विधायकों को मताधिकार गलत

कई बार क्षणिक लाभ के लिए हम ऐसे निर्णय ले लेते हैं जिनके परिणाम दूरगामी होते हैं और इसके कारण या तो बाद में निर्णय बदलना पड़ता है या ऐसे निर्णय के दुष्प्रभाव का सारी व्यवस्था पर असर पड़ता है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक ऐसा निर्णय लिया है जिसमें लगता है कि शायद उसके दूरगामी प्रभावों पर विचार नहीं किया गया है। इस निर्णय के अनुसार नगर निगमों के महापौर और उपमहापौर के चुनाव में स्थानीय विधायकों को भाग लेने और मतदान करने का अधिकार दिया गया है, शायद यह निर्णय कानून की कसौटी पर सही नहीं उतरेगा। इस निर्णय के परिणामस्वरूप यदि महापौर और उपमहापौर के चुनाव में विधायकों को मतदान का अधिकार होगा तो फिर क्या जब नगर परिषदों, नगर पंचायतों, जिला परिषदों, पंचायत समितियों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव होगा तो उसमें भी विधायकों को मतदान का अधिकार होगा? क्या विधानसभा का चुनाव जीत कर विधायक को विधानसभा के अतिरिक्त स्थानीय निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव में मतदान का अधिकार मिल जाएगा? इसी के आधार पर सांसदों को यह अधिकार होगा कि उनके चुनाव क्षेत्र में आने वाले सभी नगर निगमों, नगर परिषदों, नगर पंचायतों, जिला परिषदों, पंचायत समितियों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव में सांसद भी अपने मत का प्रयोग कर सकेंगे।

फिर मामला केवल पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों के मुखिया चुनने तक ही सीमित नहीं होगा, फिर सांसद को अपने राज्य में मुख्यमंत्री के चुनाव में मतदान करने का अधिकार मांगने से कैसे रोका जा सकेगा और यह प्रश्न केवल एक राज्य तक सीमित नहीं होगा, राष्ट्रीय स्तर पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। इसीलिए मैंने कहा कि क्षणिक लाभ के लिए दूरगामी परिणामों वाले निर्णय लेने में पूरा विचार-विमर्श होना चाहिए। एक-दो नगर निगमों के महापौर और उपमहापौर के चुनाव के लालच के साथ-साथ प्रदेशव्यापी और राष्ट्रव्यापी परिणामों को भी ध्यान में रखना चाहिए। ऐसे निर्णय तर्कसंगत नहीं होते, संविधान निर्माताओं ने इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए नेता अर्थात प्रधानमंत्री (सरकार का मुखिया) का चुनाव करने का अधिकार केन्द्र में केवल लोकसभा के सांसदों को दिया है, राज्यसभा के सांसदों को यह अधिकार नहीं है। इसी प्रकार प्रदेश सरकार का मुखिया, मुख्यमन्त्री विधानसभा के विधायक चुनते हैं, विधान परिषद सदस्यों को यह अधिकार नहीं है। इसलिए नए आदेशानुसार चुने गए महापौर और उपमहापौर का चयन क्या कानून की कसौटी पर न्यायालय में टिक पाएगा? यह महत्वपूर्ण प्रश्न रहेगा। प्रदेश सरकार ने नगर निगमों में महापौर व उप महापौर के चुनाव को प्रभावित करने के लिए इस तरह का फैसला किया है, इसलिए इस निर्णय को वापस लिया जाना चाहिए। सुक्खू सरकार अगर व्यवस्था परिवर्तन चाहती है, तो उसे विपक्ष को भी विश्वास में लेना चाहिए।

-प्रेम कुमार धूमल, पूर्व मुख्यमंत्री


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