Election Result 2023: राजस्थान में नहीं बदला रिवाज, यहां पढ़ें, चुनाव परिणाम से जुड़ी हर खबर

By: Dec 4th, 2023 12:06 am

हर पांच साल में सरकार बदलने का राजस्थान का तीन दशक पुराना रिवाज एक बार फिर कायम रहा। राजस्थान की जनता ने कांग्रेस को सत्ता से हटाकर पांच साल के लिए कमान भाजपा को सौंप दी है। भाजपा को प्रचंड जीत मिली है और अशोक गहलोत के सारे दांव बेकार गए। चुनाव नतीजे के बाद पीएम मोदी की एक भविष्यवाणी की भी खूब चर्चा हो रही है, जिसको लेकर उन्होंने कहा था कि यह गलत नहीं होगा और लोग लिखकर रख लें। दरअसल, चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने अशोक गहलोत को लेकर भविष्यवाणी की थी। पीएम मोदी ने कहा था कि अशोक गहलोत फिर कभी मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे। उन्होंने कहा था गहलोत इस चुनाव के बाद तो मुख्यमंत्री नहीं ही बनेंगे आगे कभी भी इस पद पर नहीं बैठेंगे। फिलहाल पीएम मोदी की यह भविष्यवाणी सच साबित हो गई है। 22 नवंबर को पीएम मोदी ने राजस्थान के डूंगरपुर में जनसभा को संबोधित करते हुए यह भविष्यावाणी की थी। पीएम मोदी ने कहा था कि मावजी महाराज की भूमि से जो भविष्यवाणी की जाती है वह कभी गलत नहीं होती। पीएम मोदी ने कहा था, यह मावजी के तपस्या की भूमि है। यहां की भविष्यवाणी 100 फीसदी सच होती है। मैं उन्हें प्रणाम करते हुए एक भविष्यवाणी की हिम्मत करना चाहता हूं। राजस्थान के लोग लिखकर रख लें, अब राजस्थान में फिर कभी अशोक गहलोत की सरकार नहीं बनेगी।

राजस्थान में रानी या राजकुमारी

राजस्थान की सत्ता में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत के साथ वापसी कर ली है और कांग्रेस को करारी मात खानी पड़ी है। बीजेपी ने किसी भी चेहरे को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया था, जबकि इससे पहले चार चुनाव में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को ही आगे कर चुनाव लड़ती रही है। अब सभी के मन में एक ही सवाल है कि पार्टी किसे राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाएगी। वसुंधरा राजे राजस्थान में बीजेपी की सबसे कद्दावर नेताओं में से एक हैं और उनका सियासी ग्राफ पूरे प्रदेश में है। इसके चलते वसुंधरा राजे का नाम सीएम की रेस में सबसे आगे नजर आ रहा है, लेकिन शीर्ष नेतृत्व के साथ उनके रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रहे हैं। ऐसे में वसुंधरा राजे को पार्टी क्या फिर से मुख्यमंत्री बनाएगी। इस पर सस्पेंस दिख रहा है, लेकिन जिस तरह से वसुंधरा के गुट के तमाम नेता जीतकर आए हैं, उससे चलते उन्हें इग्नोर करना मुश्किल है। राजस्थान में बीजेपी के लिए वसुंधरा राजे का सियासी विकल्प तलाशना आसान नहीं है, लेकिन बाबा बालकनाथ, दीया कुमारी और गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे नेता भी रेस में माने जा रहे हैं।

बालकनाथ और दीया कुमारी को बीजेपी ने सांसद रहते हुए विधानसभा का चुनाव लड़ाया और दोनों ही नेता जीतकर आए हैं। दीया कुमारी राज परिवार से हैं, महिला हैं और राजपूत समुदाय से आती हैं। राजस्थान में बीजेपी सियासत में फिट बैठ रही हैं और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के साथ भी बेहतर तालमेल हैं, लेकिन राज घराने से होना उनके सियासी राह में बाधा बन सकती है। बालकनाथ राजस्थान में बीजेपी के हिंदुत्व के पोस्टर बॉय हैं और सीएम पद के सर्वे में नंबर एक पर थे। बीजेपी ने जिस तरह से यूपी में सीएम की कुर्सी योगी आदित्यनाथ को सौंपी थी, उसी आधार पर अगर पार्टी फैसला करती है तो फिर महंत बालकनाथ के सितारे बुलंद हो सकते हैं। सीएम पद के दावेदारों में केंद्रीय गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम भी आता है। राजस्थान में अशोक गहलोत के खिलाफ सबसे ज्यादा मोर्चा खोलने वाले नेताओं में गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम आता है। बीजेपी नेतृत्व के भी करीबी नेताओं में गिने जाते हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री पद के रेस में शेखावत को भी माना जा रहा है।

