दिव्यांगों को और सुविधाएं जुटाने की जरूरत

By: Dec 2nd, 2023 12:05 am

विकलांग व्यक्तियों से जुड़ी जानकारी का विश्लेषण हो…

अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस पूरे विश्व में हर वर्ष 3 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिन समाज और विकास के सभी क्षेत्रों में, विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों, कल्याण को बढ़ावा देने और राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन के हर पहलू में विकलांग व्यक्तियों की स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। हर वर्ष नए थीम के साथ इस दिवस को मनाया जाता है तथा इसके आधार पर विभिन्न कार्यक्रम और नीतियों को तय किया जाता है। यह दिवस एक सांकेतिक अवसर है, इन सांकेतिक दिवसों की सार्थकता, कार्यक्रम आयोजित करने, भाषण देने, पुरस्कार वितरित करने या घोषणा करने में नहीं है, बल्कि यह दिवस हर वर्ष हमें यह याद दिलाता है कि हम कहां चूक रहे हैं और हमें वास्तव में समाज को आदर्श बनाने में क्या कुछ और करना है। अभी भी ऐसा लगता है कि बहुत से लोग विकलांगता को किसी और की समस्या समझते हैं और सोचते हैं कि हम तो भगवान की दया से ठीक हैं, जो गलत सोच है। इसी संदर्भ में 2023 अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस का थीम है ‘विकलांग व्यक्तियों के लिए उनके साथ और उनके द्वारा एसडीजी को बचाने और प्राप्त करने के लिए कार्रवाई में एकजुट होना’। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में लगभग 15 प्रतिशत लोग दिव्यांगजनों की श्रेणी में आते हैं। विकलांग व्यक्तियों की एक अरब आबादी में से 80 फीसदी विकासशील देशों में रहते हैं।

प्रत्येक 10 बच्चों में से एक बच्चा विकलांगता से ग्रस्त है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 2.68 करोड़ विकलांग व्यक्ति हैं जो कुल जनसंख्या का 2.21 प्रतिशत हैं। कुल विकलांगों में 56 प्रतिशत पुरुष और 44 प्रतिशत महिलाएं हैं। 69 प्रतिशत दिव्यांग ग्रामीण क्षेत्र से हैं और शहरों में 31 प्रतिशत विकलांग रहते हैं। भारत का संविधान अपने सभी नागरिकों के लिए समानता, स्वतंत्रता, न्याय व गरिमा सुनिश्चित करता है और विकलांग व्यक्तियों समेत एक संयुक्त आदर्श समाज बनाने को जोर डालता है। इसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अप्रैल 2015 को विकलांग शब्द के स्थान पर दिव्यांग शब्द से संबोधित करने की घोषणा की थी जो विकलांगजनों को सम्माननीय बनाने की ओर एक कदम है। भारत सरकार ने विकलांगों के लिए तीन कानूनों को लागू किया, कानूनी फ्रेमवर्क के अलावा गहन संरचना का विकास किया है, जिसमें सात राष्ट्रीय संस्थान हैं, जो मानव बल के विकास के लिए हैं। पांच संयुक्त पुनर्वास केंद्र, चार पुनर्वास केंद्र तथा 120 विकलांग पुनर्वास केंद्र हैं जो लोगों को विभिन्न प्रकार की पुनर्वास सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। इसके अलावा कुछ राज्य सरकारों के पुनर्वास केंद्र सेवाएं प्रदान कर रहे हैं तथा साथ में 250 निजी संस्थान भी हैं। इसके अलावा विकलांग व्यक्तियों को स्वरोजगार के लिए राष्ट्रीय अपंग तथा वित्तीय विकास निगम ऋण मुहैया करवा रहा है। गैर सरकारी संगठन भी सारे भारत में सक्रिय हैं। वैसे तो विकलांगता की चार मुख्य श्रेणियां हैं, जिनमें दृष्टिबाधित, श्रवण बाधित, वाकबाधित, अस्ति विकलांग और मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति हैं, परन्तु विकलांग प्रमाणपत्र और अन्य सरकारी सुविधाओं के लिए दिव्यांगता के 21 प्रकार हैं। जहां तक हिमाचल प्रदेश का संबंध है, यहां पर भी विकलांगता पर बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।

