रति उदासीन रहना नहीं है, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति में आवश्यक मानवता के प्रति सम्मान दिखाना है। लिहाजा हम मनुष्यों के लिए अनिवार्य हो जाता है कि हम अपनी बुरी आदतों को छोड़ें, अपनी जरूरतों को सीमित करें, परिश्रम से अपना भविष्य उज्ज्वल बनाएं। परिवार के साथ सामंजस्य बनाकर रखते हुए आपसी प्रेम, सौहार्द एवं अपनत्व को बढ़ावा दें, ताकि हम सुखी जीवन की ओर अग्रसर रहकर तनाव एवं कुंठित जीवन जीने की बजाय प्रेम, अपनत्व और खुशहाली से परिपूर्ण जीवन जिएं और अपने समाज एवं राष्ट्र को गरिमा एवं आपसी आदर जैसे गुणों से सुसज्जित एवं परिपूर्ण लोगों का श्रेष्ठ समाज बनाएं। हमें ऐसा संकल्प लेना चाहिए।

अनुज आचार्य

स्वतंत्र लेखक


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