प्रॉक्सी वार युद्ध का नया स्वरूप
सरहद के उस पार पाक सहित दुनिया के कई मुल्क भारत के खिलाफ आतंकियों की खुली हिमायत कर रहे हैं। इसके बावजूद यदि देश महफूज है तो इसके पीछे शहादत के गुमनाम ज्योति स्तम्भ देश के हजारों सैनिकों का बलिदान है। रणबांकुरों का इतिहास शिक्षा पाठ्यक्रम का हिस्सा बनना चाहिए…
‘आश्चर्य, डर, तोडफ़ोड़, हत्या के जरिए दुश्मन को अंदर से भयभीत कर दो, यही भविष्य का युद्ध है’। यह तहरीर द्वितीय विश्व युद्ध को अंजाम देकर बर्तानियां हुकूमत का सूर्यास्त करने में अहम किरदार रहे जर्मन के कुख्यात तानाशाह ‘एडोल्फ हिटलर’ की थी। नौ दशक पूर्व हिटलर के दिमाग में आया यह विचार मौजूदा दौर में सही साबित हो रहा है। बदलते वक्त के साथ युद्धों का स्वरूप भी बदल चुका है। वर्तमान में दुनिया के कई मुल्क छद्म युद्ध को अपनी रणनीति का हिस्सा बना चुके हैं। छद्म युद्ध यानी अपनी सैन्य ताकत का प्रत्यक्ष उपयोग न करते हुए दुश्मन के खिलाफ किसी विद्रोही बल या चरमपंथी व आतंकी संगठनों के द्वारा अप्रत्यक्ष हमले को अंजाम देना। किसी भी देश को अस्थिर करने के लिए व बिना लड़े उसी के घर में तबाही मचाने के लिए आतंक सबसे कारगर हथियार साबित होता है। आतंक विश्व के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है, फिर भी कई देश आतंकी संगठनों को धन, गोला-बारूद व हथियार मुहैया करवा कर प्रॉक्सी वार को बढ़ावा देकर अपना वर्चस्व कायम करने में लगे हैं। पारंपरिक युद्धों में करोड़ों रुपए के खर्च के अलावा जान-माल का भारी नुकसान तथा हजारों की तादाद में सैनिकों की हलाकत के बाद भी फतह सुनिश्चित नहीं होती।
खुद को दुनिया का सुपर पावर मानने वाले अमेरिका की सेना का वियतनाम, इराक व अफगानिस्तान के युद्धों में जो हश्र हुआ है वो किसी से छिपा नहीं है। आतंक किसी भी देश के खिलाफ प्रत्यक्ष सैन्य संघर्ष से कहीं अधिक शदीद नुकसान पहुंचाने की सलाहियत रखता है। सात अक्तूबर 2023 को इजरायल पर हमास द्वारा किया गया आतंकी हमला छद्म युद्ध का ताजातरीन उदाहरण है। भारत लगभग चार दशकों से पाकिस्तान प्रायोजित छद्म युद्ध की मार झेल रहा है। गत 22 नवंबर 2023 को कश्मीर के राजौरी इलाके में आतंकियों से एनकाउंटर के दौरान भारतीय सेना के दो अधिकारी व पैरा कमांडो के तीन जवान शहीद हो गए। वजूद में आने के बाद पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ चार युद्धों को अंजाम दिया, मगर भारतीय सेना के पलटवार से पाक आलमी सतह पर बुरी तरह जलील हुआ था। सन 1971 की जंग में अपने दामन पर लगे शिकस्त के बदनुमां दाग मिटाने के लिए पाक जरनैलों ने अब्दुल्ला सईद की कयादत में एबटाबाद स्थित पाक सैन्य अकादमी ‘काकुल’ में प्रशिक्षण ले रहे युवा अफसरों को भारत से इंतकाम लेने की शपथ दिलाई थी। मगर पाक सैन्य रणनीतिकारों ने भारतीय सेना के आक्रामक तेवरों को पूरी तफसील से भांप लिया कि पारंपरिक सैन्य क्षमता के लिहाज से पाक फौज भारत के सामने ज्यादा देर तक नहीं टिक सकती। अत: पाक हुक्मरानों ने भारत को दहलाने के लिए अपने मुल्क को आतंक की पनाहगाह बनाकर दहशतगर्दी को अपनी राष्ट्रीय नीति का अहम हिस्सा बना लिया।
