परीक्षा के खिलाड़ी

By: Dec 22nd, 2023 12:05 am

शुक्र यह कि शिमला में परीक्षा के दो खिलाड़ी पकड़े गए, वरना परीक्षा दिलाने की प्रतिभा का आयात हिमाचल में भी होने लगा है। मथुरा और हरियाणा की प्रतिभाओं ने परीक्षा को चुराने की कोशिश में व्यवस्था का इम्तिहान ले लिया। पहले एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय भर्ती और फिर दूसरा जूनियर सैक्ट्रिएट असिस्टेंट परीक्षा में किराए के परीक्षार्थियों ने अपनी कला के चमत्कार को जेल पहुंचा दिया। गनीमत यह है कि परीक्षा की निगरानी में सख्त आंखों ने फिंगर प्रिंट के आधार पर दोनों शातिरों को पकड़ लिया, लेकिन इन मामलों ने आंखें खोलकर ऐसे इम्तिहानों तक पहुंचे अपराध की चेतावनी दी है। परीक्षाओं की मर्यादा न शिक्षा के स्तर को पहचान पा रही है और न ही काबिलीयत का सही मूल्यांकन कर रही है। कमोबेश हर परीक्षा के दायरे में कोई न कोई दैत्य खड़ा है। कहीं नौकरी की तलाश में ‘पेपर लीक’ का सदमा तो कहीं परीक्षा के प्रश्रपत्र का अपहरण या चीरहरण हो रहा है। कमोबेश सरकारी रोजगार के हर अवसर को चुराने की कोशिशों में युवाओं का ईमानदार विश्वास कांप रहा है। इस अन्याय के तमाम सबूत होते हुए भी कोई राज्य या केंद्र सरकार कम से कम यह गारंटी नहीं दे रही है कि सारी चयन प्रक्रिया पूरी तरह निष्पक्ष और पारदर्शी होगी। हिमाचल प्रदेश का रिकार्ड भी अब विभिन्न भर्ती घोटालों की जद में अपाहिज व अप्रमाणित मौत की तरह देखा जा रहा है। हमीरपुर स्थित अधीनस्थ सेवा चयन आयोग को अपनी विश्वसनीयता फिर से साबित करने की चुनौती है तो सरकारी रोजगार की वचनबद्धता में सरकार को इस दिशा में कड़ी निगरानी कायम करनी होगी। अतीत में पुलिस भर्ती पेपर लीक मामले ने हिमाचल के हजारों प्रत्याशियों के मन में आशंका, कुंठा और अविश्वास के कई कारण पैदा कर दिए हैं।

ऐसे में पुन: पुलिस कांस्टेबल भर्ती का आगाज अगर यही विभाग करने जा रहा है, तो सरकार को इस फैसले पर पुनर्विचार करना होगा। रोजगार के बाजार में कई तरह के रास्ते खोजे जा रहे हैं, फिर भी युवाओं के आदर्शों में हिमाचल को अपनी शिक्षा का ढर्रा और कर्म की परिभाषा सुदृढ़ करनी होगी। सरकारी नौकरी का सपना विस्फोटक स्थिति में अवसर खोजते-खोजते या तो गलत गलबहियां कर रहा है या असामान्य ढंग से इस मोर्चे को फतह करना चाहता है। दूसरी ओर निजी क्षेत्र की क्षमता में पैदा हो रहा रोजगार भविष्य का सेतु है, लेकिन हिमाचल में इसे कोई स्थायी रूप से लांघना नहीं चाहता। हिमाचल में निजी निवेशक के लिए उपयुक्त मानव संसाधन की आपूर्ति एक टेढ़ी खीर की तरह रही है। सरकारी नौकरी बनाम निजी रोजगार की पैमाइश में भले ही उपयुक्त व क्षमतावान प्रत्याशियों की कमी है, फिर भी हर कोई यही चाहता है कि उसे सार्वजनिक क्षेत्र में सुरक्षित व सदाबहार रोजगार मिले। दो परीक्षाओं के पन्ने कतरने वाले युवा साबित करते हैं कि यह भी एक रोजगार है, जहां टेलेंट बिक रहा है। इसके संदर्भ राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में एक अलग तरह की मांग और बेचैनी पैदा कर रहे हैं, जहां हर अवसर ऐसी मानसिकता के तहत लूटा जा सकता है। मामलों की तह तक जाएंगे तो साबित होगा कि ऐसी परिपाटियों का संचालन कौन सी शक्तियां, कौन सी गारंटियां कर रही हैं।

हिमाचल में नौकरी तथा राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगी परीक्षाओं की व्यवस्था व सुविधाएं सुधारने की दिशा में विशेष प्रयास करने होंगे। ऐसी कई प्रतियोगी या केंद्रीय स्तर के सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियां हैं जिनकी परीक्षाएं राज्य के बाहर होती हैं। हिमाचल में इन तमाम परीक्षाओं के आयोजन की व्यवस्था में प्रयास करते हुए राज्य में कुछ परीक्षा केंद्र विकसित करने चाहिएं। धर्मशाला में स्कूल शिक्षा बोर्ड अपने स्तर पर परिसर के साथ राज्य परीक्षा केंद्र विकसित कर सकता है, तो शिमला व मंडी के विश्वविद्यालयों में ऐसी अधोसंरचना का निर्माण करके हिमाचली युवाओं को राष्ट्रीय स्तर के सरकारी रोजगार के करीब पहुंचाया जा सकता है।


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