कांग्रेस के सामने उभरी नई चुनौतियां

By: Dec 21st, 2023 12:05 am

कुछ समय पहले इंडिया गठबंधन के पक्ष में बनते माहौल को पांच राज्यों की विधानसभाओं के लिए हुए चुनावों में भाजपा द्वारा हिंदी पट्टी के तीन प्रमुख राज्यों पर जीत दर्ज करने से इस गठबंधन को 2024 के लोकसभा चुनावों के दृष्टिगत अपने मतभेदों को दरकिनार कर नए सिरे से चुनावी रणनीति पर काम करना होगा, वरना नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2024 में भाजपा की वापसी तय है। जहां तक हिमाचल का सवाल है तो कांग्रेस में व्याप्त गुटबंदी से पार पाकर मुख्यमंत्री को सभी गारंटियों को धरातल पर साकार करना होगा…

हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 11 दिसंबर को एक साल का कार्यकाल पूरा कर लिया। राज्य स्तरीय समारोह का जश्न मनाने के लिए तमाम कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं का जमावड़ा धर्मशाला में लगा। वहीं भारतीय जनता पार्टी ने सरकार के एक साल के कार्यकाल को पूरी तरह नाकाम बताया और शिमला में विरोध प्रदर्शन किया। रोजाना अखबारों की सुर्खियों में बने रहने की कवायद करते नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर को लगता है कि सुक्खू सरकार के पास जश्न मनाने की कोई खास वजह नहीं है। हालांकि सुक्खू सरकार पुरानी पेंशन बहाली जैसे अहम फैसले को लागू भी कर चुकी है और हालिया आपदा का समुचित प्रबंधन भी किया है, तथापि जयराम ठाकुर दावा कर रहे हैं कि सरकार सिर्फ और सिर्फ नाकामियों का जश्न मना रही है। दूसरी तरफ आजकल भारत में गारंटियां देने की होड़-सी मची हुई है। आम आदमी पार्टी से शुरू हुआ सिलसिला अब सभी राजनीतिक दलों को खूब आंदोलित करता नजर आता है। इधर अपने मुख्यमंत्रित्व काल का एक साल पूरा होने के अगले ही दिन मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू द्वारा पहले से खाली चल रहे मंत्रिमंडल के तीन में से दो पदों पर विधायकों की ताजपोशी होने से जहां मंत्री बने विधायकों के समर्थकों में खुशी की लहर है, तो वहीं कुछ विधायक मन मसोस कर भी रह गए हैं।

पूर्व मंत्री एवं धर्मशाला से विधायक सुधीर शर्मा अपनी फेसबुक वॉल पर लिखते भी हैं कि, ‘युद्धं निरन्तरं भवति, दैवेन सह, कालेन सह, अस्माभि: सह।’ अर्थात लड़ाई जारी है, भाग्य से, वक्त से, अपने आप से। जाीिहर है जब राजनीति में हैं तो कौन नेता व विधायक मंत्री नहीं बनना चाहेगा? कोई भजन-कीर्तन करने तो आए हुए नहीं हैं। लेकिन आम पब्लिक की क्या कहें, वह तो रामचरितमानस की यह चौपाई ही गुनगुना सकती है कि, ‘कोउ नृप होउ हमहि का हानी’, अर्थात किसी के मंत्री पद, धन या अधिकार मिलने से हमें क्या? हमें तो दो जून की रोटी कमाने के लिए मेहनत मशक्कत करनी ही होगी। पिछले कुछ समय से भारत के कई राज्यों में हर पांच वर्ष के बाद सरकार बदलने की रीत-सी चल पड़ी है और हिमाचल भी इस परिपाटी से अछूता नहीं है। लिहाजा अब कुछ नया होगा या नया करके दिखाने की गारंटी होगी, तभी जनता जनार्दन की नजरें इनायत होंगी और पढ़े-लिखे, सजग एवं जागरूक हिमाचलियों से ऐसी उम्मीद तो बंधती भी है कि वे दूध का दूध और पानी का पानी कर दें। इधर सुक्खू सरकार को भी अपनी दी हुई गारंटियों को पूरा करके दिखाना है, लेकिन प्रदेश के माली हालात ऐसे नहीं हैं कि सभी गारंटियों को एकदम से सिरे चढ़ाया जा सके। सीएम सुक्खू कहते भी हैं कि पिछली सरकार से वर्तमान राज्य सरकार को विरासत में लगभग 75 हजार करोड़ रुपए का कर्ज मिला है। वह बार-बार यह वक्तव्य भी दोहराते हैं कि वह सत्ता में सत्ता सुख के लिए नहीं, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए आए हैं।

