विचार और भावनाएं

By: Dec 9th, 2023 12:14 am

सद्गुरु जग्गी वासुदेव

इस याद्दाश्त को हम कर्मगत छाप कहते हैं। एक ऐसा समय था जब भारत में, समाज आपकी कर्मगत छाप को संभालने की कोशिश कर रहा था। इसी मकसद से जातियां और गोत्र और दूसरी चीजें शुरू की गई थीं। लेकिन वो अब पूरा खत्म हो गया है…

मेरे विचार और भावनाएं वाकई मेरे काबू में नहीं हैं। तो मैं जानना चाहता हूं कि क्या हम अपनी सोच और भावनाओं को बदल सकते हैं और अपने विचार और भावनाएं सचेतन रूप से पैदा कर सकते हैं? सद्गुरु-मन मुख्य रूप से याद्दाश्त के एक खास संग्रह के आधार पर काम करता है। यह याद्दाश्त का एक जटिल जाल है जो आपको एक विशेष लक्षण प्रदान करता है। यह याद्दाश्त आपके जीवन में जागते और सोते हुए हर पल में जमा हो रही है। आपने जो याद्दाश्त जमा की है, उसके ज्यादातर हिस्से के बारे में आप अचेतन हैं क्योंकि वह बहुत बड़ी मात्रा में जमा हो रही है। तो कई चीजें जो आप इतनी आसानी से करते हैं, उदाहरण के लिए दो टांगों पर चलने जैसी साधारण चीज, वह बस आपकी हड्डियों और मांसपेशियों के कारण ही नहीं है,, बल्कि आपके पास मौजूद याद्दाश्त के कारण है। शरीर याद रखता है कि चलते कैसे हैं। अगर आप वह भूल जाएं तो आप चल नहीं सकते।

कर्मगत छाप– जब हम याद्दाश्त कहते हैं, तो लोग मन के बारे में सोचने लगते हैं, लेकिन शरीर में मन की अपेक्षा बहुत-बहुत ज्यादा याद्दाश्त होती है। आपके दादा के दादा के दादा की नाक आपके चेहरे पर लगी हुई है, क्योंकि आपके शरीर के अंदर किसी चीज को वह याद है। आपका शरीर अभी भी याद रखता है कि दस लाख साल पहले कोई व्यक्ति कैसा था और अभी भी उसका असर दिखता है। तो शरीर की याद्दाश्त मन की याद्दाश्त से कहीं बड़ी है। इस याद्दाश्त को हम कर्मगत छाप कहते हैं। एक ऐसा समय था जब भारत में, समाज आपकी कर्मगत छाप को संभालने की कोशिश कर रहा था। इसी मकसद से जातियां और गोत्र और दूसरी चीजें शुरू की गई थीं, लेकिन वो अब पूरा खत्म हो गया है। तो आपको उसे अपने भीतर ही संभालना होगा। सचेतन स्तर पर आपके विचार किस तरह के हैं, वह बस उस याद्दाश्त से तय होता है जो आपने इस जीवन में अपने जन्म से अब तक सचेतन रूप से जमा की है।

इस सचेतन याद्दाश्त को प्रारब्ध कहते हैं। लेकिन आपके अंदर ये विचार किस तरह की भावनाएं पैदा करते हैं, वह मुख्यतया याद्दाश्त की एक अचेतन प्रक्रिया से आता है। वह याद्दाश्त सचेतन याद्दाश्त से कहीं बड़ी है और ‘संचित’ कहलाती है। संचित का अर्थ है कर्म तत्त्व का अचेतन संग्रह, जो अपने ही तरीके से कार्य करता रहता है। यह स्वयं को अभिव्यक्त करने के संदर्भ में सक्रिय नहीं है, लेकिन यह आपको लाखों अलग-अलग तरीकों से प्रभावित करने में सक्रिय है। क्या इसका मतलब यह है कि आप पूरी तरह से पूर्व निर्धारित हैं और आप कुछ बदल नहीं सकते? नहीं। इसी आधार की वजह से आप मौजूद हैं। आप खुद को क्या बनाना चाहते हैं वो अब भी आपके ऊपर है। नियति कोई तयशुदा चीज नहीं है। यह आपका कद तय करता है, लेकिन यह हर चीज तय नहीं करता। आप इस ढांचे पर कितना भरते हैं वह आपके ऊपर है।


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