हिमाचल में 2001 में 155950 विकलांग व्यक्ति थे जो कुल जनसंख्या का 2 प्रतिशत बनता है। इसमें से 144756 ग्रामीण इलाके में तथा 11194 शहरी इलाके में हैं। इनमें 64122 दृष्टि बाधित, 15239 दिव्यांग श्रवण बाधित और 12762 वाणी बाधित थे। हिमाचल में भी केंद्र सरकार आधारित विकलांग व्यक्ति अधिनियम 1995 तथा 1999 लागू हैं, परंतु इसके अलावा विकलांग व्यक्तियों की पूर्ण भागीदारी और समानता की उपलब्धि के लिए विकलांगता पर एक राज्य नीति विकसित करने की आवश्यकता है। साथ में स्थानीय निकायों, पंचायती राज संस्थाओं तथा आंगनवाड़ी वर्करों की सेवाएं लेकर विकलांगता की रोकथाम, विकलांग व्यक्तियों का पुनर्वास तथा विकलांग व्यक्तियों के लिए सक्षम वातावरण बनाया जा सकता है। हाल ही के वर्षों में विकलांगों के प्रति समाज का नजरिया तेजी से बदला है, परंतु अभी भी केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों को दिव्यांगजनों से संबंधित निम्नलिखित मुद्दों का समाधान कर न्याय दिलाने की सख्त जरूरत है। जो कर्मचारी राष्ट्रीय संस्थानों या पुनर्वास केन्द्रों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, उनको अपना रवैया विकलांगों के प्रति बदलने की आवश्यकता है। विकलांगता की रोकथाम तथा पुनर्वास के उपाय परामर्श तथा मेडिकल पुनर्वास, सहायक उपकरण, शिक्षा, आर्थिक पुनर्वास आदि में स्थानीय निकाय, पंचायती राज संस्थाएं तथा आंगनबाड़ी वर्कर का पूर्ण सहयोग लेने की आवश्यकता है। बहुत से परिवार ऐसे हैं जिनका बहुत सा धन विकलांग बच्चों की देखभाल, मेडिकल देखभाल, परिवहन, सहायक उपकरणों पर खर्च हो जाता है और साथ में विकलांग बच्चे की देखभाल के कारण रोजगार पर भी नहीं जा सकते।

नतीजतन भारी कर्ज में फंस जाते हैं और उनको अपनी जमीन-जायदाद आदि भी बेचनी पड़ जाती है। अत: इन परिवारों को सामाजिक सुरक्षा तथा अतिरिक्त आर्थिक सहायता का प्रबंध करने की आवश्यकता है। ऑटिज्म, सेरेब्रल पालिसी, मानसिक मंद तथा बहु विकलांगता के शिकार बच्चों के माता-पिता अपनी मृत्यु के बाद ऐसे बच्चों की देखभाल को लेकर काफी असुरक्षित महसूस करते हैं। उनके लिए राष्ट्रीय ट्रस्ट, स्थानीय स्तर की समितियों द्वारा कानूनी अभिभावकत्व प्रदान करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए। गैर सरकारी संगठनों को सरकार ने अहम जिम्मेदारी दी है ताकि सरकार के प्रयासों को लागू करें। परंतु बहुत से गैर सरकारी संगठन इन विकलांगों की एवज में विदेशों की सैर करते हैं तथा सरकारी ग्रांट का दुरुपयोग करते हैं। इस पर केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकारों को निगरानी रखने की आवश्यकता है। सरकार को उन कर्मचारियों का डेटाबेस बनाना चाहिए जिनके बच्चे विकलांग हैं, ताकि उनको उनके घर के समीप या ऐसी जगह जहां मेडिकल सुविधा उपलब्ध हो, पोस्टिंग हो सके। विकलांग व्यक्तियों से जुड़ी जानकारी का नियमित संग्रह, प्रकाशन तथा विश्लेषण होना चाहिए। विकलांगों की शिक्षा के लिए सुनिश्चित किया जाए कि हर एक विकलांग बच्चे को प्री स्कूल, प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त हो सके। इसके लिए सभी स्कूलों में विशेष अध्यापकों की नियुक्ति हो तथा स्कूल भवन, मार्ग, शौचालय, पुस्तकालय, प्रयोगशालाएं अवरोधमुक्त हों। बच्चों को विकलांगता से बचाने के प्रबंध हों।

सत्यपाल वशिष्ठ

स्वतंत्र लेखक


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App