आर्थिक तर्कों की साझी विरासत

By: Jan 10th, 2024 12:04 am

पहाड़ी राज्यों के संकल्प देश के राजनीतिक महाभारत में राष्ट्रीय नहीं रहते, यह संघर्ष हर मुख्यमंत्री को हिमाचल की वकालत के साथ करना पड़ा। इसी परिप्रेक्ष्य में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का दौरा दिल्ली से अपने अधिकारों के तर्क साझा कर रहा है। प्रदेश पहली बार कोशिशों के नए मुहाने पर अपने अधिकारों के आवरण के साथ आत्मनिर्भर होने की दरगाह खोज रहा है। इस सफर में हमेशा केंद्र का एक पक्ष और उसकी संवेदना का रुख सहायक हुआ है, लेकिन वित्तायोगों के चश्में बदलते ही मुफलिसी का रोग बढ़ गया और केंद्र के तराजू ने हमें राजनीतिक तौर पर आंकना शुरू कर दिया। कभी फौज की वर्दी पहनकर हिमाचली युवा आगे हो जाता था, लेकिन अब राज्यों का कोटा इस कद्र निर्धारित कर दिया कि अवसर कम हो गए। हमारे सन्नाटे हमीं से पूछ रहे, पड़ोसी के मोहल्ले में शोर कैसा है। यानी हमें चुप कराकर केंद्र ने मैदान से पूछा यह बाढ़ का आलम क्या है। हमें पौंग जैसे जलाशयों में डुबोकर राजस्थान से पूछा कि जवाहर नहर में पानी की गति क्या है। पंजाब पुनर्गठन से मिली पर्वतीय हवा से कोई संवाद नहीं, मगर हरियाणा व पंजाब से ही पूछा तुम्हारी इल्ति•ाा क्या है। अब अगर हिमाचल की जमीन का सीना चीरकर निकल रहीं विद्युत परियोजनाएं न्यायोचित रॉयल्टी या जायज वित्तीय अधिकार नहीं दे रहीं, तो क्या इनकी खुशहाली के आलम में प्रदेश की संवेदना बर्फ बनी रहे। राज्य की विद्युत नीति का आत्मसम्मान व यथार्थ अगर केंद्र से अधिकार मांग रहा है, तो यह पहाड़ को ढोने जैसा तर्क क्यों समझा जा रहा। इसलिए केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह के साथ मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का संवाद केवल गुजारिश नहीं, केंद्र व राज्यों के बीच संबंधों का सेतु है। बीबीएमबी की जो परियोजनाएं पानी के साथ बिजली के अधिकारों पर कुंडली मार कर बैठी हैं, वे चालीस साल के बाद प्रदेश को क्यों न हस्तांतरित हों। शानन विद्युत परियोजना अपनी एक सदी पंजाब को दे देने के बाद भी हिमाचल के भविष्य की सदी को रोक नहीं सकती, लिहाजा लीज खत्म होने के साथ इसका हस्तांतरण अपने साथ रोजाना लगभग अस्सी लाख की आमदनी भी हिमाचल को सौंपेगा। इसी तरह प्रदेश में एसजेवीएन तथा एनएचपीसी द्वारा संचालित विद्युत परियोजनाएं रायल्टी का भुगतान समय सीमा के भीतर करें और उत्तराखंड की तर्ज पर वाटर सैस के अधिकार की मान्यता मिले तो हिमाचल अपने आर्थिक आदर्श कायम कर पाएगा। हिमाचल को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए पर्वतीय अंचल की विशालता और सीमा को समझना होगा। इसी आधार पर हिमाचली परियोजनाओं का वित्त पोषण 90 : 10 की दर में हुआ, लेकिन अब केंद्र पलटी मार रहा है। स्मार्ट सिटी परियोजनाओं की लागत में अगर इस आधार पर धर्मशाला-शिमला की परियोजनाएं चलतीं, तो अब तक इनके मुकाम तय हो चुके होते।

इसी तरह रेलवे परियोजनाओं को भी क्षमता और वाइबिलटी के आधार के बजाय पूर्वोत्तर या जम्मू-कश्मीर की तर्ज पर हिमाचल से जोड़ा जाता, तो अब तक सीमेंट व सेब ढुलाई के अलावा धार्मिक पर्यटन तथा उपभोक्ता वस्तुओं की ढुलाई सस्ती दरों पर हो जाती। कुछ इसी अंदाज में अगर अयोध्या के हवाई अड्डे को राष्ट्रीय राजनीति अंतरराष्ट्रीय बना रही है, तो हिमाचल के प्रसिद्ध मंदिरों से जुड़े कांगड़ा एयरपोर्ट के विस्तार पर केंद्र को उदार होना चाहिए। चार धाम सडक़ परियोजना का मकसद देश की आस्था का सम्मान है, तो चिंतपूर्णी, ज्वालाजी, दियोटसिद्ध, कांगड़ा, चामुंडा व बैजनाथ के धार्मिक व पौराणिक इतिहास को राष्ट्रीय परियोजना की प्राथमिकता देते हुए कांगड़ा हवाई अड्डे का विस्तार तथा ज्वालाजी मैया के देवस्थल तक ऊना रेल का रुख मोड़ देना चाहिए। इसी संदर्भ में हिमाचल के मुख्यमंत्री की केंद्र्रीय उड्डयन एवं नागरिक विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य से मुलाकात का तर्क संजीदा है। हिमाचल में सुक्खू सरकार ने आते ही पिंजरे में बंद कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार की संभावना को पर्यटन की पलकों पर बिछाया है। सरकार ने अपनी ओर से इतना प्रबंध कर दिया है कि बड़े जहाज उड़ाने तथा मौजूदा हवाई पट्टी की लंबाई को 1376 मीटर से 3010 मीटर तक पहुंचाने के लिए आवश्यक भूमि का अधिग्रहण हो जाए। अगले दो महीनों में बड़े हवाई अड्डे के लिए भूमि उपलब्ध होगी, तो आगे भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण को इसके निर्माण की आवश्यक कार्रवाई करनी है। मुख्यमंत्री ने केंद्रीय मंत्री से अपनी यही वचनबद्धता दोहराई है जो पर्वतीय राज्य की कनेक्टिविटी के लिए एक अनिवार्यता सरीखी है। केंद्र की उड़ान योजना की शुरुआत जब शिमला से हुई थी, तो राष्ट्रीय संदर्भों और उम्मीदों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अभिप्राय यही था, लिहाजा इसी मंशा को जमीन पर उकेरने के लिए अब केंद्र की भूमिका अभिलषित है। हिमाचल के तर्क बाकी राज्यों से इसलिए भी भिन्न हैं क्योंकि इस राज्य ने साथ लगते पंजाब व जम्मू-कश्मीर के असंतोष, राष्ट्र विरोधी मूड तथा विखंडनकारी ताकतों के अतिक्रमण के बावजूद अपने स्वभाव व चरित्र को शांत व राष्ट्र के अनुकूल रखा। देश के लिए तीस से चालीस प्रतिशत कुर्बानियां देने वाले तथा सीने पर सभी राज्यों से अधिक चार परमवीर चक्र चिपकाने वाले हिमाचल को सिर्फ केंद्र से न्याय चाहिए, दया नहीं, अधिकार चाहिएं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App