नशे के अंधेरे में एक उजली किरण

By: Dec 5th, 2023 12:05 am

इसलिए इस अभियान में सभी वर्गों को सक्षम और जिम्मेदार बनाने की योजना अमल में लाई जा रही है। ‘उड़ता हिमाचल’ बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे इस प्रदेश को बचाने के लिए नशामुक्त ऊना अभियान मॉडल कारगर विकल्प है…

‘ओवरडोज’ थोड़ा जटिल शब्द है। कुछ वक्त पहले यह प्रचलन में ज्यादा नहीं था। प्रोफेशनल लोग ही इसका जरूरत के अनुसार इस्तेमाल करते थे। लेकिन कुछ अरसे में ही यह शब्द सामान्य बोलचाल में शुमार हो गया है। ओवरडोज से होने वाली मौत की खबरों ने इसके मायने सहज और स्पष्ट कर दिए हैं। हॉस्टल, सडक़, गली, चौराहे और घर की चारदीवारी के अंदर मिलीं नौजवानों की लाशों ने ओवरडोज का डरावना स्वरूप हमारे सामने रख दिया है। पहले ऐसी खबरें कभी कभार सुनने को मिलती थीं, लेकिन अब ऐसी घटनाएं आम बात हो गई हैं। यह दर्शाता है कि नशे की समस्या गहरी और विकराल हो गई है। इन घटनाओं पर थोड़ी देर के लिए हाय तौबा होती है। मुद्दा समाचार पत्रों की सुर्खियां बनता है। दुकानों-चौराहों पर चर्चा भी खूब होती है। लेकिन उसके बाद व्यवस्था फिर से अपने ढर्रे पर रेंगनी शुरू हो जाती है। प्रतिक्रिया में, कहीं नशीले पदार्थों की कुछ मात्रा बरामद हो जाती है तो कहीं कोई रैली निकल जाती है या फिर भाषण, प्रवचन हो जाता है। इस फेहरिस्त में नशे के मकडज़ाल में फंसे युवाओं की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आता, अलबत्ता उनकी स्थिति पहले से बदतर हो जाती है। नशे से पीडि़त युवाओं की बीमारी पहले चरण से दूसरे और दूसरे से तीसरे यानी क्रानिक स्टेज पर पहुंच जाती है जिसमें उनकी नशे पर निर्भरता बहुत बढ़ जाती है या यह कहें कि उनकी स्थिति उनके नियंत्रण से भी बाहर हो जाती है।

यह विदित है कि नशीले पदार्थों के इस्तेमाल करने से सांसों की डोर कमजोर ही होती है। सिगरेट, भांग के हर कश, शराब के प्रत्येक जाम और चिट्टे की हर डोज के साथ उम्र के कुछ लम्हे कम होते जाते हैं, और जो उम्र जीने के लिए बचती है वह ‘क्वालिटी लाइफ’ नहीं बल्कि कई बीमारियों और दुश्वारियों के साथ बसर करनी पड़ती है। लेकिन ओवरडोज से हो रही लगातार और तत्काल मौत की खबरें सामान्य बात नहीं है। उधर, नशे से हो रही मौतों और अन्य नकारात्मक प्रभाव दिखने के बावजूद नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करने का आकर्षण कम नहीं हो रहा है बल्कि नशे की आदत के शिकार व्यक्तियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। जिज्ञासा, शौक, मस्ती, अनुभव, उपलब्धता या अन्य कारणों से युवा नशीले पदार्थों की चपेट में आ रहे हैं। इस चुनौतीपूर्ण स्थिति से निपटने के लिए जिला ऊना ने नायाब पहल की है। डीसी राघव शर्मा ने इस मुद्दे की गंभीरता और जटिलता को देखते हुए बचाव के प्रत्येक पहलू से निपटने की रणनीति तैयार की है जिसे नशा मुक्त ऊना अभियान के नाम से संचालित किया जा रहा है। ‘डीमाण्ड रीडक्शन’ दृष्टिकोण पर आधारित इस अभियान की खास बात यह है कि इसे ‘प्रीच और स्पीच’ मॉडल से हटकर एक व्यावहारिक कार्यक्रम बनाया गया। अभियान के क्रियान्वयन के लिए बाकायदा एक प्रोजेक्ट ऑफिस बनाया गया है। अभियान की गतिविधियों को क्रियान्वित करने के लिए ऊर्जावान और समर्पित युवाओं की टीम तैनात की गई है। तकरीबन पांच हजार व्यक्तियों को बचाव के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षित किया जा रहा है। इस मुहिम को प्रभावी बनाने के लिए जिला प्रशासन का पूरा अमला जी-जान से जुट गया है। अभियान को प्रभावी रूप से क्रियान्वित करने के लिए जिला स्तर से लेकर जमीनी स्तर तक, पुख्ता सांगठनिक ढांचा तैयार किया जा रहा है।

