बसपा चलेगी एकला

By: Jan 17th, 2024 12:05 am

बसपा लोकसभा का चुनाव अकेले ही लड़ेगी। अपने 68वें जन्मदिन पर मायावती ने यह घोषणा की, लेकिन यह चौंकाने वाली खबर नहीं है। कांग्रेस की इच्छा जरूर थी कि बसपा भी ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा बने, लेकिन प्रयास अनमने से थे, क्योंकि समाजवादी पार्टी का दबाव और धमकी थी कि बसपा को शामिल किया गया, तो वह ‘इंडिया’ से अलग हो जाएगी। सपा सबसे बड़े राज्य उप्र में प्रमुख विपक्षी दल है और अखिलेश यादव नेता प्रतिपक्ष हैं। हालांकि उप्र विधानसभा में बसपा का एक ही विधायक है, लेकिन लोकसभा में 10 सांसद हैं। 2014 में पार्टी का एक भी सांसद लोकसभा में नहीं था। इस आधार पर आकलन करें, तो बसपा किसी भी गठबंधन का हिस्सा रहती है, तो उसे चुनावी फायदा होता है। 2019 के आम चुनाव में बसपा ने सपा के गठबंधन में चुनाव लड़ा था, तो उसे करीब 19 फीसदी वोट मिले थे और 10 सांसद चुनकर संसद तक पहुंचे थे, लेकिन सपा का मत-प्रतिशत भी कम रहा और 5 सांसद ही चुने गए। एक विश्लेषण स्पष्ट है कि बसपा के समर्थक मतदाताओं ने सपा के उम्मीदवारों को वोट नहीं दिए। 2019 के चुनाव के बाद मायावती ने सपा से गठबंधन भी तोड़ लिया और अब वह सपा प्रमुख अखिलेश यादव के लिए ‘गिरगिट’ जैसे शब्द का इस्तेमाल कर रही है। लोकसभा में बसपा संसदीय दल के नेता श्याम सिंह यादव ने मायावती के ‘एकला चलो’ के निर्णय पर निराशा व्यक्त की है। ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा नहीं बन सकी, लिहाजा बसपा के सामने रास्ता ही क्या था? भाजपा के साथ सामाजिकता और विचारधारा के स्तर पर बसपा की तल्खी बनी रही है, हालांकि मायावती भाजपा के समर्थन से उप्र की मुख्यमंत्री बनती रही हैं। बहरहाल बसपा की ताकत उप्र तक ही सीमित नहीं है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब आदि राज्यों में बसपा के विधायक चुने जाते रहे हैं।

यह अलग और दलबदल की राजनीति है कि वे विधायक टूट कर सत्तारूढ़ पक्ष में विलय करते रहे हैं, लेकिन दलितों और मुसलमानों के एक तबके में बसपा के लिए जबरदस्त समर्थन आज भी है। बसपा के संस्थापक नेता कांशीराम ने जातीय समीकरणों के आधार पर जो राजनीति 1984 में शुरू की थी, उसके कट्टर समर्थक आज भी बसपा का ही समर्थन करते हैं, लिहाजा पार्टी का अकेले ही लोकसभा चुनाव में उतरना महत्त्वपूर्ण राजनीतिक घटना है। उससे कमोबेश चुनाव भाजपा, कांग्रेस और बसपा में विभाजित हो सकता है। शेष क्षेत्रीय और छोटे दल भी चुनाव को बहुतरफा बना सकते हैं, नतीजतन प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को पराजित करने की रणनीति नाकाम साबित हो सकती है। उप्र का चुनाव काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भाजपा-एनडीए ने सभी 80 संसदीय सीटें जीतने का फॉर्मूला तय किया है। बसपा का कमोबेश 14-15 फीसदी मत प्रतिशत भाजपा-एनडीए की जीत को सुनिश्चित कर सकता है। मायावती ने राजनीति से संन्यास लेने की अफवाहों को भी खंडित किया है, तो खासकर जाटव दलितों और मुस्लिम वोट बैंक में बिखराव की संभावनाएं धूमिल होंगी। यह मत-प्रतिशत ‘इंडिया’ के साझा उम्मीदवार के पक्ष में जा सकता था, यदि बसपा का सपा-कांग्रेस के साथ गठबंधन होता! मायावती ने यह भी बयान दिया है कि चुनाव के बाद किसी भी गठबंधन पर विचार किया जा सकता है। अर्थात वह भाजपा-एनडीए को भी समर्थन दे सकती हैं। बशर्ते गठबंधन बसपा और दलितों के पक्ष में हो। यकीनन मायावती का अपना जनाधार आज भी है, हालांकि दलित वोट बैंक भाजपा की तरफ भी गया है। यदि मायावती निष्क्रिय रहतीं, तो उनका परंपरागत वोट बैंक, जो उनकी ठोस संपदा है, भी भाजपा या कांग्रेस की ओर जा सकता था। लिहाजा ‘एकला चुनाव’ बसपा के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है। मायावती एक-एक सीट जीतने की भरपूर कोशिश कर सकती हैं, ताकि उनकी सौदेबाजी की ताकत बरकरार रहे। मायावती का यह निर्णय ‘इंडिया’ के लिए चेतावनी भी है कि यदि ‘इंडिया’ फैसले लेने में देरी करता रहेगा, तो उसके और भी घटक-दल गठबंधन से बिदक सकते हैं। बहरहाल मायावती ने नई राजनीतिक सक्रियता का आगाज किया है, नतीजतन चुनाव और भी दिलचस्प हो गए हैं।


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