भारतीय राजनीति में एक नया प्रयोग

अब भारतीय जनता पार्टी ने राजनीति में एक नई रीत चला दी है। ऐसे-ऐसे लोग राजनीति में आगे आ रहे हैं जिनके बारे में जानने के लिए मीडिया वालों को गांवों में जाकर धक्के खाने पड़ रहे हैं। कौन हैं भजन लाल शर्मा? पिता जी क्या करते हैं? गांव में सडक़ भी है या नहीं? ऐसी कितनी जानकारियां जमा करनी पड़ रही हैं ताकि एक उम्दा सा लेख लिखा जा सके। सम्पादक ने मांगा है तो धुर देहात में जाकर धक्के तो खाने पड़ेंगे। पहला जमाना भला था। फारूक अब्दुल्ला कौन है? गूगल में जाएं और अब्दुल्ला पर दो किताबों की सामग्री मिल जाएगी। लेकिन लगता है अब भारत में राजनीति की नई पारी शुरू हुई है जिसमें राजवंश लडख़ड़ाने लगे हैं और आम आदमी जमने लगा है…

भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जीत प्राप्त कर ली है। यह अपने आप में अब कोई बडी खबर नहीं है। लेकिन बड़ी खबर तब बनी जब पार्टी ने इन तीनों राज्यों के लिए मुख्यमंत्रियों और उपमुख्यमंत्रियों का चयन किया। छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय, मध्यप्रदेश में मोहन यादव और राजस्थान में भजन लाल शर्मा मुख्यमंत्री बनाए गए। कहा जा रहा है कि जब राजनाथ सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री और हाल ही तक मुख्यमंत्री पद की सशक्त दावेदार वसुंधरा राजे के हाथ में एक पर्ची देते हुए कहा कि इसे पढ़ कर सुना दो ताकि पर्ची वाले को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया जाए। पर्ची पढ़ते समय शायद वसुंधरा राजे को भी विश्वास नहीं हो रहा था कि भजन लाल शर्मा को पार्टी मुख्यमंत्री बना रही है। उनके चेहरे की रंगत से ऐसा ही आभास होता था। मुख्यमंत्री बने ये तीनों शख्स मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में शामिल भी नहीं थे। इस काम के लिए बुलाई गई बैठकों में भी वे पीछे की सफों में बैठे दिखाई दे रहे थे। राजस्थान में दीया कुमारी और प्रेम चंद बैरवा को उप मुख्यमंत्री का जिम्मा दिया गया। यह ठीक है कि दीया कुमारी का नाम मीडिया में मुख्यमंत्री के तौर पर चर्चा में रहा था, जिसका एक कारण उनका राज परिवार से ताल्लुक रखना भी था।

लेकिन उसे उपमुख्यमंत्री होने का संतोष करना पड़ा। अलबत्ता प्रेम चंद किसी रेस में दूर दूर तक नहीं थे। राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देबड़ा मध्य प्रदेश में उप मुख्यमंत्री बने। छत्तीसगढ़ में अरुण साव और विजय शर्मा उप मुख्यमंत्री चुने गए। ये सब लोग कौन हैं और इससे भारत की राजनीति में परिवर्तन की दिशा कैसे दिखाई दे रही है? पिछले पचहत्तर साल से लोकतांत्रिक व्यवस्था के भीतर ही देश की राजनीति का अंक पैट्रन विकसित हो गया था। राजनीति में धीरे धीरे एक अभिजात्य वर्ग उभर आया था जो देश की राजसत्ता के शिखर पर बैठ गया था। इस प्रक्रिया ने स्वाभाविक ही वंशवाद को जन्म दिया था। इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री क्यों बनना चाहिए था? क्योंकि वह जवाहर लाल नेहरु की बेटी थीं। ध्यान रहे वह लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में महज राज्यमंत्री थीं। लेकिन राजीव गांधी को प्रधानमंत्री क्यों बनना चाहिए था? क्योंकि वह इंदिरा गांधी के बेटे थे। प्रधानमंत्री बनने तक देश की राजनीति में उनका कोई स्थान नहीं था। वह एक पायलट थे। राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री कौन बने? गांधी-नेहरु राजपरिवार में उस समय कोई नहीं था। राजीव गांधी के बच्चे अभी छोटे थे। सोनिया गांधी बन नहीं सकती थीं। नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री तो बने, लेकिन पूरी कांग्रेस इस अप्रत्याशित घटना से भौंचक्की थी। संकट काल में मनमोहन सिंह को गद्दी पर बिठा कर कामचलाऊ व्यवस्था जरूर कर ली गई थी, लेकिन पूरी पार्टी इस बीच असहज ही रही। राहुल गांधी ने दो कैबिनेट द्वारा पारित एक अध्यादेश को सार्वजनिक रूप से फाड़ कर मनमोहन सिंह की वास्तविक स्थिति को सार्वजनिक रूप से स्पष्ट कर दिया था। कांग्रेस में सहज स्थिति तब आई जब राजीव गांधी के दोनों बच्चे बड़े हो गए। तब स्वाभाविक ही उन्होंने गियर सम्भाल लिया। कहा जाता है, मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में यह सुझाव भी दिया गया था कि राहुल गांधी को मंत्रिपरिषद में लेकर शासन का कुछ अनुभव प्राप्त कर लेना चाहिए।

