हिमाचल तक चुनावी चीख

By: Dec 5th, 2023 12:05 am

जिस तीन दिसंबर पर आकर देश का रथ खड़ा था, वहां अब 2024 के सफर का सारा कारवां बदल रहा है। पांच राज्यों के चुनाव में डंके की चोट पर कोई तो चोटिल हुआ। देश को बदलने की राजनीतिक मंशा में कहीं तो कांग्रेस अपने बुनियादी प्रश्रों से घायल और अपाहिज नजर आई। खास तौर पर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुई सेंधमारी बताती है कि भाजपा की चुनावी मशीनरी बेहतर नहीं, घातक भी है। अब इसमें शंका करने की वजह घट रही है कि भाजपा का यही अभियान 2024 के चुनावी मैदान में भारी नहीं पड़ेगा। देश के मुद्दे एक तरफ, दाल-आटा एक तरफ, लेकिन भूगोल से गणित तक भाजपा अपने लिए पैरवी का ऐसा मजमून बनाती है, जिसके आगे कांग्रेस गच्चा खा रही है। कम से कम विपक्ष में एक साथ खड़ा होने के सपने तो चूर-चूर हो रहे हैं। यकीनन सियासत बदल गई है, लेकिन कांग्रेस फिर अपनी ही पिच पर यह भूल जाती है कि सामने खिलाड़ी ‘भूखा शेर’ भी है जो जंगल छोडक़र उसके शहर में आ चुका है। जाहिर है कांग्रेस के क्षत्रप बुरी तरह हारे, लेकिन भाजपा ने सलीके से अपने भीतर के ऐसे नेताओं को कुंद करके उनकी औकात दिखा दी। राजस्थान में अशोक गहलोत के कारनामे हों या कमल नाथ के फरमान, कांग्रेस के क्षत्रप बुरे अहंकार में पार्टी की भुजाओं को तोड़ रहे हैं। इन्हें खुशफहमी है कि यही वट वृक्ष हैं और यह भी कि किसी नए पौधे को उगने नहीं देंगे। कमोबेश हिमाचल और कर्नाटक की जीत का भूत तो इन चुनावों में उतर जाना चाहिए, वरना अब सवाल विश्वसनीयता पर आकर खड़ा हो गया है।

मतदाता दुखी हो या उसका चूल्हा ठंडा रहे, वह राजनीति के चूल्हे पर भाजपा के पकवान पर भरोसा कर रहा है। उसके सामने कांग्रेस की गारंटियों के मायने खत्म हो रहे हैं। वह कांग्रेस के किंतु-परंतु के बजाय भाजपा के सम्मोहन को अपना यथार्थ मना रहा है, तो इस कवायद के गूढ़ रहस्य में देश एकतरफा नहीं होगा, इसकी क्या गारंटी। भाजपा ने राजनीति का एहसास ही नहीं बदला, बल्कि मनोविज्ञान भी पूरी तरह कब्जे में ले लिया है। कांग्रेस को न तो यह समझ आ रहा है कि उसे कैसे अपने संगठन को आगे बढ़ाना है और न ही हिम्मत से अपनी विचारधारा को बढ़ाना है। जाहिर है राजस्थान और छत्तीसगढ़ की कमजोरियां हिमाचल की वर्तमान सरकार के पल्ले पड़ रही हैं। राजस्थान व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की गारंटियां और ओपीएस की वापसी भी फेल हुई है और यही हिमाचल में सरकार को समझना होगा। इन राज्यों के क्षत्रप पस्त हो गए हैं, तो क्या हिमाचल में सरकार के सामने संगठन की शक्ति को पहचाना जाएगा। कुछ तो सत्ता के गठन और सत्ता के संगठन में दूरियां हैं। कुछ तो सरकार के दर्शन और सरकार के भीतर राज्य के दर्शन में दूरियां हैं। कहीं तो सरकार के पहरावे और जनादेश के पहरावे में दूरियां हैं। जनता ने दिल खोलकर कांग्रेस को सिर्फ सरकार नहीं दी, बल्कि भौगोलिक, सामाजिक और क्षेत्रीय सियासत के तमगे भी दिए, फिर कुछ सिक्के खोटे व कुछ मोटे कैसे हो गए।

जाहिर है राजस्थान व छत्तीसगढ़ के चुनाव परिणाम हिमाचल में चीख कर कांग्रेस को जगा रहे हैं। जगा रहे हैं कि पार्टी अपनी संगठनात्मक ताकत और सरकार अपने वर्तमान ढर्रे को बदल ले। सरकार बाहर तब जीतेगी, जब अंदर से जीत पाएगी। जो पद भर गए, अगर वही अपने हैं, तो यह गजब का आत्मविश्वास होगा, लेकिन संतुलन के तर्क अहंकार के नीचे नहीं दबाए जा सकते। हिमाचल से दूर पांच राज्यों के चुनाव सरक कर यहां भी कुछ तो कह रहे हैं। इसे भाजपा का उतावलापन कह दें, लेकिन सत्ता को अपने पैमाने बदलने पड़ेंगे। देखना यह होगा कि सुक्खू मंत्रिमंडल के विस्तार में कांग्रेस अपना कितना सुधार कर पाती है, लेकिन यह तय है कि अब दिन बदल जाएंगे। कल तक कांग्रेस के पास चार राज्यों की सत्ता थी, लेकिन आज यह घट कर तीन हो चुकी है। ऐसे में मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू को अब सिर्फ करना नहीं, बल्कि इसे सही से कहना और दिखाना भी है और इसके लिए सरकार और संगठन के भीतर की शक्ति चाहिए।


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