प्रदेश में नशाखोरी का बढ़ता प्रचलन

By: Nov 28th, 2023 12:05 am

यदि नशे की रोकथाम के उपायों की बात की जाए तो कई कानून बनाए गए हैं जिन्हें सख्ती से लागू करना होगा…

नशा एक अभिशाप है। एक ऐसी बुराई है जिसमें इनसान का बहुमूल्य जीवन समय से पहले ही समाप्त हो जाता है। यह सब ज्ञात होने के बावजूद हिमाचल प्रदेश में नशे का प्रचलन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। नशे का सेवन युवा वर्ग के द्वारा सर्वाधिक मात्रा में किया जा रहा है। नशे के पदार्थों में शराब, गांजा, भांग, अफीम, जर्दा, गुटखा, तंबाकू और धूम्रपान शामिल है। बीड़ी-सिगरेट, हुक्का व चिलम का भी प्रयोग हो रहा है। इन जहरीले पदार्थों के सेवन से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हानि तो पहुंचती ही है, साथ ही सामाजिक वातावरण भी प्रदूषित होता है। हिमाचल प्रदेश में एक सर्वे के मुताबिक प्रदेश की कुल जनसंख्या का 0.24 फीसदी हिस्सा नशे की चपेट में है। सर्वे के मुताबिक प्रदेश के लगभग दो लाख युवा ड्रग के आदी हो चुके हैं। इनमें लड़कियां भी शामिल हैं जो नशा करती हैं। प्रदेश पुलिस के आंकड़ों के अनुसार साल 2017 से 2022 तक 10848 पुरुषों को और करीब 450 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया। कुछ वर्षों पहले नशे से संबंधित केवल पुरुष वर्ग में सुधार की आवश्यकता थी, लेकिन आज आत्मघाती कार्यों में महिलाएं भी शामिल हो गई हैं। सुधार की बात तो दूर, युवा वर्ग निरंतर नशे की लत में फंसता जा रहा है। आज हिमाचल प्रदेश भारत में आंकड़ों के हिसाब से देशभर में नशाखोरी के मामलों में दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। देशभर में नशे को लेकर पड़ोसी राज्य पंजाब को नशे के लिए उड़ता पंजाब कहा जाता है। लेकिन लगातार बढ़ते नशे के मामलों को देखते हुए हिमाचल को उड़ता हिमाचल कहना गलत नहीं होगा। हमारे युवा करियर की ओर बिल्कुल भी ध्यान न देते हुए शिक्षा संबंधी दबाव व तनाव से छुटकारा पाने के लिए नशे की लत को अपना रहे हैं।

भारत सरकार के नशे की स्थिति पर जारी आंकड़े बताते हैं कि हमारे 10 फीसदी लोग अवसाद, न्यूरोसिस और मनोविकृति सहित कई विकारों से पीडि़त हैं। इसके साथ ही प्रत्येक 1000 में 15 व्यक्ति नशीली दवाओं का सेवन करते हैं। प्रत्येक 1000 में से 25 व्यक्ति क्रॉनिक यानी स्थायी रूप से शराब सेवन के शिकार हैं। नशा हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसके दुष्प्रभावों के कारण शरीर के अंदर अनेक बीमारियां जन्म ले लेती हंै और कुछ समय बाद मौत हो जाती है। नशे के लगातार सेवन से व्यक्ति में सोचने-समझने की क्षमता खत्म हो जाती है। तंबाकू, शराब, सिगरेट का अधिक मात्रा में सेवन करने से हमारे फेफड़े व गुर्दे आदि पर प्रभाव पड़ता है और एक समय ऐसा आता है कि ये सभी अंग काम करना बंद कर देते हैं। धूम्रपान से मुंह का कैंसर, सांस की तकलीफ, फेफड़े का खराब हो जाना आदि और भी अनेक बीमारियां आदमी के शरीर में घर कर जाती हैं। नशा आपके हंसते-खेलते जीवन को तहस-नहस करके रख देता है। नशा करने के बाद इनसान अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है जिसके कारण वह अपने आप पर काबू नहीं कर पाता, जिसके कारण घर पर क्लेश, हर जगह झगड़ा करना, अपशब्द बोलना, गाली-गलौज करना जैसे कुकर्म करता रहता है। जो आदमी घर में नशा करके आता है वो अपना जीवन तो खत्म करता ही है, साथ ही साथ अपने बच्चों को कई प्रकार के मानसिक घाव देता है। इसके अलावा नशे की अवस्था में वाहन चला कर नशेड़ी लोग अपनी और सामने वाले की जान को भी खतरे में डालते हैं। सरकार को ऐसे लोगों को और भी ज्यादा सख्त कानून बना कर दंडित करना चाहिए। हिमाचल में अभी कुछ समय से बहुत अधिक मात्रा में नशे के मामले आए हैं, जो कि समाज के हर समझदार आदमी को सोचने पर मजबूर कर रहे हैं। किसी भी देश का भविष्य उसके युवा होते हैं, देश के युवा ही उस देश की नियति निर्धारित करते हैं। भारतीय परम्परा में स्कूल और कॉलेज शिक्षा के मंदिर माने जाते हैं। भारतीय परम्परा में व्यक्ति के बौद्धिक विकास के साथ-साथ नैतिक विकास के महत्व पर भी जोर दिया गया है।