भारत द्वारा तीन युद्धों में शिकस्त की जलालत झेल चुके पाक जरनैल जिया उल हक ने भारत में आतंक फैलाने में सबसे बड़ा किरदार निभाया। पांच जुलाई 1977 को तख्तापलट को अंजाम देकर पाकिस्तान के सियासी निजाम को कुचल कर जिया उल हक ने इक्तदार संभाल लिया तथा भारत के खिलाफ प्रॉक्सी वार के मंसूबे को आपरेशन ‘टोपाक’ नाम दिया था। आपरेशन टोपाक के तहत आतंकी गतिविधियों का मरकज जम्मू-कश्मीर बना। आतंकियों को प्रशिक्षण व हथियार मुहैया कराने में पाक खूफिया एजेंसी ‘आईएसआई’ ने अपना रोल निभाया। अपनी जहरीली तकरीरों से आवाम के मजहबी जज्बात भडक़ा कर भारत के खिलाफ बगावत का माहौल तैयार करने में तथा मजहबी कट्टरता का पाठ पढ़ाकर युवाओं को जन्नत का ख्वाब दिखाकर आतंक की राह पर लाने में मजहब के रहनुमाओं ने भी पूरा योगदान दिया। नतीजतन सन 1990 के दौर में कश्मीर घाटी में आतंक इस कदर फैल गया कि सूफीवाद व ऋषिवाद की तहजीब के लिए विख्यात तथा दुनिया में जन्नत कहा जाने वाला समूचा कश्मीर आतंक की आग में जलने लगा। विश्व में पर्यटन के लिए मशहूर कश्मीर में अमन की शमां बुझ गई तथा बम-बारूद व कलाश्निकोव राइफलों का अंतहीन शोर शुरू हुआ जो बदस्तूर जारी है। हिमाचल प्रदेश देश-दुनिया में सबसे शांत राज्यों में शुमार करता है। लेकिन देश के पूर्वोत्तर राज्यों, पंजाब व जम्मू-कश्मीर में आतंक विरोधी अभियानों के मोर्चे पर वीरभूमि के सैकड़ों सपूत अपना सर्वस्व न्योछावर कर चुके हैं। सन 1990 के दौर में कश्मीर घाटी में घुसपैठ कर चुके पाक प्रशिक्षित आतंकियों के सफाए के लिए भारतीय सेना ने आपरेशन ‘रक्षक’ शुरू किया था।
हिमाचल के कैप्टन ‘संदीप शांकला’ सेना की ‘अठारहवीं डोगरा’ बटालियन में कुपवाड़ा के इलाके में नियंत्रण रेखा के पास तैनात थे। आठ अगस्त 1991 के दिन एक आतंक विरोधी मिशन में मुठभेड़ में कई आतंकियों को हलाक करके भीषण गोलीबारी में कै. संदीप शांकला वीरगति को प्राप्त हो गए थे। कश्मीर घाटी के उसी क्षेत्र में हिमाचल के एक अन्य शूरवीर ‘मेजर सुधीर वालिया’ ‘नौ पैरा’ को आतंक विरोधी आपरेशन में वीरतापूर्वक कार्य के लिए सेना ने वीरता पदक ‘सेना मेडल’ से दो बार नवाजा था। मगर कश्मीर के जंगलों में आतंकी ठिकाने पर हमला करके नौ आतंकियों को जहन्नुम की परवाज पर भेज कर 29 अगस्त 1999 को मेजर सुधीर कुमार वालिया भी शहीद हो गए थे। आतंक विरोधी अभियानों में अदम्य साहस का परिचय देकर आतंकियों का सफाया करके शहीद हुए कै. संदीप शांकला व मे. सुधीर कुमार वालिया को भारत सरकार ने शांतिकाल के सर्वोच्च पदक ‘अशोक चक्र’ (मरणोपरांत) से अलंकृत किया था। बहरहाल सरहद के उस पार पाकिस्तान सहित दुनिया के कई मुल्क भारत के खिलाफ आतंकियों की खुली हिमायत कर रहे हैं। मगर इसके बावजूद यदि देश महफूज है तो इसके पीछे शहादत के गुमनाम ज्योति स्तम्भ देश के हजारों सैनिकों का समर्पण व बलिदान है। रणबांकुरों का इतिहास शिक्षा पाठ्यक्रम का हिस्सा बनना चाहिए ताकि हमारी सैन्य संस्कृति की परंपराएं व सेना का जज्बा युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन सके।
प्रताप सिंह पटियाल
स्वतंत्र लेखक
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