चुनावों का ‘अग्निपथ’

By: Jan 16th, 2024 12:02 am

कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद राहुल गांधी ने दूसरी यात्रा का आरंभ किया है-‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा।’ कांग्रेस प्रवक्ता इसे सामाजिक, धार्मिक न्याय और ‘अराजनीतिक’ यात्रा करार दे रहे हैं। कांग्रेसी ‘न्याय’ और ‘सहो मत, डरो मत’ के नारे लगा रहे हैं। परंपरा के मुताबिक, यह पदयात्रा नहीं होगी, बल्कि एक अत्याधुनिक बस के जरिए 6713 किलोमीटर का फासला तय किया जाएगा। बीच-बीच में राहुल गांधी और उनके सहयात्री पैदल भी चलेंगे। ‘न्याय यात्रा’ देश के 15 राज्यों और 110 जिलों से गुजरेगी। 66 दिन की यात्रा के बाद 20 मार्च को मुंबई में इसका समापन होगा। तब तक आम चुनाव की तारीखें घोषित हो चुकी होंगी! राहुल गांधी किस ‘न्याय’ की बात कर रहे हैं? लोकतंत्र में न्याय की अपेक्षा सरकार और न्यायपालिका से की जाती है। कोई ऐसी वारदात या सामाजिक दमन भारत में नहीं हुआ है, जिसके लिए ‘न्याय’ की गुहार या उद्घोष किया जाए। भारत एक संगठित, संप्रभु, विविधता के बावजूद एकजुट राष्ट्र है, तो ‘कन्याकुमारी से कश्मीर तक’ देश को जोडऩे का आह्वान करने के बाद राहुल गांधी अब किस भूखंड और नागरिकों को जोडऩे की बात कर रहे हैं? अपवाद हो सकते हैं, समस्याएं हो सकती हैं। कांग्रेस ने देश पर करीब 55 साल शासन किया है। ऐसे कौनसे सामाजिक और धार्मिक अन्याय शेष रह गए हैं, जिन पर ‘न्याय’ का दावा किया जा रहा है? यह यात्रा राजनीतिक क्यों नहीं है? किसी राजनीतिक दल की इतनी लंबी यात्रा ‘अराजनीतिक’ हो सकती है? एक ओर देश में राम मंदिर के जरिए हिंदुत्व के खुमार की कोशिशें जारी हैं और उन्हीं के समानांतर ‘न्याय यात्रा’ शुरू की गई है। कांग्रेसियों के भाषणों और बयानों से स्पष्ट है कि यह पूरी तरह राजनीतिक यात्रा है। आम चुनाव का ‘अग्निपथ’ तैयार किया गया है। मणिपुर के जातीय तनाव, सामुदायिक हिंसा, कफ्र्यू और हत्याओं संबंधी कांग्रेस के बयान पूरी तरह राजनीतिक हैं।

लहूलुहान की यह परंपरा 60 साल पुरानी है। पूर्वोत्तर के राज्यों में तब भी उग्रवाद, हिंसा और हत्याएं थीं, जब भारत सरकार के रूप में कांग्रेस सत्तारूढ़ थी। सिर्फ पूर्वोत्तर के हालात पर लोकसभा चुनाव नहीं हुआ करते। चूंकि पूर्वोत्तर में कांग्रेस लगभग नगण्य स्थिति में है, लिहाजा चुनावी हासिल के लिए भी यात्रा मणिपुर से शुरू की गई है। गौरतलब यह है कि कांग्रेस ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ का आगाज कर रही थी, लेकिन उसी समय 50 साल से अधिक समय के समर्थक परिवार के सदस्य और यूपीए सरकार में राज्यमंत्री रहे मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस को अलविदा कहकर शिवसेना से हाथ मिला लिए। 2019 के बाद कांग्रेस छोडऩे वालों में गुलाम नबी आजाद, अश्विनी कुमार, कैप्टन अमरिंदर सिंह, सुनील जाखड़, कपिल सिब्बल, हार्दिक पटेल, अनिल एंटनी, सुष्मिता देव, प्रियंका चतुर्वेदी आदि नेताओं की लंबी फेहरिस्त है। सभी ‘धुर कांग्रेसी’ थे। केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और संगठन के पदों पर आसीन नेता थे। कांग्रेस अपने ही नेताओं को ‘जोड़ कर’ क्यों नहीं रख पाई है? राहुल गांधी की यात्रा जिन लोकसभा क्षेत्रों से गुजरेगी, उनमें से मात्र 15 सीटों पर ही कांग्रेस सांसद हैं। संभव है कि कांग्रेस की यह सोच रही होगी कि वह यात्रा के जरिए बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी, महिला उत्पीडऩ, कथित राजनीतिक अहंकार, मंदिरवाद, अमीर-गरीब की खाई, आम आदमी को स्वाभाविक न्याय आदि मुद्दों पर व्यापक जनमत तैयार कर सकती है! बहरहाल उसे चुनाव स्पष्ट कर देंगे। यदि भाजपा और संघ परिवार मिल कर हिंदूवाद की राजनीति खेल रहे हैं, तो कांग्रेस भी कम हिंदूवाद वाली पार्टी नहीं है। उसके ध्रुवीकरण की जरूरत है। इसके अलावा कांग्रेस जातिवाद और मुस्लिमवाद की सियासत करती रही है। कर्नाटक और तेलंगाना के जनादेश इसके जीवंत उदाहरण हैं। दरअसल हम बीते कल विश्लेषण कर चुके हैं कि कांग्रेस अपने साथियों और समर्थकों को लामबंद नहीं कर पा रही है, नतीजतन ‘इंडिया’ गठबंधन एक मजबूत, संगठित और चुनौतीपूर्ण आकार नहीं ले पा रहा है। इस यात्रा के लिए भी कांग्रेस ने गठबंधन के घटक दलों को विश्वास में नहीं लिया, लिहाजा सभी असमंजस में बयान दे रहे हैं। अलबत्ता कुछ दलों के नेता यात्रा में जरूर शामिल होंगे। बहरहाल राहुल गांधी ने अपनी राजनीति के लिए ‘अग्निपथ’ चुना है, तो उन्हें बधाई और शुभकामनाएं। ‘अग्निपथ’ बहुत मुश्किल, टेढ़े-मेढ़े और कंटीले होते हैं। देखते हैं कि यह यात्रा कैसे गुजरती है!


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