पुलिस तंत्र में व्यापक सुधार की जरूरत

By: Nov 23rd, 2023 12:05 am

पुलिस विभाग में फील्ड गतिविधियों के लिए पेट्रोल और डीजल वाहनों और स्टाफ के लिए ई-वाहन उपलब्ध करवाए जाने के अतिरिक्त आबादी, क्षेत्रफल, अपराध दर, पर्यटकों की संख्या सहित अन्य कारकों को ध्यान में रखते हुए प्रदेश के पुलिस थानों की पुन:संरचना पर जल्दी निर्णय लिए जाने चाहिए ताकि वहां स्थानीय जरूरतों और इन कारकों के आधार पर सुविधाएं प्रदान की जा सकें…

भारत के सभी राज्यों के अपने-अपने पुलिस बल हैं जो कानून व्यवस्था एवं लोक व्यवस्था को बनाए रखने और अपराध नियंत्रण तथा जनता से प्राप्त शिकायतों का निस्तारण करने के अलावा समाज के समस्त वर्गों में सद्भाव कायम रखने, महत्वपूर्ण व्यक्तियों एवं संस्थानों की सुरक्षा करने के साथ-साथ अपने नागरिकों की जान व माल की सुरक्षा करने की जिम्मदारी संभालते हैं। अमूमन देखा जाता है कि पर्याप्त संख्या में पुलिस बल होने के बावजूद अक्सर समस्याग्रस्त इलाकों में कई बार पुलिस का मौजूद न होना आम जनता की आंखों में खटकता है, वहीं विदेशों में पुलिस को घोड़ों, कारों में सवार होकर आधुनिक हथियारों एवं उपकरणों से सनद्ध देखकर मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि काश! यही तौर तरीके हमारे देश में क्यों नहीं लागू किए जाते हैं? कॉमन काज एवं सेंटर फॉर दि स्टडी डेवल्पिंग सोसाइटीज ने, ‘भारत में पुलिस की स्थिति रिपोर्ट 2019 : पुलिस की पर्याप्तता और कार्य करने की स्थिति’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें तत्काल पुलिस सुधारों की आवश्यकता पर बल दिया गया था।

जाहिर है कि पुलिस तंत्र में व्यापक सुधारों की मांग आज भी समय की आवश्यकता है। आज के दौर में अपराधियों की बदलती कार्यशैली के दृष्टिगत पुलिस की भूमिका भी बदल रही है और उसे भी शातिर अपराधियों और आतंकवादियों की चुनौती से निपटने हेतु नवीनतम हथियारों और कंप्यूटर विज्ञान की तकनीकों से प्रशिक्षित किया जा रहा है, लेकिन फिर भी साइबर ठगी, नशीले एवं मादक पदार्थों का बढ़ता कारोबार और घरों में चोरियों की घटनाओं के अपराधियों तक पुलिस की पहुंच को आसान बनाने के लिए उन्हें बेहतरीन उपकरण, प्रशिक्षित डॉग्स स्क्वाड, वाहन और विशेष कार्यबल की उपलब्धता पर ध्यान देने की जरूरत है। भारत में अभी भी कई पुलिस कानून अंग्रेजों के समय के पुलिस अधिनियम-1861 पर आधारित हैं, जिनमें व्यापक सुधारों एवं बदलाव की जरूरत है। 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने श्री धर्मवीर की अध्यक्षता में राष्ट्रीय पुलिस आयोग का गठन किया था, 4 वर्षों में आयोग ने अपनी आठ जांच रिपोर्टें सौंपी थीं, लेकिन इन सिफारिशों को कभी भी लागू नहीं किया गया। इसके बाद भी कई समितियां बनी, लेकिन पुलिस सुधारों का मसला अभी भी अधर में लटका हुआ है। आज भी जैसे फिल्मों में घटना घटने के बाद पुलिस मौके पर पहुंचती है, कुछ कुछ वैसे ही हालात वर्तमान परिस्थिति में बने हुए हैं। अपराधी अपना काम कर निकल जाते हैं और पुलिस घंटों बाद घटनास्थल पर पहुंचती है।