बीजेपी की जीत के फैक्टर

हिंदुत्व का चला मुद्दा : राजस्थान में बीजेपी ने हिंदुत्व का मुद्दा उठाया था। बीजेपी ने सूबे में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को मुद्दा बनाया। कन्हैयालाल हत्याकांड को मुद्दा बनाया। नाथ संप्रदाय से जुड़े बाबा बालकनाथ को चुनाव में अहमियत दी गई। बीजेपी ने इनके जरिए वोटर्स को लुभाने की सफल कोशिश की। बाबा बालकनाथ को राजस्थान में यूपी की तर्ज पर मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर देखा जा रहा है। वह भी इस रेस में हैं।

ब्रांड मोदी का फायदा मिला : देश की सियासत में सबसे बड़ा ब्रांड पीएम मोदी है। उनका नाम ही किसी भी चुनाव में जीत का फासला तय करने के लिए काफी है। राजस्थान चुनाव में बीजेपी को ब्रांड मोदी का फायदा मिला। सूबे में कांग्रेस ने अशोक गहलोत को ओबीसी फेस की तरह पेश किया। शुरुआती दिनों में गहलोत की बढ़त भी दिख रही थी, लेकिन जब पीएम मोदी मैदान में उतरे तो सारा समीकरण ही पलट दिया। सूबे में बीजेपी की सरकार बनने में सबसे बड़ा फैक्टर ब्रांड मोदी का रहा है।

करप्शन को मुद्दा बनाया: राजस्थान में बीजेपी की जीत का अहम फैक्टर करप्शन का मुद्दा रहा। बीजेपी ने गहलोत सरकार में भ्रष्टाचार के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। सूबे में पेपर लीक का मुद्दा उठाया। सियासत से जुड़े लाल डायरी के मुद्दे को बीजेपी नेताओं ने खूब उछाला। गहलोत सरकार ने बीजेपी के आरोपों का जवाब दिया, लेकिन जनता ने बीजेपी पर भरोसा जताया।

सांसद-मंत्री चुनाव में उतरे : बीजेपी इस बार बदली रणनीति के साथ चुनाव मैदान में उतरी। बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में केंद्रीय नेताओं को उतारा। बीजेपी ने सात सांसदों को विधानसभा में उम्मीदवार बनाया। झोटवाड़ा से सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़, अलवर सांसद बाबा बालकनाथ को तिजारा सीट, सांचौर से सांसद देव जी पटेल, जयपुर के विद्यानगर से बीजेपी सांसद दिव्या कुमारी, सवाईमाधोपुर से बीजेपी सांसद किरोड़ीमल मीणा को मैदान में उतारा, जिसका फायदा पार्टी को मिला। जनता ने बीजेपी के इस रणनीति को पसंद किया।

कांग्रेस की हार के कारण

अंदरूनी लड़ाई से नुकसान : विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई से काफी नुकसान हुआ। चुनाव में गहलोत गुट और पायलट गुट की लड़ाई साफ-साफ नजर आर ही थी। इस गुटबाजी का असर पार्टी कार्यकर्ताओं पर पड़ा। उनका मनोबल टूट गया। कांग्रेस एकजुटता के साथ पूरे चुनाव में कभी भी नजर नहीं आई। पूरे चुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच दूरियां बनी रही, जिसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ा।