लेकिन इसे भी राज परिवार में तौहीन की तरह ही देखा गया। वह भविष्य के प्रधानमंत्री हैं, किसी के अधीन मंत्री कैसे बन सकते हैं? भारतीय राजनीति की यह फेहरिस्त केवल नेहरु-गांधी राज परिवार तक ही सीमित नहीं है। राजनीति की यह आकाश बेल सब जगह दिखाई दे रही है। अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री क्यों बनना चाहिए? इसके उत्तर में अखिलेश की योग्यता या अयोग्यता की चर्चा नहीं होती। केवल एक ही योग्यता यह पद सम्भालने के लिए पर्याप्त है कि वह मुलायम सिंह जी के सुपुत्र हैं। फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के स्थायी मुख्यमंत्री का दावा किस आधार पर ठोंकते हैं? उनका एकमात्र आधार शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के पुत्र-पौत्र होने का है। ममता बनर्जी ने सार्वजनिक रूप से घोषणा कर दी है कि उनका उत्तराधिकारी उनका भतीजा अभिषेक बनर्जी ही होगा। यही काम मायावती ने सार्वजनिक रूप से किया है। उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया है। लालू यादव ने तो संकट काल में अपनी पत्नी राबड़ी देवी को ही मुख्यमंत्री बना दिया था जिसका राजनीति से कुछ लेना-देना नहीं था। जब किसी ने आपत्ति की तो लालू ने सहज भाव से ही जवाब दिया था कि अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री न बनाता तो भला किसकी पत्नी को बनाता? अब बच्चे सयाने हो गए हैं तो पारिवारिक परम्परा के अनुसार सभी को पुश्तैनी सम्पत्ति बांट कर खाली समय में आनंद के कनकौए उड़ा रहे हैं। बिटिया को उपहार में सांसदी दे दी है। दोनों बेटों को, जिनका पढऩे इत्यादि में मन नहीं लगता था, उन्हें उप मुख्यमंत्री बना दिया है। अपना कमाएं और खाएं। उधर झारखंड में शिबू सोरेन ने अपने बेटे हेमंत सोरेन को ताज पहना दिया है। सेहत थोड़ा गड़बड़ रहती है। पानी का बुलबुला है। जीते जी बेटे को कुंजी थमा दी है। यह करना बहुत जरूरी है। बुजुर्गवार ऐसे ही तो नहीं कह गए थे कि अपने जीते जी अपना राजपाट बेटे-बिटियों को बांट-बूंट दो, नहीं तो पीछे से नाहक लड़ेंगे और वंश की बदनामी होगी। मुम्बई वाले बाला साहिब ठाकरे यही धोखा खा गए थे। इससे कितनी जगहंसाई और किरकिरी हुई? बेटा उद्धव ठाकरे कह रहा है कि मैं उनका उत्तराधिकारी हूं, उधर भतीजा राज ठाकरे कह रहा है चाचा जी मुझे उत्तराधिकारी बना कर गए थे।

घर की लड़ाई बाहर गली-मुहल्ले में सुनाई दे रही है। मायावती और ममता बनर्जी ने शायद इसी से सीख ली हो। तमिलनाडु में करुणानिधि के बच्चों वगैरह की फेहरिस्त को कौन देखे, इतना निश्चित है कि बेटे स्टालिन ने उसे किसी तरह सुलझा कर या फिर दूसरे दावेदारों को किसी तरह किनारे पर पहुंचा कर गद्दी पर कब्जा कर लिया है। लेकिन अब भारतीय जनता पार्टी ने राजनीति में एक नई रीत चला दी है। ऐसे-ऐसे लोग राजनीति में आगे आ रहे हैं जिनके बारे में जानने के लिए मीडिया वालों को गांवों में जाकर धक्के खाने पड़ रहे हैं। कौन हैं भजन लाल शर्मा? पिता जी क्या करते हैं? गांव में सडक़ भी है या नहीं? ऐसी कितनी जानकारियां जमा करनी पड़ रही हैं ताकि एक उम्दा सा लेख लिखा जा सके। सम्पादक ने मांगा है तो धुर देहात में जाकर धक्के तो खाने पड़ेंगे। पहला जमाना भला था। फारूक अब्दुल्ला कौन है? गूगल में जाएं और अब्दुल्ला पर दो किताबों की सामग्री मिल जाएगी। लेकिन लगता है अब भारत में राजनीति की नई पारी शुरू हुई है जिसमें राजवंश लडख़ड़ाने लगे हैं और आम आदमी जमने लगा है।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com


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