आरक्षण की आग से खेलते सियासी दल

By: Nov 18th, 2023 12:05 am

आरक्षण को लेकर जब तक राष्ट्रीय नीति नहीं बनेगी, राजनीतिक दल अपने फायदे के मुताबिक इसे भुनाते रहेंगे…

आरक्षण की आग से अभी तक रह-रह कर सुलग रहे मणिपुर से देश के राजनीतिक दलों ने कोई सबक नहीं सीखा। राजनीतिक दल आरक्षण को वोट बैंक का हथियार बनाए हुए हैं। सत्ता पाने की होड़ इस कदर मची हुई है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की परवाह भी नहीं है। राजनीतिक दलों का यदि जोर चलता तो शायद सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने में पीछे नहीं रहते। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर आरक्षण का जिन्न फिर से नजर आ रहा है। इतना ही नहीं, तमाम तरह के भ्रष्टाचार और लालफीताशाही से जूझते हुए अपने बलबूते चलने वाले निजी क्षेत्र राजनीतिक दलों की महत्वाकांक्षाओं की बलिवेदी पर चढ़ रहे हैं। निजी क्षेत्रों में आरक्षण की मांग जोर पकड़ती जा रही है। देश की एकता-अखंडता को नुकसान पहुंचाने की आरक्षण की राजनीति में कोई भी दल पीछे नहीं है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी अंदरूनी तौर पर आरक्षण विरोधी रही है, किन्तु राजनीतिक दलों से मुकाबला करने के लिए उसे भी इसे चुनावी हथियार की तरह उपयोग करना पड़ा है। तेलंगाना में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने निजी शैक्षणिक संस्थानों और निजी कंपनियों की नौकरियों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का वादा किया। पार्टी ने यह भी वादा किया है कि एससी के लिए आरक्षण बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया जाएगा।

कांग्रेस के आरक्षण को वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करने से भाजपा को भी यही रणनीति अपनानी पड़ी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद में एक जनसभा में कहा कि केंद्र जल्द ही एक समिति बनाएगा जो अनुसूचित जाति के वर्गीकरण की मडिगा (एक एससी समुदाय) की मांग के संबंध में उसे सशक्त बनाने के लिए सभी संभावित तरीके अपनाएगी। मोदी ने यह बात मडिगा आरक्षण पोराटा समिति (एमआरपीएस) द्वारा आयोजित एक रैली में कही, जो मडिगा समुदाय का एक संगठन है। यह समुदाय तेलुगू राज्यों तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में अनुसूचित जाति के सबसे बड़े घटकों में से एक है। एमआरपीएस पिछले तीन दशकों से इस आधार पर एससी के वर्गीकरण के लिए लड़ रहा है कि आरक्षण और अन्य का लाभ उन तक नहीं पहुंचा है। पीएम मोदी ने कहा कि भाजपा पिछले तीन दशकों से हर संघर्ष में उनके साथ खड़ी है। उन्होंने कहा कि हम इस अन्याय को जल्द से जल्द खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारा वादा है कि हम जल्द ही एक समिति का गठन करेंगे जो आपको सशक्त बनाने के लिए हरसंभव तरीके अपनाएगी। आप और हम यह भी जानते हैं कि एक बड़ी कानूनी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। हम आपके संघर्ष को सही मानते हैं। उन्होंने कहा कि हम न्याय सुनिश्चित करेंगे। यह भारत सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है कि आपको अदालत में भी न्याय मिले। भारत सरकार पूरी ताकत के साथ आपके सहयोगी के रूप में न्याय के पक्ष में खड़ी रहेगी। आरक्षण की राजनीति करने से हुई हिंसा और तोडफ़ोड़ से राजनीतिक दलों का कोई सरोकार नहीं रह गया है। इसका प्रमाण महाराष्ट्र का मराठा आरक्षण आंदोलन है। मराठा आरक्षण समर्थक प्रदर्शनकारियों ने महाराष्ट्र के विधायक प्रकाश सोलंके के घर में तोडफ़ोड़ की और आग लगा दी। गुस्साई भीड़ ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के एक कार्यालय को भी निशाना बनाया, जिससे अधिकारियों को नए सिरे से हुई हिंसा के बीच बीड और मराठवाड़ा क्षेत्र के कुछ हिस्सों में सुरक्षा कड़ी करनी पड़ी। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता में कहा कि महाराष्ट्र सरकार मराठा आरक्षण के पक्ष में है। शिंदे ने कहा कि राज्य में अन्य समुदायों के मौजूदा कोटा में छेड़छाड़ किए बिना मराठा समुदाय को आरक्षण दिया जाना चाहिए। आश्चर्य की बात यह है कि किसी भी दल में इतना साहस नहीं हो सका कि आरक्षण को नाजायज करार दे सके।