गहलोत की योजनाएं फेल : सीएम अशोक गहलोत ने कई लुभावनी योजनाएं लागू की। चुनाव में सीएम ने सात गारंटियां लांच की। चुनाव से पहले चिरंजीवी योजना की लिमिट बढ़ाकर 50 लाख करने का वादा किया, लेकिन सरकार इन योजनाओं के फायदे जनता को बताने में नाकाम रही। सूबे के युवाओं ने गहलोत की गारंटियों पर भरोसा नहीं जताया। युवाओं ने पीएम मोदी के वादों पर भरोसा जताया।

लाल डायरी का मुद्दा : चुनाव में बीजेपी ने लाल डायरी का मुद्दा प्रमुखता से उठा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तक ने लाल डायरी का जिक्र किया और गहलोत सरकार को निशाने पर लिया। पीएम मोदी ने कांग्रेस पर लूट की दुकान चलाने का आरोप लगाया। सीएम गहलोत ने लाल डायरी को काल्पनिक बताया और बजेपी पर राजेंद्र गुढ़ा को मोहरे की तरह इस्तेमाल करने का आरोप लगाया, लेकिन जनता ने गहलोत की सफाई को भरोसा नहीं जताया।

ध्रुवीकरण रोकने में नाकाम : कांग्रेस की गहलोत सरकार बीजेपी के हिंदुत्व की काट खोजने में नाकाम रही। सीएम गहलोत ध्रुवीकरण रोकने में नाकाम रहे. बीजेपी ने कन्हैयालाल हत्याकांड को मुद्दा बनाया, लेकिन कांग्रेस इस मुद्दे पर सफाई देने के अलावा कुछ नहीं कर पाई, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा। बीजेपी ने नाथ संप्रदाय के बाबा बालकनाथ को भी चुनाव में अहमियत दी। कांग्रेस के पास राजस्थान के इस योगी का कोई काट नहीं था। इस तरह से कांग्रेस हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने में नाकाम रही, जिसका फायदा बीजेपी को हुआ और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।

ईवीएम को हटाने की जरूरत

मध्य प्रदेश समेत तीन राज्यों में कांग्रेस को भारी शिकस्त झेलनी पड़ी। तीन राज्यों में लगे झटके के बीच कांग्रेस ने ईवीएम का मुद्दा उठाया है। यूपी कांग्रेस के प्रवक्ता अंशु अवस्थी ने कहा है कि ईवीएम को हटाने और उस पर मंथन करने की जरूरत है। यूपी कांग्रेस के प्रवक्ता अंशु अवस्थी ने कहा, बार-बार हम इस बात को कह रहे थे कि ईवीएम पर चिंतन करने की जरूरत है। सभी राजनीतिक दल चुनाव आयोग से सवाल उठा चुके हैं।

सनातन पर विपक्ष के हमले को अपने पक्ष में भुना ले गई बीजेपी

प्रधानमंत्री मोदी अपनी सभाओं में इंडिया गठबंधन के नेताओं की तरफ से सनातन के खिलाफ जहर उगलने के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। उन्होंने कहा कि ‘घमंडिया गठबंधन’ सनातन को खत्म करना चाहता है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन, डीएमके के एक और बड़े नेता ए. राजा ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि ‘सनातन को जड़ से मिटा’ दिया जाना चाहिए। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े के बेटे प्रियांक खरगे भी बहुत हद तक स्टालिन और राजा के सुर में सुर मिलाते दिखे। आरजेडी नेता चंद्रशेखर, सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता भी लगातार राम चरित मानस और सनातन से जुड़े प्रतीकों पर हमले करते रहते हैं। नतीजों के आधार पर कहा जा सकता है कि बीजेपी ने सनातन और उसके प्रतीकों पर विपक्षी नेताओं के हमलों को अपने पक्ष में भुनाने में कामयाब रही है।

प्रियंका को मेरे कद का पता चल गया

मध्य प्रदेश में सारे अनुमानों और एग्जिट पोल्स को गलत साबित करते हुए भाजपा ने बड़ी जीत दर्ज की है। भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाले चंबल-ग्वालियर बेल्ट में भी बड़ी जीत हासिल की है। इसके बाद प्रियंका गांधी के उस बयान को याद किया जा रहा है, जिसमें उन्होंने सिंधिया के कद पर टिप्पणी की थी। इस पर अब उन्होंने तीखा जवाब दिया है। सिंधिया ने प्रियंका गांधी का नाम लिए बिना ही कहा, किसी ने मेरे कद पर टिप्पणी की थी। ग्वालियर-मालवा के लोगों ने बता दिया है कि उनका कद क्या है।

