तपोवन का किरदार

By: Dec 25th, 2023 12:05 am

इस सत्र की याद में कई चिराग जलते रहेंगे, तेरे हाथ की मशाल में इतनी तो रोशनी रही। तपोवन विधानसभा का शीतकालीन सत्र तपा जरूर, लेकिन इसके भीतर और बाहर के मजमून स्वतंत्र रहे और समय का बंटवारा भी निभाता रहा अपना दायित्व। दायित्व विपक्ष का अपने जुनून के किरदार में कई अक्स और कई पक्ष लिए, सरकार को घेरता और मुद्दों को पेलता रहा, लेकिन पहली बार एक छोटे से सत्र ने काम किया। जनापेक्षाओं के साथ, गारंटियों के हाथ और सरकार के करार को देखते-सुनते गुजर गया एक और शीतकालीन सत्र, लेकिन पक्ष और विपक्ष के किरदार ने अपने-अपने पाठ्यक्रम के बीच आवश्यक काम किया। पांच दिन की भीड़, कहने-सुनने के लिए 471 प्रश्न और कार्यान्वयन की दृष्टि में विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप पठानिया की भूमिका का जोरदार प्रदर्शन देखा गया। सत्र में एक ओर गारंटियों में आपदा देखती भाजपा और दूसरी ओर आपदा में गारंटियों को सहेजती कांग्रेस का बचाव खुद को संवारता रहा है। सरकार ने अपनी व्यवस्था परिवर्तन की पारी को मुखातिब किया और खुद को स्थापित करने की कोशिश में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपनी शासन प्रणाली का वक्तव्य दिया तो नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने समूचे विपक्ष को अपने कंधे पर उठा लिया। विधानसभा सदन के बाहर भाजपा ने गारंटियों का चोला पहनकर या सेब की पेटी उठाकर अगर विरोध किया, तो भीतर हर बहस को मुकाम तक पहुंचाने का दबाव बनाया। पहली बार बहिर्गमन पर सत्र सजायफ्ता नहीं हुआ और न ही वाकआउट की अनुगूंज ने माहौल के कान बिगाड़े। यह दीगर है कि सदन के बाहर विपक्ष की बोली में कई आंदोलनकारी भी पहुंचे। सत्ता अगर चाहे तो तपोवन का सत्र केवल सदन का आंतरिक वृत्तांत नहीं, बल्कि प्रदेश की मनोस्थिति का वर्णन भी है, जहां इसके बहाने विभिन्न वर्ग, विभिन्न मुद्दे और कर्मचारी मसले शिरकत करते हुए धर्मशाला पहुंच जाते हैं।

इन्हीं मसलों के बीच से इस बार केंद्रीय विश्वविद्यालय के जदरांगल परिसर ने अपनी शिकायतों का मजमा खड़ा किया। विश्वविद्यालय के जदरांगल परिसर की तमाम अनुभूतियों के बावजूद सरकार को महज तीस करोड़ जमा कर ढाई सौ करोड़ के निर्माण का श्रीगणेश करना है। यह क्यों नहीं हो रहा, जबकि देहरा की मुनादी में विश्वविद्यालय का परिसर रात-दिन मेहनत करके हमीरपुुर के सांसद एवं केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का गुणगान कर रहा है। हैरानी यह है कि कांग्रेस की पूर्व सरकार से भिन्न इस बार की कुंडली में इसी पार्टी का पांव फंसा है। विधानसभा सत्र का अंतिम दिन पूरे प्रदेश पर भारी पड़ा है। उस दिन हिमाचल का आर्थिक सामथ्र्य फिर घायल-अपाहिज दिखा तो इसलिए कि सामने कैग रिपोर्ट का सत्य तमाम सरकारों की बांसुरियां तोड़ रहा है। आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया। कैग रिपोर्ट बता गई कि प्रदेश की धमनियों में 86589 करोड़ का कर्ज घूम रहा है। पिछले एक वर्ष में 13055 करोड़ का नया उधार सिर पर सवार हो गया, तो यह छठे वेतन आयोग की सिफारिशों का असर भी है जो हर वर्ष सात हजार करोड़ का अतिरिक्त बोझ पैदा कर रही हैं। इसी मद में ओपीएस भी आने वाले समय में आर्थिक दैत्य बनकर सताएगा। सरकार पर गारंटियों का बोझ धीरे-धीरे पंजा जमाने लगा है और जिनका मूल्य राज्य चुका कर, कई अन्य क्षेत्रों में असमर्थता व्यक्त करेगा। अगर ढाई सौ करोड़ के जदरांगल परिसर के निर्माण पर तीस करोड़ की अदायगी भारी है, तो आइंदा ऐसी ही विकरालता से विकास भयभीत रहेगा। विडंबना यह है कि प्रदेश के पचास फीसदी बजट का होम कर्मचारी वेतन, पेंशन और भत्तों पर होगा। साढ़े चार लाख के करीब सरकारी कर्मचारी और पेंशनधारक अगर गुलकंद खा रहे हैं, तो निजी क्षेत्र के करीब पच्चीस लाख कर्मचारी, व्यापारी व निवेशक अपनी खुशहाली के लिए लडख़ड़ा रहे हैं। ऐसे में एक विशेष सत्र आहूत करके प्रदेश की आर्थिक हालत पर समग्रता के साथ चर्चा व राजनीतिक सहमति के साथ कड़े कदम उठाने की जरूरत है। जरूरत यह भी है कि तपोवन के एकमात्र सत्र को आगे बढ़ाते हुए यहां मानसून या बजट सत्र को भी पहुंचाया जाए।


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