जिला स्तर पर डीसी की अध्यक्षता में जिला टास्क फोर्स का गठन किया गया है जिसमें सभी विभागों के प्रमुख शामिल हैं। ब्लॉक स्तर पर एसडीएम की अध्यक्षता में ब्लॉक टास्क फोर्स गठित की गई है। पंचायत स्तर पर प्रधान ग्राम पंचायत की अध्यक्षता में पंचायत टास्क फोर्स, जबकि शिक्षण संस्थानों में स्कूल अथवा कॉलेज टास्क फोर्स बनाई गई है, ताकि अभियान में निरन्तरता और स्थायित्व बना रहे। अभियान का विशेष कार्यक्रम ‘स्कूल इन्टरवेनशन’ है, जिसके तहत जिला ऊना के सभी स्कूलों में अध्ययनरत छठी से दसवीं जमा तक के सभी विद्यार्थियों को नशे से बचाव मुहिम में शामिल किया गया है। उन्हें जीवन के विभिन्न पहलुओं पर सशक्त किया जा रहा है ताकि उनके ज्ञान और कौशल में बढ़ोतरी हो सके और वे अपने बारे में सही निर्णय ले सकें। यह कार्यक्रम मात्र एक गतिविधि नहीं है, बल्कि निरंतर प्रक्रिया के रूप में क्रियान्वित किया जाएगा। छात्रों के ज्ञान और कौशल में इजाफा करने के लिए, हर स्कूल से एक अध्यापक को ‘मेंटर टीचर’ के रूप में प्रशिक्षित किया गया है। साथ ही प्रत्येक स्कूल से चुनिंदा छात्रों को ‘पीयर लीडर’ की भूमिका में प्रशिक्षित किया जा रहा है। प्रत्येक स्कूल और कॉलेज में छात्रों के क्लब बनाए जा रहे हैं जो पियर परामर्शदाता की भूमिका निभाएंगे। अभियान के अंतर्गत हर घर दस्तक अभियान जोर शोर से चलाया जा रहा है जिसके अंतर्गत प्रत्येक घर को बचाव मुहिम के साथ जोड़ा जा रहा है। जिम्मेदार अधिकारी के नेतृत्व में जिला की सभी पंचायतों के हर घर में पहुंच कर नशे से बचाव के लिए संवाद किया जा रहा है। साथ ही एक स्टिकर और अपील सुपुर्द की जा रही है।

जिलाधीश की तरफ से इस अपील में अभिभावकों के लिए खास संदेश लिखा गया है। हर घर दस्तक का मकसद समुदाय को जागरूक और सशक्त करना है ताकि उन्हें इस मुहिम में एकजुट किया जा सके और बचाव की शुरुआत प्रत्येक घर से हो। जिला में नशे की बीमारी के इलाज के लिए उपचार सेवाओं के दायरे को बढ़ाया जा रहा है ताकि नशे की बीमारी का उपचार शुरुआती दौर में ही किया जा सके। इसके लिए प्रत्येक ब्लॉक में दो स्वास्थ्य संस्थानों को चिन्हित किया गया है, जहां ओपीडी आधार पर उपचार सेवाएं उपलब्ध की जाएंगी। सेवा प्रदान करने वाले मेडिकल स्टाफ को ‘एम्स दिल्ली’ द्वारा विशेषज्ञ प्रशिक्षण प्रदान किया जा चुका है। जिला प्रशासन का मानना है कि एक बच्चे को नशे के चंगुल में जाने से बचाने के लिए उसके अभिभावक, शिक्षक और समुदाय का एकजुट होना जरूरी है। इसलिए इस अभियान में सभी वर्गों को सक्षम और जिम्मेदार बनाने की योजना अमल में लाई जा रही है। ‘उड़ता हिमाचल’ बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे इस प्रदेश को बचाने के लिए नशामुक्त ऊना अभियान मॉडल एक कारगर विकल्प हो सकता है। प्रदेश को इसका अनुकरण करना चाहिए।

विजय कुमार

स्वतंत्र लेखक


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