कहीं कहीं पुलिस वालों के पास वाहन हैं तो पैट्रोल नहीं है, तो वहीं कई मामलों में पुलिस टालमटोल वाला रवैया भी अपनाती है अथवा मामलों को रफा-दफा करने का काम भी करती है। यदि देश में कानून व्यवस्था एवं अमन-शांति को बरकरार रखना है तो केंद्र एवं राज्य सरकारों को न केवल पुलिस सुधारों को अमलीजामा पहनाना होगा, अपितु पुलिस कर्मचारियों की संख्या में बढ़ोतरी करके उन्हें अत्याधुनिक सुविधाओं द्वारा देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को यकीनी बनाने वाले बल के रूप में तैयार करना होगा। पश्चिमी देशों की तर्ज पर भारत में भी स्मार्ट पुलिसिंग व्यवस्था को लागू किए जाने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों को व्यापक सुधारों को लागू करने के साथ-साथ पुलिस बलों के लिए बजटीय आबंटन बढ़ाने की जरूरत है। दूसरे, युवा पुलिस अधिकारियों एवं जवानों को बैरकों में ही बिठाए रखने की बजाय उन्हें जनता के बीच में उतारने की सख्त आवश्यकता है ताकि आम पब्लिक के बीच में उनकी सक्रिय मौजूदगी से विश्वास बहाली हो और अपराधियों पर अंकुश लगाने में भी मदद मिले। हिमाचल प्रदेश की ही बात करें तो भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने बदलती तकनीक के साथ अपराध के तौर-तरीकों में भी बदलाव के मद्देनजर पुलिस विभाग को अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव लाने के निर्देश देते हुए आर्टिफिशियल इंटेलिंजेस के साथ अन्य आधुनिक सॉफ्टवेयर के उपयोग करने की आवश्यकता जताई है। यह भी महत्वपूर्ण है कि प्रदेश सरकार ने पुलिस विभाग के आधुनिकीकरण के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध करवाने और आने वाले दिनों में पुलिस विभाग में 1200 से अधिक कांस्टेबल और महिला सब-इंस्पेक्टर की भर्ती करने की बात कही है। एनआईटी हमीरपुर में ड्रग्स एवं नशे के प्रचलन के दृष्टिगत यह आवश्यक है कि शिक्षण संस्थानों में ड्रग्स की समस्या की रोकथाम के लिए विशेष टीमें तैनात की जाएं। हिमाचल प्रदेश के पुलिस थानों में वर्तमान जनसंख्या के अनुपात में कई कमियां हैं जिन्हें प्राथमिकता के आधार पर सुधारने की आवश्यकता है।

पुलिस विभाग में फील्ड गतिविधियों के लिए पेट्रोल और डीजल वाहनों और स्टाफ के लिए ई-वाहन उपलब्ध करवाए जाने के अतिरिक्त आबादी, क्षेत्रफल, अपराध दर, पर्यटकों की संख्या सहित अन्य कारकों को ध्यान में रखते हुए प्रदेश के पुलिस थानों की पुन:संरचना पर जल्दी निर्णय लिए जाने चाहिए ताकि वहां स्थानीय जरूरतों और इन कारकों के आधार पर पर्याप्त पुलिस कर्मचारियों और अन्य आवश्यक सुविधाएं प्रदान की जा सकें। इतना ही नहीं पुलिस विभाग में कार्यरत कर्मचारियों के काम के घंटों, उनके पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन की जरूरतों के अनुरूप तर्कसंगत वेतन एवं भत्तों के अलावा रिहायशी आवास इत्यादि उपलब्ध करवाए जाने चाहिए। थानों के रखरखाव, नियमित रंग रोगन, मैंटेनेंस एवं स्टेशनरी आदि जरूरतों के लिए पर्याप्त धनराशि दी जानी चाहिए। सबसे बड़ी जरूरत पुलिस अफसरों और कर्मचारियों के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए और उन्हें जनता जनार्दन की सेवा के लिए फ्री हैंड दिया जाना चाहिए, ताकि वे निर्भय, निष्पक्ष व सत्यनिष्ठ रहकर अपने कत्र्तव्यों का निर्वहन कर सकें।

अनुज आचार्य

स्वतंत्र लेखक


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