मराठा आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट पूर्व में खारिज कर चुका है। समुदाय मराठों के लिए कुनबी जाति प्रमाण पत्र की मांग कर रहा है। कुनबियों को महाराष्ट्र में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) श्रेणी में रखा गया है। जून 2019 में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने मराठा कोटा की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। कोर्ट ने इसे घटाकर शिक्षा में 12 फीसदी और सरकारी नौकरियों में 13 फीसदी कर दिया। दो साल बाद, सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत कोटा सीमा का उल्लंघन करने के लिए मराठा समुदाय को आरक्षण प्रदान करने वाले महाराष्ट्र कानून के प्रावधानों को रद्द कर दिया जिसने मराठा समुदाय को आरक्षण दिया था। 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 फीसदी कोटा बरकरार रखा। इस साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की समीक्षा याचिका खारिज कर दी थी। आरक्षण के जरिए वोट बैंक बटोरने की राजनीति में कोई दल पीछे नहीं है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना के बाद एक और राजनीतिक दांव चल दिया। इस बार उन्होंने आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने का प्रस्ताव पेश किया। सीएम नीतीश कुमार ने कैबिनेट की विशेष बैठक बुलाकर आरक्षण बढ़ाए जाने के प्रस्ताव पर मुहर लगाने के बाद विधानसभा में आरक्षण बढ़ाए जाने के बिल पर प्रस्ताव पारित किया करवा दिया। जिसके तहत 50 फीसदी के बैरियर को बढ़ाकर 65 फीसदी, आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 फीसदी आरक्षण और कुल 75 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव किया गया है। अब देखना होगा कि आखिर कैसे इसे अंजाम दिया जाएगा।

2024 लोकसभा चुनाव से पहले ये एक बड़ा मुद्दा बनता दिख रहा है। नीतीश सरकार को पता है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के कारण यह प्रस्ताव कोरा कागजी पुलिन्दा और वोट बैंक बढ़ाने का तरीका है। नीतीश कुमार अब बढ़े हुए आरक्षण की गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल कर संविधान संशोधन की मांग कर रहे हैं। यह बात दीगर है कि केंद्र की भाजपा सरकार नीतीश को वोटों का फायदा नहीं लेने देगी और इस प्रस्ताव पर मोहर नहीं लगाएगी। आरक्षण की राजनीति ने देश का कितना बड़ा नुकसान किया है, इसका उदाहरण मणिपुर की हिंसा है। पिछले करीब छह महीने से मणिपुर रह-रह कर सुलग रहा है। मैतेई जनजाति संघ ने इस मांग को लेकर एक याचिका मणिपुर हाई कोर्ट में दायर की थी। याचिका में कहा गया कि 1949 में भारत में विलय से पहले मैतेई समुदाय को एक जनजाति के रूप में मान्यता मिली हुई थी। लेकिन विलय के बाद ये खत्म हो गई। मैतेई की जमीन, परंपरा, संस्कृति और भाषा को बचाने की जरूरत को देखते हुए इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है। इसीलिए मणिपुर सरकार, केंद्र सरकार से मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिलाने की सिफारिश करे। 14 अप्रैल 2023 को मणिपुर हाई कोर्ट का फैसला आया। कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश प्राप्ति के 4 हफ्तों के भीतर सिफारिश करने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट के इस फैसले ने मणिपुर का माहौल गर्म कर दिया। राज्य के आदिवासी समूह जिसमें खासतौर पर नागा और कूकी जनजाति समेत 34 जनजाति के लोग इसके विरोध में उतर गए। मणिपुर में 3 मई की शुरुआत से ही जातीय हिंसा हो रही है, जिसमें 150 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। अभी तक मणिपुर के हालात सामान्य नहीं हो सके हैं। आरक्षण के मुद्दे को लेकर लगी हिंसा की आग की लपटों से मणिपुर अभी भी सुलग रहा है। गौरतलब है कि हरियाणा में जाटों के और राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन में राजनीतिक दलों ने जमकर रोटियां सेकी थी। इन आंदोलनों में दर्जनों लोगों की मौत हुई। निजी और सरकारी सम्पत्ति का भारी नुकसान हुआ था। आश्चर्य की बात यह है कि इन तमाम उदाहरणों के बावजूद राजनीतिक दलों ने कोई सबक नहीं सीखा। राजनीतिक दल अभी भी आरक्षण की आग से खेलने से बाज नहीं आ रहे हैं। राजनीतिक दलों का एकमात्र उद्देश्य सत्ता प्राप्ति रह गया है। आरक्षण को लेकर देश में सर्वसम्मति से जब तक कोई राष्ट्रीय नीति नहीं बनेगी, तब तक सभी राजनीतिक दल अपने फायदे के मुताबिक इसे भुनाते रहेंगे और मजा लूटते रहेंगे।

योगेंद्र योगी

स्वतंत्र लेखक


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App