आईना घर से झांकते सत्य

By: Dec 21st, 2023 12:05 am

वह आदमकद आईने में अपना चेहरा देख कर मुस्करा देते हैं। जब-जब वह इस प्रकार आईने में झांकते हैं, उन्हें लगता है कि केवल वह ही नहीं, उनकी सारी रियाया उन्हीं के आईने में से झांकती हुई उनके साथ मुस्करा रही है। ठीक है, इसे वह इस लोकतांत्रिक युग में अपनी कोई छुपी साम्राज्यवादी प्रवृत्ति दिखा कर उन्हें मंच से कभी अपनी रियाया नहीं कहेंगे, बल्कि दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र की रियाया कहेंगे। कितना संतोष होता है कि इस बिगड़े समय में भी जब-जब कोई नेतागिरी का सर्वेक्षण होता है, उन्हें सबसे लोकतंत्र नेता करार दे दिया जाता है। आईने की कृपा से मापने के पैमाने थोड़े से और विस्तृत होते जा रहे हैं, इसलिए उन्हें लगता है, वह इस देश ही नहीं, पूरी दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं। अब इन पैमानों के नजर बचा लेने की ही बात है। ललमुंहे अंग्रेजों का देश, कि जिनके साम्राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता था, आज वह कब उगता है? कब डूब जाता है? कुछ पता नहीं ही चलता। दुनिया में इस महामारी से लडऩे के लिए टीका हमने बनाया, लेकिन कमबख्त इसके बावजूद हमारी नेतागिरी को ग्रहण लग गया। ये सर्वेक्षण बताते हैं कि हम तो लोकप्रियता खोने की कुछ और मंजिलें तय कर गए। किस शत्रु ने बता दिया कि हम दुनिया के सबसे अलोकप्रिय नेता बन गए? अरे अलोकप्रियता की घोषणा करनी थी तो क्यों अपने को दुनिया का सबसे धनी देश कहने वालों के नेता के अलोकप्रिय होते चले जाने की घोषणा कर देते। वह तो चुनाव हार गए थे, चाहे काफी दिन तक अपनी पराजय स्वीकार न करने का तैश उन्होंने रखा। वे अगले चुनाव के लिए गद्दी संभालने वास्ते लंगर लंगोटे भी कस रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय से राष्ट्रीय पर चलें। जनाब वह राजनीति के खेल निराले हैं, जिनके नारे चल निकले, वह सबसे लोकप्रिय हो गए। जबकि महामारियों ने कई देशों का हुलिया हमारे देश की तरह ही बिगाड़ा। यहां काम-धंधा सब उखड़ गया। लोग रिकार्ड स्तर पर बेकार हो गए, महंगाई की बुलंदियों का अंत नहीं, भ्रष्टाचार अब भी शबाब पर है।

भ्रष्टाचार का नया सूचकांक आ गया है। यहां अपने देश को लेकर भ्रष्टाचार के उसी पायदान पर खड़े हैं, जहां इससे पहले बरसों में खड़े थे। दुनिया के सबसे बड़े रिश्वतखोर देशों में उनकी गिनती होने लगी, लेकिन उनके आईने में उभरती उनकी चौड़ी मुस्कान में तनिक भी अंतर नहीं आया। जनाब हमें तो इस भीड़ के देश में गरीबी और गुरबत में जीने की आदत हो गई है। सुनिए, पिछले दिनों तो अपने यहां रिश्वत, दलाली और कमीशनखोरी को कानूनी जामा पहनाने का भी प्रयास हुआ, जो फिलहाल असफल है, लेकिन असफल हुए तो क्या हुआ? कानून को आजकल मानता कौन है? बस उम्मीदों के चौबारे ऊंचे होते रहने चाहिएं, उनके निवेश की बड़ी-बड़ी मेजों का उच्छिष्ठ खाकर भी अपने देश की भूखी-नंगी भीड़ पल जाएगी। यहां कम्पनी बहादुर ने राज्यशाही का चंवर ओढ़ कर इतने बरस शासन कर लिया। हमें इस देश की राई रत्ती पता है। हम तो भई स्वप्नजीवी लोग हैं। जो जनता को अच्छे सपने दिखा सके, बदलाव के नए नारे दे सके, क्रांति के दिवास्वप्न साकार कर देने का वायदा कर सके, वही उनका सबसे लोकप्रिय नेता होता है। आईने में अपना चेहरा देख कर मुस्कराते हुए नेता फिर सोचते हैं, और अपनी अद्भुत भाषण कला से लोगों में एक नया ओज भर देने का विश्वास श्रोताओं की भीड़ में उलीच देते हैं। देश के धरतीपुत्रों के भोलेपन पर उन्हें हंसी आती है। वे क्यों नहीं समझते कि ये सब उनके भले के लिए ही तो कर रहे हैं। वे कानून बदलने में नहीं, समझाने में विश्वास रखते हैं। उन्हें आत्मविश्वास है कि वे इन लोगों को समझा लेंगे। राजनीतिज्ञ तो राजनीति करेंगे ही।

सुरेश सेठ

sethsuresh25U@gmail.com


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