उनका कहना है कि मेरे परिवार का कोई भी व्यक्ति राजनीति में नहीं रहा, इसलिए मन में वंचित वर्ग तक सरकार की योजनाओं का लाभ सुनिश्चित करने की सोच है। अब अगले 5-6 महीनों के भीतर लोकसभा के चुनाव भी होने हैं। प्रदेश सरकार भाजपाई चुनौती से कैसे दो-दो हाथ करेगी, इसके लिए प्रदेश नेतृत्व को अपने कुनबे को न केवल संभालने की जरूरत रहेगी, बल्कि जिन्हें मंत्री पद नहीं मिल पाया है, उन्हें शीघ्र ही मंत्रालय या किसी बड़े विभाग, बोर्ड या निगम की सरदारी देनी होगी। कांग्रेस को संगठन स्तर पर भी बड़े बदलावों को सरंजाम देना होगा, क्योंकि भाजपा के मुकाबले कांग्रेस के पास समर्पित और कर्मठ कार्यकर्ताओं का नितांत अभाव है और कांग्रेस के कुछ विधायक या स्वयंभू नेता अपने-अपने क्षेत्रों में खुद को ही सम्पूर्ण कांग्रेस मानने का भ्रम पाले रहते हैं, जिनके इर्द-गिर्द चंद स्वार्थी और ठेकेदार प्रवृत्ति के लोग उन्हें वास्तविक शुभचिंतक होने की झूठी तसल्ली देकर अपना हित साधते रहते हैं।

इन हालात में जनता से कटे ये विधायक या नेता किस प्रकार से लोकसभा की चारों सीटों को निकाल पाएंगे, जहां उनकी चुनौती भाजपा से बढक़र प्रधानमंत्री मोदी से है, यह कहना कठिन है। दूसरी तरफ सभी चुने हुए विधायकों के लिए भी लोकसभा चुनाव किसी परीक्षा से कम नहीं होंगे क्योंकि इन चुनावों में विधायकों का ग्राफ गिरा या उठा है, इसका भी उन्हें पता चलेगा। ऊपर से हालिया विधानसभा चुनावों में भाजपा को प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में जिस प्रकार से राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में जबरदस्त जीत हासिल हुई है, उसके दृष्टिगत हिमाचल में कोई नया करिश्मा कर दिखाना मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू और कांग्रेस नेतृत्व के लिए इतना आसान भी नहीं होने वाला है। कुछ समय पहले इंडिया गठबंधन के पक्ष में बनते माहौल को पांच राज्यों की विधानसभाओं के लिए हुए चुनावों में भाजपा द्वारा हिंदी पट्टी के तीन प्रमुख राज्यों पर जीत दर्ज करने से इस गठबंधन को 2024 के लोकसभा चुनावों के दृष्टिगत अपने मतभेदों को दरकिनार कर नए सिरे से चुनावी रणनीति पर काम करना होगा, वरना नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2024 में भाजपा की वापसी तय है। जहां तक हिमाचल का सवाल है तो सतारूढ़ कांग्रेस पार्टी के भीतर व्याप्त गुटबंदी और कुछ विधायकों को झंडी न मिलने से उपजी हताशा से पार पाकर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को अपनी पार्टी द्वारा दी गई सभी गारंटियों को धरातल पर साकार करना होगा, वरना भाजपा नि:संदेह गारंटियों वाले मुद्दे को भुनाने का प्रयास तो करेगी ही।

अनुज आचार्य

स्वतंत्र लेखक


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