विचारधारा की लड़ाई जारी रहेगी

कांग्रेस की हार पर राहुल गांधी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। राहुल गांधी ने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर लिखा कि राजस्थान का जनादेश हम विनम्रतापूर्वक स्वीकार करते हैं, विचारधारा की लड़ाई जारी रहेगी। तेलंगाना के लोगों को मेरा बहुत धन्यवाद – प्रजालु तेलंगाना बनाने का वादा हम जरूर पूरा करेंगे। सभी कार्यकर्ताओं को उनकी मेहनत और समर्थन के लिए दिल से शुक्रिया।

हार के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी का वीडियो वायरल

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बंपर जीत के बाद बीजेपी में जश्न का माहौल है। इस बीच बीजेपी कांग्रेस नेता राहुल गांधी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर कर उनके मजे ले रही है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने इस वीडियो को ट्वीट कर लिखा है, सच हुई राहुल जी की भविष्यवाणी। चुनावों के दौरान कांग्रेस नेता के इस वीडियो पर एक्स पर शेयर किया गया। राहुल गांधी के 10 सेकंड के इस वीडियो में उनका मध्य प्रदेश और राजस्थान चुनाव पर दिया गया बयान है। इसमें वह कहते हैं, राजस्थान में भी सरकार जा रही है। छत्तीसगढ़ में भी जा रही है। रविवार को जो चार विधानसभा चुनावों के रिजल्ट आए हैं, उमसें राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बीजेपी बंपर जीत के साथ सरकार बनाई है। गौरतलब है कि राहुल ने राजस्थान चुनाव में पीएम मोदी को ‘पनौती’ कहा था, जिसका बीजेपी ने विरोध किया था ।

एमपी में भाजपा को सत्ता में ले आईं मामा की ‘लाड़ली बहनें’

मध्य प्रदेश में बीजेपी के लिए लाड़ली बहना योजना गेमचेंजर साबित हुई है। लाड़ली बहनों ने अपने लाडले भैया का नैय्या पार लगा दिया है। इसके साथ ही एमपी में बीजेपी की सुपर जीत हुई है। इस जीत के पीछे पार्टी के कई चेहरे खड़े हैं, लेकिन बाजी पलटने वाली योजनाएं सीएम शिवराज सिंह चौहान ने शुरू की थी। प्रचंड बहुमत के बाद मध्य प्रदेश में यह चर्चा शुरू हो गई है कि मध्य प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने चेहरे की घोषणा नहीं की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर पार्टी चुनाव लड़ रही थी। साथ ही पार्टी के नेता कहते थे कि हम सामूहिक नेतृत्व में आगे बढ़ रहे हैं। पीएम मोदी के बाद एमपी में सबसे बड़ा चेहरा शिवराज सिंह चौहान का ही है। उन्होंने वोटिंग के बाद कहा था कि लाड़ली बहना योजना ने सारे कांटे निकाल दिए हैं। इस जीत के साथ ही शिवराज सिंह चौहान ने एक बार फिर से पार्टी में मजबूती के साथ खड़े हुए हैं। प्रदेश से शिवराज सिंह चौहान की विदाई का रास्ता देख रहे विरोधियों को भी करारा जवाब मिला है। लाड़ली बहन योजना ने चौहान की राजनीतिक किस्मत बदल कर रख दी है। लाड़ली बहना योजना के तहत मध्यप्रदेश की 1.31 करोड़ महिलाओं को 1250 रुपए हर महीने दिए जा रहे हैं। एमपी की सात करोड़ आबादी में लाड़ली बहना योजना की लाभार्थियों ने शिवराज को भर भर कर वोट दिया है।

