बारिश नदारद होने से कृषि पर संकट

By: Jan 16th, 2024 12:04 am

सरकार हिमाचल में चल रही कंपनियों को उनकी कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के बारे में बताए और उनके द्वारा समाज के प्रति किए जा रहे कार्यों की साल में एक बार तो समीक्षा करे। पहाड़ी प्रदेश में पानी की कमी आने वाले समय में विकराल समस्या बन सकती है। सूखे से निपटने के लिए सरकार को तैयारियां कर लेनी चाहिए। अलग बजट की जरूरत है…

सर्दियों में हिमाचल में नाममात्र ही बारिश हुई। दिसंबर का महीना बिना बारिश और हिमपात के गुजर गया। जनवरी 2024 का पहला व दूसरा सप्ताह भी बिना बारिश के गुजर गए। हालांकि लाहुल-स्पीति और दूसरे ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फबारी हुई, लेकिन इतनी नहीं कि किसानों और बागवानों को इसका कोई फायदा मिला हो। अब जबकि पौधारोपण का समय है तो भी बारिश नहीं हो रही। किसान-बागबान परेशान हैं। आने वाले समय में भी फिलहाल बारिश के कोई आसार नहीं हैं। प्रदेश के अधिकतर जल स्रोत सूखने शुरू हो जाएंगे, नदियों में पानी पहले से ही सूख रहा है। बावडिय़ों, कूहलों, कुडों, खड्डों और दूसरे छोटे जलस्त्रोतों की ओर हमने कभी ध्यान ही नहीं दिया, और हिमाचल में जल सरंक्षण को लेकर आज तक किसी संस्था या सरकार ने बड़ा अभियान चलाया ही नहीं। यह सभी बातें सिर्फ इस बात की ओर इशारा करती हैं कि आने वाले समय में हिमाचल में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। पीने के पानी की समस्या और व्यग्र रूप धारण कर सकती है।

सोलन, ऊना, बिलासपुर के कुछ इलाके, जिन्हें चंगर भी कहा जाता है, कुछ समय के बाद मरुभूमि की तरह दिखने लगेंगे। हिमाचल के ऊंचाई वाले इलाकों शिमला, कुल्लू, किन्नौर, लाहुल और स्पीति में जहां लोग सब्जियां उगाते हैं, अतिरिक्त आय के लिए उन्हें यह सब उगाने में परेशानी तो होगी ही, साथ ही उनकी आर्थिक स्थिति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। हिमाचल प्रदेश में लोग ग्रीन हाउस में फूलों की खेती भी करते हैं। इस पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। अगर उनके पास सिंचाई के पर्याप्त साधन नहीं होंगे और जल भंडारण की व्यवस्था भी नहीं होगी, तो संकट के आसार हैं। दिसम्बर में केवल 5.8 मिलीमीटर बारिश हुई, जबकि अनुमानित 38.1 मिलीलीटर थी। हिमाचल में 85 प्रतिशत बारिश कम हुई। पिछले 8 सालों में यह प्रतिशत सबसे कम है। किन्नौर में भी सूखे की स्थिति जैसे हालात हैं। वहां पर 99 प्रतिशत बारिश कम हुई। हिमाचल प्रदेश में 71 प्रतिशत नागरिकों को कृषि में प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता है। कृषि का प्रदेश की आय में योगदान 30 प्रतिशत के करीब है। हिमाचल प्रदेश में फसलें 940597 हेक्टेयर भूमि में होती हैं। 70 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की जाती है। हिमाचल को कभी एप्पल बाउल ऑफ इंडिया भी कहा जाता था। विशेषज्ञों के अनुसार जलवायु परिवर्तन इसका एक बड़ा कारण माना जा रहा है। लेकिन कहीं न कहीं हम भी इसके लिए जिम्मेदार हैं, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। हमने अपने जंगलों की तरफ कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। पानी के भंडराण को लेकर जागरूकता नहीं फैलाई। बूंद-बूंद से घड़ा भरता है, इस बात को हमने अनदेखा कर दिया। पहाड़ी इलाकों में पानी के भंडारण और संरक्षण को लेकर व्यापक अभियान चलाने की आवश्यकता है। हमारे प्राचीन और पीढिय़ों से चले आ रहे जल स्त्रोतों के रखरखाव और उनके पुनर्निर्माण को लेकर योजनाएं बनाने की आवश्यकता है। बावडिय़ों, छोटी नदियों, नालों, कुंडों, खड्डों के रखरखाव और उन्हें पुनर्जीवन देने की जरूरत है। जहां-जहां संभव हो, बायो टॉयलेट्स को बढ़ावा देने की जरूरत है। इससे पानी की भारी बचत की जा सकती है। खासकर होटल्स और सार्वजनिक स्थानों पर बायो टॉयलेट्स लगाए जा सकते हैं। पद्मश्री नेकराम जो हिमाचल में करसोग से हैं और मोटे अनाज की खेती के लिए पूरे देश में जाने जाते हैं, उनके अनुसार सूखे का सीधा प्रभाव छोटे और बड़े किसानों पर पड़ेगा। चाहे वे सब्जियां उगाते हों, फसलें उगाते हों या फिर बागवानी करते हों या बिक्री के लिए फूल लगाते हों। बुआई का समय है और इस समय बारिश चाहिए।

