महंगी है दाल-रोटी

By: Nov 16th, 2023 12:05 am

हाल ही में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, मूल मुद्रास्फीति, थोक मूल्य सूचकांक की दरें घोषित की गई हैं। औसतन मुद्रास्फीति की दर लक्षित दर से कम है, लिहाजा भारत सरकार गाल बजा सकती है कि उसने महंगाई को नियंत्रित रखा है, लेकिन यथार्थ कुछ और ही है। सामान्य और आसान शब्दों में कहें, तो आम आदमी के लिए ‘दाल-रोटी की मुद्रास्फीति’ अब भी ज्यादा है। महंगाई अब भी काफी ज्यादा है। बेशक अर्थशास्त्र की भाषा में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक स्पष्ट करता है कि अक्तूबर में सालाना खुदरा मुद्रास्फीति 4.87 फीसदी है। यह जुलाई में 7.44 फीसदी थी, जिससे लगातार कम होती गई है। मूल मुद्रास्फीति (कोर इंफ्लेशन) 4.28 फीसदी बताई गई है, लेकिन उसमें खाद्य और ईंधन की बढ़ती कीमतें शामिल नहीं हैं। बताया गया है कि यह दर 43 माह में सबसे कम रही है। थोक मूल्य सूचकांक शून्य से 0.52 फीसदी नीचे रहा है। दावा किया जा रहा है कि अक्तूबर में खाद्य पदार्थों की महंगाई घटकर 2.53 फीसदी पर आ गई। सितंबर माह में यह महंगाई 3.35 फीसदी थी। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति अप्रैल से लगातार शून्य से नीचे रही है, उस लिहाज से महंगाई के मोर्चे पर राहत की खबर लगातार मिल रही है, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास इसे ‘अति संवेदनशील स्थिति’ मानते हैं। दरअसल खाद्य वस्तुओं की कीमतें ही बुनियादी समस्या रही हैं और वे ही महंगाई को परिभाषित करती हैं। 2024 के आम चुनाव से पहले खाद्य मुद्रास्फीति से जुड़े कुछ कठिन और चिपचिपे अवयव मोदी सरकार और आरबीआई को चिंतित कर रहे हैं। दरअसल दाल-रोटी अर्थात अनाज और दालों की खुदरा मुद्रास्फीति करीब 10.65 फीसदी है।

बीते 14 महीनों, सितंबर 2022, से ही यह दहाई में रही है। दालें भी बीते पांच महीनों से दहाई की दर में महंगी रही हैं। इनकी मौजूदा मुद्रास्फीति 18.79 फीसदी है, जो अगस्त, 2016 से उच्चतम रही है। इसका मानसून से प्रत्यक्ष संबंध हो सकता है। खाद्य मुद्रास्फीति का 6.61 फीसदी पर आकलन करें, तो सामान्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से अधिक है। खाद्य के साथ-साथ सब्जियां भी हैं, जिनकी मौसमी आपूर्ति की कमी बार-बार आम नागरिक को परेशान करती है। नतीजतन जुलाई-अगस्त में टमाटर 200 रुपए किलो तक बिका और आजकल प्याज 70-80 रुपए किलो बेचा जा रहा है। यदि हम रोजाना की अपनी थाली पर गौर करें, तो अनाज, दालें, सब्जियां आदि महंगी होती जा रही हैं। यह दीगर व्यवस्था है कि एक मौसम में टमाटर, प्याज, आलू आदि की फसलें किसान को सडक़ों पर फेंकनी पड़ती हैं अथवा उन्हें नष्ट करना पड़ता है, क्योंकि उनके अपेक्षित दाम नहीं मिलते। एक मौसम में टमाटर और प्याज महंगे बेचे जाते हैं। सवाल है कि ये कीमतें कौन तय करता है? इसका अर्थशास्त्र न तो आम उपभोक्ता जानता है और न ही सरकार खुलासा करती है, क्योंकि कोई निश्चित नियामक नहीं है। साफ है कि सब्जी मंडियां ‘अनियंत्रित’ निकाय हैं, जिनमें जमाखोरी और कालाबाजारी भी निहित हैं। अनाज के संदर्भ में कृषि मंत्रालय का अनुमान है कि खरीफ के दौरान अनाज का उत्पादन करीब 66 लाख टन होगा, जो बीते साल की तुलना में कम है। धान का उत्पादन करीब 11 करोड़ टन से घटकर 10 करोड़ टन से कुछ ज्यादा हो सकता है। खरीफ के मौसम की दालों का उत्पादन 2015 से सबसे कम रहा है। जाहिर है अनाज और दालों की मुद्रास्फीति ज्यादा ही होगी। बहरहाल मुफ्त राशन जारी रहेगा, अत: गेहूं-चावल भंडारण को दुरुस्त किया जा रहा है।


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