न चली ओपीएस और न ही जाति जनगणना

लोकसभा चुनाव से पहले तीन राज्यों में जीत से भाजपा को मिली संजीवनी

चार राज्यों में से तीन राज्यों में बीजेपी शानदार जीत दर्ज की। वहीं, तेलंगाना में कांग्रेस को जीत मिली। बीजेपी के लिए यह जीत कई मायनों में बहुत खास है। लोकसभा चुनाव से पहले इस जीत के मायने और भी बड़े हो जाते हैं। इन चुनावों को सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा था। इसमें बीजेपी ने कांग्रेस को काफी पीछे छोड़ दिया है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की जीत को लेकर कई सवाल थे। पार्टी के भीतर भी इन दो राज्यों को लेकर कई सवाल थे। बावजूद इसके भी बीजेपी यहां सरकार बनाने जा रही है। इसके साथ ही इन चुनावों में कांग्रेस की ओर से दो ऐसे बड़े मुद्दे बार-बार उठाए जा रहे थे, जिसको लेकर बीजेपी थोड़ी असहज नजर आ रही थी। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी इन दो मुद्दों को बार-बार उठा रहे थे। एक ओर जाति जनगणना, तो दूसरी ओर पुरानी पेंशन स्कीम। यह दो मुद्दे ऐसे थे, यदि कांग्रेस के पक्ष में नतीजे जाते तो लोकसभा चुनाव में इन्हें और जोर-शोर से उठाया जाता।

ऐसा नहीं है कि ये मुद्दे अब लोकसभा चुनाव में नहीं उठेंगे, लेकिन फिलहाल बीजेपी को बड़ी राहत मिली है। अडानी, राफेल का नाम थोड़ा पीछे छोडक़र पिछले कुछ समय से सबसे अधिक आक्रामक तरीके से जिस मुद्दे को कांग्रेस की ओर से उठाया जा रहा था, वे था जाति जनगणना का मुद्दा। राहुल गांधी पिछले कुछ समय से जाति जनगणना और ओबीसी का कार्ड जमकर खेलते हुए दिखे। शुरुआत इसकी भले ही बिहार से नीतीश और तेजस्वी की ओर से होती है, लेकिन इस मुद्दे पर राहुल गांधी उनसे आगे निकलते दिखे। उनकी ओर से साफ-साफ कहा गया कि जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है या आएगी वहां जाति जनगणना करवाई जाएगी।

एमपी में शिवराज का विकल्प कौन…

मध्य प्रदेश में बीजेपी ने सीएम शिवराज सिंह चौहान के चेहरे की बजाय सामूहिक नेतृत्व में लडऩे का फैसला किया और कई सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को चुनाव में उतारा था। शिवराज सिंह चौहान कांग्रेस की गारंटी कार्ड के काउंटर में लोक-लुभावन वादे करके सियासी फिजा को बीजेपी के पक्ष में मोडऩे में काफी हद तक सफल रहे हैं। ऐसे में शिवराज सिंह चौहान को अब सीएम पद की रेस से बाहर करना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा। बीजेपी के लिए एमपी में शिवराज का सियासी विकल्प तलाशना आसान नहीं है, क्योंकि पार्टी के बाकी नेताओं का सियासी ग्राफ एक इलाके तक ही सीमित है। शिवराज सिंह चौहान को पार्टी वर्तमान का नेता मान रही है, लेकिन भविष्य के नेता के तौर पर उसे नया चेहरा तलाशना होगा। महिलाओं के बीच शिवराज का अपना ग्राफ है और उसे नजरअंदाज करना मुश्किल है। भाजपा अगर शिवराज सिंह चौहान की जगह किसी और को कमान सौंपती है, तो उसमें कैलाश विजयवर्गीय, प्रह्लाद सिंह पटेल, राकेश सिंह की किस्मत खुल सकती है। इसके अलावा ज्योतिरादित्व सिंधिया भी सीएम पद के दावेदारों में एक माने जा रहे हैं। सिंधिया का एमपी के सीएम बनने की राजनीतिक महत्त्वकांक्षा जगजाहिर है। असम में जिस तरह से कांग्रेस से आए हेमंत बिस्वा सरमा को बीजेपी ने सीएम बनाया है, उसी तरह से सिंधिया की किस्मत खुलने के कयास लगाए जाते रहे हैं।


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