थोड़ी-थोड़ी पिया करो…

By: Jan 2nd, 2024 12:05 am

ह्माचल सरकार अपने नए साल की शुरुआत में गोबर खऱीद योजना को लागू करने जा रही है। सोचता हूँ प्रदेश में जब पहले ही इतना गोबर फैला हुआ है तो सरकार नए खऱीदे गोबर को रखेगी कहाँ? इतनी तो खेती की ज़मीन नहीं, जितना गोबर है। अपने कार्यकाल में गोबर फैलाने वाली बीजे पार्टी आजकल विपक्ष में है। उसने सरकार के इस फैसले के विरोध में विधानसभा सत्र के दौरान सिर पर गोबर की टोकरियाँ रखकर प्रदर्शन किया था। मुझे उसके विरोध से कोई आपत्ति नहीं। बस ऐतराज़ तो इतना है कि गोबर से भरे दिमाग़ पर गोबर की टोकरी रखना गोबर से अन्याय है। चाहे उसे अपने अपमान की चिंता न हो, कम से कम अपने दिमाग़ में भरे गोबर का सम्मान तो करना ही चाहिए था। सुख वाली सरकार के मुख्यमंत्री ने नया ऐलान किया है कि शराब पीकर झूमने वाले पर्यटकों द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर हुड़दंग मचाने पर उन्हें हवालात की सैर नहीं करवाई जाएगी। बल्कि उन्हें होटेल में छोडऩे के बाद ह्माचल पुलिस उन्हें आराम से सुला कर भी आएगी। ताकि उसके मन में यह मलाल न हो कि वे ह्माचल में एंजॉय करने आए थे। पर हवालात की सैर करनी पड़ रही है। अतिथि देवो भव: का इससे बढिय़ा उदाहरण क्या हो सकता है। सुनने में आया है कि इससे उत्साहित होकर पुलिस के एक आला अधिकारी ने पुलिस वालों को ऐसे टल्ली पर्यटकों से दो-चार होने पर उन्हें होटेल में छोडऩे ही नहीं, बल्कि उन्हें लोरी गाकर सुलाने के लिखित निर्देश जारी किए हैं। मुझे लगता है कि ह्माचल के मुख्यमंत्री चाहें तो महीने में एक बार रिज पर शराबियों के लिए ऐसी महफिल का बंदोबस्त कर सकते हैं, जिसमें वह स्वयं हारमोनियम पर चंदन दास द्वारा गाई गज़़ल ‘थोड़ी-थोड़ी पिया करो’ या ग़ुलाम अली की गाई गज़़ल ‘हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है’ को गाकर प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा दे सकें। इस पुनीत कार्य के लिए सरकार अपने सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग के कलाकारों की सेवाओं का सदुपयोग कर सकती है।

ऐसा करते हुए मुख्यमंत्री उस पूर्व मुख्यमंत्री को पीछे छोड़ सकते हैं, जिन्होंने कोरोना काल में टूरिज़्म को बढ़ावा देने के लिए कोरोना के मरीज़ों को इलाज के लिए हिमाचल लाने की योजना आरम्भ करने की बात कही थी। मुख्यमंत्री से प्रेरणा प्राप्त करने के बाद ह्माचल पुलिस चाहे तो हिन्दी फिल्मों की बेहतरीन लोरियों, मसलन- ‘चंदा मामा दूर के’, ‘चंदनिया लोरी लोरी’, ‘लल्ला-लल्ला लोरी, दूध की कटोरी’ जैसी लोरियों को गाते हुए झूमने वाले हुल्लड़बाज़ों को सुला सकती है। ह्माचल पुलिस के पास देश का बेहतरीन ऑर्केस्ट्रा बैंड है। यह बैंड सारा साल रंगारंग कार्यक्रमों में भाग नहीं ले सकता। ऐसे में इस बैंड के सदस्य ऐसे प्रिय अतिथियों की आवभगत करते हुए उन्हें लोरी गाकर सुला सकते हैं। इसके अलावा इस सेवा को राजधानी ही नहीं, पूरे प्रदेश में कारगर ढंग से लागू करने के लिए पुलिस ऐसे होनेहारों को चयनित कर सकती है जो बाथरूम के बाहर गा सकते हों। ऑर्केस्ट्रा बैंड ऐसे चयनित होनहारों को संगीत सिखा सकता है। पूरी तरह प्रशिक्षित होने के बाद पुलिस के इन जाँबाज़ गवैयों को बार और ठेकों के बाहर तैनात किया जा सकता है। अक्सर बिना बात लोगों की डंडे से सेवा करने वाली पुलिस को माँ सरस्वती की सेवा करने का इससे बेहतर अवसर कहाँ नसीब होगा। बस मुझे चिंता है कि अगर कहीं पुलिस वाले ही पीकर झूमने लगे तो उन्हें कौन सुलाएगा? ह्माचल सरकार से मेरे दो प्रश्न भी हैं। प्रथम- क्या वह इस सेवा को शराब पीकर झूमने वाले ह्माचलियों को भी मुहैया करवाएगी? अगर हाँ तो कब तक? दूसरा- भाँग की खेती परवान चढऩे पर क्या यह सेवा बाहरी और लोकल भँगेडिय़ों दोनों को एक साथ उपलब्ध होगी या यह रहमत-ए-करम केवल बाहरी पर्यटकों को ही नसीब होगा? उम्मीद है कि ह्माचल सरकार नए साल पर आरम्भ गोबर खऱीद योजना के साथ टल्ली होकर झूमने वाले ह्माचलियों के पक्ष में इस सेवा को आरम्भ करने की घोषणा अवश्य करेगी। आखिर राजस्व का मसला है भाई।

पीए सिद्धार्थ

स्वतंत्र लेखक


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