लेकिन कुछ समय से हम यह देखते हैं कि शिष्यों में नैतिक मूल्यों का क्षय होता जा रहा है। विद्यार्थी अपनी सामाजिक जिम्मेदारियां भूलते जा रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण हमें एनआईटी हमीरपुर में देखने को मिला जहां कुछ स्टूडेंट्स नशे के कारोबार में लिप्त पाए गए। उनके माता-पिता उन्हें अपने बुढ़ापे का सहारा समझते हंै। ऐसे ही अखबार पलटते समय असंख्य खबरें पढऩे को मिलती हैं जहां छात्र नशे में लिप्त पाए जाते हैं। कई बार रास्ते में स्कूल-कॉलेज जाते बच्चों को हवा में धुएं के छल्ले बनाते देखा जाता है। भारत में गुरु की महिमा और गुरु-शिष्य परम्परा का एक लम्बा इतिहास रहा है। भारतीय संस्कृति में शिक्षक को गुरु का दर्जा दिया गया है। हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत में राम-कृष्ण, बुद्ध, कबीर, शंकराचार्य, नानक हमारे पूजनीय गुरु रहे हैं। गुरु की शिक्षा ही मनुष्य को भू-भार से मुक्त करती है। भारतीय परम्परा में गुरु मार्गदर्शक भी है, गुरु उपदेशक भी है। गुरु का जीवन किस्मत से मिलता है। एक गुरु अपने शिष्यों को धर्म और नैतिक मूल्यों पर चलना सिखाता है। लेकिन वर्तमान में हम देखते हैं कि गुरु, जिसको भारतीय समाज में भगवान का दर्जा दिया गया है, उसका पतन हो चुका है। आए दिन खबरें आती हैं कि शिक्षक शराब पीते पकड़े गए। अभी हाल में ही सोलन जिले के एक सरकारी स्कूल में कुछ टीचर और प्रिंसिपल शराब पीते पकड़े गए। पिछले महीने जिला चंबा के एक सरकारी स्कूल का अध्यापक शराब के नशे में धुत्त स्कूल के बाहर पड़ा हुआ था। राह चलते लोगों ने उसकी वीडियो बना डाली और उससे सवाल-जवाब भी किए।

यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया। इस तरह के अध्यापक कभी भी अपने शिष्यों को सही मूल्य नहीं सिखा सकते। सरकार को ऐसे शिक्षकों, जो शिक्षक के नाम पर कलंक हों, को कड़ी सजा देनी चाहिए। यदि नशे की रोकथाम के उपायों की बात की जाए तो राष्ट्रीय सरकार व प्रदेश सरकार ने कई कानून बनाए हैं जिन्हें सख्ती से लागू किया जाना अति आवश्यक है। हाल ही में सरकार ने नारकोटिक एंड साइकॉट्रॉपिक सब्सटेंस (एनपीएस) के अवैध व्यापार रोकथाम अधिनियम 1988 के लिए एसओपी मानक संचालन प्रक्रिया जारी की है। हिमाचल पुलिस द्वारा नशे के विरुद्ध चलाए जाने वाले अभियान, जैसे प्रोजेक्ट रुस्तम, मोबाइल एप, स्पेशल टास्क फोर्स गठित कर नशे के खतरों से युवाओं को बचाया जा सकता है। इस दिशा में केंद्रीय सरकार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उल्लेखनीय प्रयास कर रही है। हिमाचल में बढ़ती नशाखोरी को तुरंत रोकना होगा।

रमेश धवाला

पूर्व विधायक


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