जमीन में सूखे के कारण खुदाई करना मुश्किल है। किसान कितना इंतजार करेगा बारिश का। उनका मानना है कि जलसंरक्षण को सरकार महत्त्व दे और नदियों के आसपास वाले क्षेत्रों में नदी से पानी लेकर सिंचाई योजनाओं के बारे में गंभीरता से सोचे, ताकि कुछ समय के लिए पानी की व्यवस्था की जा सके, जब तक बारिशें नहीं आती। उनका मानना है कि पहाड़ों से पलायन के ये भी मुख्य कारण हैं, रोजगार और खेतीबाड़ी का न होना। भले ही पहाड़ पर रहने वाले लोगों की जरूरतें कम हों, लेकिन उन्हें मूलभूत सुविधाएं और अनाज तो चाहिए ही अपना जीवन बसर करने के लिए। वर्षा आधारित कृषि वाले क्षेत्रों में सिंचाई की व्यवस्था का जिम्मा सरकार और क्षेत्रीय लोगों को लेने की जरूरत है। पानी का भंडारण इसमें सबसे पहला कार्य होना चाहिए। हिमाचल में हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर की कई परियोजनाएं चल रही हैं। उनका उस क्षेत्र के प्रति कुछ दायित्व होना चाहिए। वहां की जमीन को सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था ये कंपनियां कर सकती हैं, ताकि कम से कम पौधारोपण के समय जमीन की सिंचाई की जा सके तथा उसे तैयार किया जा सके।

किसानों को रोज आसमान की तरफ टकटकी लगा कर देखने की जरूरत न पड़े, जैसे किसान बुंदेलखंड और राजस्थान में करते हैं। अगर आने वाले कुछ दिनों में बारिश नहीं होती है तो सूखा खासकर किसानों, बागवानों के लिए गंभीर समस्या बन जाएगा। पीने के पानी की भी कमी हो जाएगी। सरकार को जलसंरक्षण और जल भंडारण को बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है। गांव-गांव में सरकार को ग्रामीणों को कार्यशालाओं द्वारा जागरूक करने की आवश्यकता है। कृषि विभाग द्वारा किसानों को कम पानी में उगने वाली फसलों की जानकारी देने की भी जरूरत है। सरकार हिमाचल में चल रही कंपनियों को उनकी कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के बारे में बताए और उनके द्वारा समाज के प्रति किए जा रहे कार्यों की साल में एक बार तो समीक्षा करे। पहाड़ी प्रदेश में पानी की कमी आने वाले समय में विकराल समस्या बन सकती है। सूखे से निपटने के लिए सरकार को तैयारियां कर लेनी चाहिए। इसके लिए अलग से बजट की व्यवस्था करनी होगी। बरसात की बाढ़ के बाद यह एक अन्य संकट हिमाचल पर होगा।

रमेश पठानिया

स्वतंत्र लेखक


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